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कुछ को मिला वनवास, तो कुछ रह गये नेपथ्य में!

!!कृष्ण प्रताप सिंह!! अब, जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान के लिए भी चुनाव प्रचार समाप्त हो चुका है, मुलायम सिंह यादव से लेकर मुरली मनोहर जोशी तक प्रदेश की राजनीति के उन धुरंधरों पर एक नजर डालना भी बेहद दिलचस्प है, जो इस चुनाव में अलग-अलग कारणों से बेभाव होकर […]

!!कृष्ण प्रताप सिंह!!

अब, जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान के लिए भी चुनाव प्रचार समाप्त हो चुका है, मुलायम सिंह यादव से लेकर मुरली मनोहर जोशी तक प्रदेश की राजनीति के उन धुरंधरों पर एक नजर डालना भी बेहद दिलचस्प है, जो इस चुनाव में अलग-अलग कारणों से बेभाव होकर हाशिये पर चले जाने या वनवास अपनाने को अभिशप्त हो गये.

मुलायम की बात करें तो 1989 के बाद प्रदेश का यह पहला चुनाव है, जिसमें उनकी औपचारिक उपस्थिति भी नहीं है. जिस राजनीतिक साम्राज्य को बड़े मन से खड़ा किया था, उसमें उनकी पारी को ऐसे करुण अंत तक पहुंचा दिया जायेगा, इसका अंदेशा किसी को नहीं था. हालांकि बिना सदस्यता लिये ही अपनी पुरानी पार्टी लोकदल का स्टार प्रचारक नंबर वन भी वह बने. मुलायम पुराने गिले-शिकवे भुला कर सपा के प्रत्याशियों के प्रचार के लिए तैयार भी हुए तो बेटे ने इस काम के लिए उन्हें पूछा ही नहीं और उनकी भूमिका छोटे भाई शिवपाल और छोटी बहू अपर्णा के प्रचार तक सीमित हो गयी.

शिवपाल की तो उनसे भी बुरी गत बनी. भतीजे ने अनुग्रह करके जसवंतनगर की पैतृक सीट से चाचा का टिकट नहीं काटा, लेकिन वहां प्रचार करने गया तो उनका खूब मजाक उड़ाया. इतना ही नहीं, उन्हें किसी और सीट की ओर झांकने तक नहीं दिया. बेनी प्रसाद वर्मा कांग्रेस व सपा दोनों में स्टार प्रचारक रहे हैं. वे सपा से ही कांग्रेस में गये थे और कुछ महीने पहले राज्यसभा की सदस्यता के लिए पुराने घर में वापस आये तो उसका कांग्रेस से गंठबंधन हो गया. उन्हें अपने बेटे के लिए मनचाही सीट से एक अदद टिकट के भी लाले पड़ गये. जिस भतीजे का विरोध नहीं करना चाहते थे, वह उनके गृह नगर बाराबंकी में सपा प्रत्याशियों का प्रचार करने आया तो भी उन्हें नहीं पूछा. बेचारे बेनी के पास कोई मंच ही नहीं बचा था, जिस पर जाकर वे जवाब देते. इसलिए बाराबंकी में सपा प्रत्याशियों की खिलाफत करने में लगे रहे. भतीजे का कहर एक अन्य चाचा अमर सिंह पर भी बरपा. बार–बार ‘बाहरी’ और ‘दलाल’ कहने के बाद उसने सपा से उनकी छुट्टी की तो वे ‘छुट्टा सांड़’ होकर इधर-उधर मुंह मारने लगे. प्रचार की बजाये वे कभी आजम, कभी अखिलेश तो कभी रामगोपाल यादव पर बरसते रहे.

दूसरे खेमे की बात करें तो जनसंघ के वक्त से अब तक लंबा राजनीतिक अनुभव रखने वाले भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डॉ मुरली मनोहर जोशी की हालत मुलायम से थोड़ी बेहतर रही. मुलायम अपने संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में भी प्रचार करने नहीं जा सके, जोशी ने अपने संसदीय क्षेत्र कानपुर में भाजपा प्रत्याशियों के लिए वोट मांगे. हां, स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल करने के बावजूद भाजपा ने अन्यत्र कहीं भी उनका इस्तेमाल नहीं किया. उनसे भले तो बड़बोले विनय कटियार ही रहे, जिनका नाम बाद में सूची में आया तो उन्होंने कई क्षेत्रों में राम के नाम पर वोट मांगे. उनके उलट सुलतानपुर के युवा भाजपा सांसद वरुण गांधी परिदृश्य से पूरी तरह बाहर रहे. पार्टी ने उन्हें दूसरे व तीसरे चरण के लिए स्टार प्रचारक बनाया था, लेकिन उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र के प्रत्याशियों तक के लिए कोई सभा नहीं की. उनकी मां मेनका गांधी भी केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद अपने संसदीय क्षेत्र पीलीभीत से बाहर नहीं गयीं.

कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी थोड़ी देर के लिए राहुल के साथ रायबरेली की एक सभा में दिखीं और फिर नेपथ्य में चली गयीं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बारे में तो खैर लोगों को पहले से पता था कि वे बीमार हैं और इस कारण प्रचार अभियान में शामिल नहीं हो सकेंगी. इसकी क्षतिपूर्ति करते हुए उन्होंने बाद में रायबरेली के वोटरों को एक बेहद इमोशनल पत्र भी लिखा…

भाजपा के सहयोगी अपना दल के दो सांसदों में से एक हरिवंश सिंह इसलिए प्रचार में भागीदार नहीं हो पाये कि उनकी पार्टी में मां-बेटी की लड़ाई में वे किसी के भी वफादार नहीं बन सके. क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारी होने के कारण उन्हें उम्मीद थी कि ठाकुर वोटरों को रिझाने के लिए भाजपा उन्हें जरूर प्रचार में लगायेगी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक समय इस चुनाव में ‘निर्णायक भूमिका’ निभाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन दोनों ही अपने-अपने राज्य में रहे.

खुद को ‘चुनावों का डॉक्टर’ कहने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद कुछ चुनाव सभाओं में नरेंद्र मोदी पर अपने अंदाज में बरसे.

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