!!प्रकाश कुमार रे!!
भारतीय राजनीति में शायद ही कोई ऐसा दूसरा खिलाड़ी है, जो बिना किसी विचारधारा, जनाधार या संघर्षशील सक्रियता के अमर सिंह की तरह प्रभावशाली, चर्चित और विवादास्पद रहा हो. समाजवादी पार्टी में उनकी वापसी के तुरंत बाद शुरू हुए घमसान के पहले चरण में ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अमर सिंह की तरफ संकेत करते हुए बयान दिया था कि एक ‘बाहरी’ व्यक्ति की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है. राजनीतिक गलियारों में जहां उन्हें ‘जोड़-तोड़ में माहिर’ माना जाता है, वहीं उन्हें ‘पनौती’ के रूप में भी देखा जाता है. विभिन्न दलों के बड़े नेताओं, पत्रकारों, उद्योगपतियों और फिल्म स्टारों के साथ संपर्क रखनेवाले अमर सिंह ने 1990 के दशक में मुलायम सिंह से जुड़ने के बाद उन्हें भी धन और ग्लैमर की चमकीली दुनिया से जोड़ा.
डॉ राममनोहर लोहिया के राजनीतिक वारिस होने का दावा करनेवाले मुलायम सिंह को चमक-दमक खूब रास भी आया. इसका नतीजा यह हुआ कि अमर सिंह सपा के बड़े नेताओं और मुलायम के परिवार को किनारे करते हुए न सिर्फ पार्टी के सबसे ताकतवर नेता बन बैठे, बल्कि मुलायम सिंह भी उनकी सलाह के अनुसार चलने भी लगे. तकरीबन डेढ़ दशकों तक सपा के महासचिव और सांसद की भूमिकाओं में अमर सिंह लखनऊ, दिल्ली और मुंबई में अपने जलवों से विवादों और चर्चाओं के केंद्र में बने रहे. अमर सिंह की गतिविधियों का दायरा देश के बाहर विदेशों में भी गुल खिलाने लगा. उस दौर के उनके कारनामों को आज भी बड़ी दिलचस्पी से पढ़ा, सुना और कहा जाता है. लेकिन, पार्टी के भीतर बढ़ते असंतोष के कारण मुलायम सिंह ने उन्हें फरवरी, 2010 में पार्टी से निकाल दिया. राजनीतिक हलकों में अक्सर यह कहा जाता है कि अमर सिंह अपने दोस्तों के लिए कुछ भी कर सकते हैं, पर जब रिश्ते खराब हो जाते हैं, तो उन्हें अमर सिंह की दुश्मनी (जहरीले बयानों और खतरनाक चालों की शक्ल में) का भी सामना करना पड़ता है. सपा से बर्खास्तगी के बाद वे मुलायम सिंह और सपा के खिलाफ बोलने और उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिशों से बाज नहीं आये.
बहरहाल, इधर-उधर जगह बनाने की नाकाम कोशिश के बाद उन्होंने सपा में वापसी की जुगत लगायी और मुलायम सिंह तथा अखिलेश यादव से मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू किया. लेकिन, अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव और आजम खान के विरोध के कारण रास्ता आसान न था. अमर सिंह भी राजनीति के पुराने माहिर ठहरे, सो उन्होंने शिवपाल यादव के जरिये राह हमवार करने में कामयाबी पायी. कुछ महीने पहले वापसी के साथ ही उन्हें सपा की ओर से राज्यसभा में भेजा गया और फिर महासचिव पद भी दिया गया. अब जब मुलायम कुनबे में घमसान एक खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, अमर सिंह फिर से झगड़े के अहम किरदार के रूप में सामने आये हैं. अखिलेश उन्हें हाशिये पर धकेलने की कोशिश में हैं, तो मुलायम उन्हें अपना भाई बता कर उनके पुराने ‘पापों’ को माफ कर चुके हैं. इस मोड़ के बाद समाजवादी पार्टी का भविष्य चाहे जिधर का रुख करे, उसमें अमर सिंह की भूमिका दिलचस्प रहेगी.
(यह लेख उस वक्त लिखा गया था जब सपा का घमासान चरम पर था)