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UP ELECTION : तीसरा चरण खत्म होते-होते पीएम-सीएम और बहन जी, सब के ऐसे हो गये बोल

आरके नीरदलखनऊ. उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण के पूरा होते-होते मुद्दे गौण हो गये और नेताओं के बोल लोगों को चौकाने लगे हैं. रोजगार, विकास, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मसलों से हट कर बड़े नेता एक-दूसरे को उधेड़ने में लग गये गये हैं. यह सब कुछ वैसा ही है, जैसा बिहार विधानसभा चुनाव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 20, 2017 6:11 PM

आरके नीरद
लखनऊ. उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण के पूरा होते-होते मुद्दे गौण हो गये और नेताओं के बोल लोगों को चौकाने लगे हैं. रोजगार, विकास, सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मसलों से हट कर बड़े नेता एक-दूसरे को उधेड़ने में लग गये गये हैं. यह सब कुछ वैसा ही है, जैसा बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान था. वहां भी चुनाव के अंतिम दौर तक पहुंचते-पहुंचते नेताओं ने अपने ही बोल से खुद को खूब जलील कराया था.

भाजपा के लिए उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव कई मायने में अहम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की राजनीति का भावी स्वरूप इस चुनाव के परिणाम पर निर्भर करेगा. बिहार और दिल्ली विधानसभा चुनाव की तरह इस साल के पांचों राज्यों में भी भाजपा नरेंद्र मोदी के चेहरे पर वोट मांग रही है. इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं. सपा के लिए इस बार का चुनाव ज्यादा महत्व रखता है. समाजवादी राजनीति को अखिलेश यादव के रूप में युवा चेहरा मिला है. मुलायम सिंह यादव के बाद प्रदेश की राजनीति में सपा का भविष्य कितना टिकाऊ होगा, यह संकेत भी इस चुनाव परिणाम में छुपा होगा.

कांग्रेस यहां करीब-करीब अस्तित्व की ही लड़ाई लड़ती दिख रही है. बसपा और उसकी प्रमुख मायावती ने समय की मांग और दुनिया के बदले रुख को समझ रही हैं. इसलिए मूर्ति स्थापित करने वाली अपने पुरानी पहचान को तोड़ने की कोशिश में है और विकास की बात कर रही है. वह 2007 वाले नतीज पैदा करने की कोशिश में हैं. जाहिर है, बैचेनी सभी दलों और नेताओं में है, लेकिन पिछले दो दिनों से नेताओं के जो बोल फूट रहे हैं, वे यही बता रहे हैं कि वे किस हद तक बदहवाश भी हैं.

पिछले दो दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती के चुनावी भाषण पर बहस चल रही है. रविवार को फतेहपुर की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री ने रमजान-दिवाली पर बिजली आपूर्ति और श्मशान-कब्रिस्तान को मुद्दा बनाया गया था. लोग इसे रमजान-श्मशान का राजनीतिक दांव के तौर पर देख रहे हैं. प्रधानमंत्री ने कहा था कि अगर रमजान पर बिजली मिलती है, तो दिवाली पर भी मिलनी चाहिए और गांव में अगर कब्रिस्तान बनता है, तो श्मशान भी बनेगा. यह स्पष्ट तौर पर विकास का नहीं, धार्मिक भेद-भाव का राजनीति मसला था

सोमवार को भी प्रधानमंत्री मोदी के कुछ ऐसे ही बोल आये. उन्होंने उरई में एक रैली में बसपा को ‘बहनजी संपत्ति पार्टी’ की दिया. मायावती की ओर से इसका जवाब आना ही था. आया भी. उन्होंने प्रधानमंत्री पर पटवार करते हुए उनके नाम नरेंद्र दामोदर मोदी का विश्लेषण ‘नेगेटिव दलित मैन’ के रूप में किया.

चुनाव में विकास के मुद्दे से भटक कर नेता व्यक्तिगत आलोचना और निंदा करने पर उतर आये हैं. इसी कड़ी में मायावती के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विषय रविवार क बोल है, ‘नरेंद्र मोदी ने शादी करके अपनी औरत को छोड़ दिया.’

मायावती ने प्रधानमंत्री पर जनता को गुमराह करने और जुमलेबाजी में माहिर होने की तोहमत तो लगायी ही, यह भी कह दिया, ‘मैं जुमलेबाजी करने में मोदी से दो कदम आगे हूं.’

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राहुल गांधी को कुछ इसी अंदाज में ललकारा था. उन्होंने अपनी आलोचना करने पर चेताया था कि कांग्रेस उनसे न उलझे, उनके पास कांग्रेसियों की पूरी कुंडली है. उसे वह जाग जाहिर कर देंगे. इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा था, ‘हम इससे नहीं डरते.’

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रायबरेली की सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते-करते यह भी बोल गये कि मैं इस सदी के सबसे बड़े महानायक अमिताभ बच्चन से कहूंगा कि आप गुजरात के गधों का प्रचार करना छोड़ दें. अमिताभ गुजरात पर्यटन के ऐम्बेसडर हैं और गुजरात पर्यटन के ताजा विज्ञापन में अमिताभ बच्चन के साथ कई गधों को दर्शाया गया है. ये दुर्लभ प्रजाति के गधे गुजरात में पाये जाते हैं. राजनीति में यह समझना बहुत आसान है कि अखिलेश असल में कहना क्या चाहते हैं‍?

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नेताओं के ऐसे बोल जनतंत्र को हताश करने वाले हैं. पांच साल में एक बार चुनाव आता है. यह सरकार और सरकार से बाहर रहने वाली राजनीतिक पार्टियों के जन-मूल्यांकन और उस पर अपनी राय जाहिर करने का सबसे बड़ा अवसर होता है. 65 सालों की संसदीय यात्रा में देश का बच्चा-बच्चा यह जान चुका है कि हम्माम में सभी नेता और पार्टिंयां एक जैसी हैं. उनमें से देश और राज्य के लिए कुछ बेहतर करने की संभावनाओं वाली पार्टियों और नेताओं को जनता चुनती है. खुद को चुनावने के लिए अपनी काबिलियत और सोच को बताने के बजाय एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में खुद के स्तर का ख्यात छोड़ देना निश्चय ही जनतंत्र के लिए शुभ लक्षण नहीं है, मगर हो वही रहा है. बिहार में भी यही हुआ था.

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