!!शम्सुल इस्लाम, राजनीतिक विश्लेषक!!
उत्तर प्रदेश में चुनावी सभाओं के संबोधन में फतेहपुर से पहले प्रधानमंत्री ने ऐसे नाजुक मुद्दे को नहीं छुआ था. फतेहपुर के चुनावी भाषण से दिखता है कि वे हिंदू और मुसलिम मतदाताओं के बीच ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं. इसका सीधा सा मतलब यह भी है कि उत्तर प्रदेश के बहुसंख्यक हिंदू मतदाताओं का समर्थन भाजपा को नहीं मिला है. इसलिए मुसलिम तुष्टिकरण और ‘दुश्मन’ का हौव्वा खड़ा किया जा रहा है. इस परिस्थिति पर अंगरेजी अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा है कि यूपी चुनाव प्रचार के मध्य में पहुंचने तक, ‘प्रधानमंत्री का उदाहरणों का चयन और उनका संदेश, दोनों दुर्भाग्यपूर्ण हैं. ये न तो प्रधानमंत्री ही और न ही उनके ऑफिस की गरिमा के अनुरूप हैं!’
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों की सूची भी यही बता रही है कि उसे खुद मुसलिम समुदाय कोई महत्वपूर्ण या निर्णायक भूमिका में दिखायी नहीं दे रहा. इस चुनाव में भाजपा ने एक भी मुसलिम व्यक्ति को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है. ‘मुसलिम वोट-बैंक’ का मिथक हकीकत में अधिकतर गैर-भाजपा सरकारों को चुननेवाले उत्तर प्रदेश के मतदाताओं का अपमान है. तथाकथित हिंदुत्ववादियों द्वारा खड़े किये गये मुसलिम तुष्टिकरण के ‘भूत’ के पीछे कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है, यह सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं और ‘बौद्धिक बैठकों’ में पढ़ाया जानेवाला झूठ है.
इसलिए वे श्मशान-कब्रिस्तान वाली बात कहते हैं. वे देश के लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष ढांचे के लिए एक बड़े खतरे का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक ढांचे के साथ इतने लंबे समय तक काम करने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी के हिंदुत्व बोध में रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा है. मार्च 2017 के पहले अर्ध में आनेवाले उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजे भारतीय गणतंत्र के भविष्य का फैसला करेंगे. क्या भारतीय लोकतंत्र इस अंदरूनी हमले से अपने अस्तित्व को बचा पायेगा? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है.