।। विजय बहादुर।।
यूपी चुनाव की जीतसेनरेंद्र मोदी का डंका बज रहा है. लेकिन लगता है अमितशाह की हालत वही है जो राहुल द्रविड़ की सचिन तेंदुलकर के समय थी. राहुल द्रविड़ लगातार परफॉर्म करते रहे, लेकिन ज्यादा श्रेय सचिन तेंदुलकर को मिलता रहा. 2014 के बाद अमित साह ने हर चुनाव में जिस तरह की रणनीति बनायी है वो लाजवाब है. बूथ मैनेजमेंट, संगठन मजबूत करने से लेकर सोशल इंजीनियरिंग करने तक का काम जिस आक्रामक तरीके सेउन्होंने किया है वो लाजवाब है.
यूपी चुनाव में जितना योगदान ब्रांड मोदी की चमक का है, उससेकम योगदान अमित शाह के बनायेमंडल और कमंडल के संतुलन का भीनहीं है. अमितशाह और पूरी भाजपा जानती थीकि अपने कोर सवर्ण वोटर और आक्रमक हिंदुत्व के सहारे अधिकतम 25 प्रतिशत वोट तक के लक्ष्यतक ही पंहुचा जा सकता है, लेकिन चुनावी फतह के लिए कम से कम 30 प्रतिशत वोट कीजरूरत थी. इसके लिए गैर यादव और गैर जाटव वोट में सोशल इंजीनियरिंग की गयी.
30प्रतिशत वोट की सीमा को पार करने के लिए अनुप्रिया पटेल को आगे कर कुर्मियों, केशव प्रसाद मौर्य को भाजपाप्रदेश अध्यक्ष बनाकर मौर्य, उमा भारती को आगे रख कर लोध और इसी तरह राजभरों, निषादों जैसी अन्य जातियों के महापुरुषों का महिमा मंडन कर उन्हें ब्रांड हिंदुत्व के साथ जोड़ा गया. साथ में संगठन और सोशल मीडिया के माध्यम सेअघोषित तौर पर पुरजोर प्रचार किया गयाकि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के सत्ता में आने का असली फायदा सिर्फ यादवों और जाटवों को मिलता है.
2014 के चुनाव में भाजपायह देख चुकीहै कि हिंदुत्व के नाम पर बहुसंख्यक समाज का ध्रुवीकरण किया जा सकता है और अल्पसंख्यक ध्रुवीकरण के मिथ को तोड़ा जा सकता है. पश्चिम यूपी में 2017 के चुनाव में जाट ध्रुवीकरण फैक्टरजिंदा रहा और यह भ्रम भी टूट गया की जाट वोटर अजित सिंह की पार्टी की तरफ लौट गया है. योगी आदित्यनाथ, संगीत सोम, हुकुम सिंह जैसे फायर ब्रांड नेताओं को आगे रखकर और कब्रिस्तान – श्मशान, कसाब जैसे जुमले गढ़कर जाट फैक्टर और पूरे यूपी में बहुसंख्यक ध्रुवीकरण किया गया.इसपूरे प्लान में अमित साह का रोल बहुत ही अहम है.