नयी दिल्ली (ब्यूरो) : उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा की निर्णायक जीत का दो सीधा असर होगा. जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा अपने पसंदीदा उम्मीदवार को राष्ट्रपति भवन भेजने में कामयाब होगी. राज्यसभा का चेहरा भी बदल जायेगा.
मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 25 जुलाई, 2017 को खत्म हो जायेगा. राष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा और देश के 29 राज्यों के विधायक वोट डालते हैं. राष्ट्रपति चुनाव में उत्तर प्रदेश की जीत काफी मायने रखती है, क्योंकि यहां के विधायकों के वोट का मूल्य सबसे अधिक है. राष्ट्रपति चुनाव में राज्यों की आबादी को विधायकों की संख्या से भाग देने के बाद उसे फिर 1000 से विभाजित कर वाेट की कीमत तय की जाती है. देश में सबसे अधिक आबादी उत्तर प्रदेश की है.
ऐसे में यहां के विधायकों के वोट की कीमत सबसे अधिक 208 है. उपराष्ट्रपति का चयन भी भाजपा अपने पसंद का कर सकने में सक्षम है. क्योंकि उपराष्ट्रपति के चयन में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य मतदान करते हैं. देश के विधानसभाओं के कुल विधायकों की संख्या 4120 है, जो वोट में शामिल होते हैं.
* राज्यसभा में भी भाजपा को होगा फायदा
राज्यसभा में उत्तर प्रदेश से कुल 31 सीटें है. मौजूदा समय में सपा के 18, बसपा के छह, भाजपा-कांग्रेस के तीन-तीन और एक निर्दलीय सांसद हैं. इनमें से 10 सदस्यों का कार्यकाल दो अप्रैल 2018, 10 का 25 नवंबर, 2020 और बाकी 11 का चार सितंबर, 2022 को समाप्त हो रहा है. उत्तर प्रदेश में 325 सीटें जीतने के बाद अधिकांश राज्यसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा हो जायेगा.
सपा को एक सीट मिल सकती है, जबकि बसपा को एक भी सीट नहीं मिल पायेगी. यानि की अगले साल उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की आठ सीटें भाजपा आसानी से जीत जायेगी और वह राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन जायेगी. उत्तराखंड से राज्यसभा की तीन सीटें, पंजाब में सात और मणिपुर और गोवा से एक-एक सीट है.
मौजूदा समय में राज्यसभा में कांग्रेस के 59, भाजपा के 56 सांसद हैं. एआइएडीएमके के 13, तृणमूल कांग्रेस के 11, जदयू के 10 और अन्य 78 सांसद हैं. इन नतीजों के बाद 2018 में राज्यसभा का गणित बदल जायेगा, लेकिन 245 सदस्यीय सदन में भाजपा को लोकसभा की तरह पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा.
हालांकि सीटों की संख्या में इजाफा के बाद राज्य सभा में लटकी हुई विधेयकों को पास कराने में भाजपा को सहूलियत होगी. क्योंकि राज्यसभा में कई जरूरी बिल को लटकाने का आरोप सत्ता पक्ष की ओर से लगता रहा है.