Adipurush: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में डिप्टी सॉलिसिटर जनरल आज देंगे जानकारी, मेकर्स को लगाई जा चुकी है फटकार
फिल्म आदिपुरुष से विवादित संवाद बदले जाने के बाद भी मामला शांत नहीं हुआ है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फिल्म के प्रदर्शन को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है. वहीं बुधवार को डिप्टी सॉलिसिटर जनरल मामले में कार्रवाई के संबंध में कोर्ट को अवगत कराएंगे.
Lucknow: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में फिल्म ‘आदिपुरुष’ को लेकर बुधवार को भी सुनवाई होगी. हाईकोर्ट ने फिल्म की स्क्रीनिंग पर सख्त टिप्पणी करते हुए इसके रिलीज करने पर सवाल खड़े किए हैं.
इस मामले में डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय बुधवार को केंद्र सरकार और सेंसर बोर्ड से निर्देश प्राप्त कर कोर्ट को अवगत कराएंगे. इसमें वह जानकारी देंगे कि मामले में उनके स्तर पर क्या कार्रवाई की जा सकती है.
इससे पहले दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंगलवार को कड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हिंदू सहिष्णु है और हर बार उसकी सहनशीलता की परीक्षा ली जाती है. वे सभ्य हैं तो क्या उन्हें दबाना सही है?
हाईकोर्ट ने कहा कि यह तो अच्छा है कि वर्तमान विवाद एक ऐसे धर्म के बारे में है, जिसे मानने वालों ने कहीं लोक व्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचाया. हमें उनका आभारी होना चाहिए. कुछ लोग सिनेमा हाल बंद कराने गए थे. लेकिन, उन्होंने भी सिर्फ हाल बंद करवाया. वे और भी कुछ कर सकते थे.
जस्टिस राजेश सिंह चौहान एवं जस्टिस श्रीप्रकाश सिंह की पीठ ने फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर उर्फ मनोज शुक्ला को मामले में प्रतिवादी बनाए जाने संबंधी प्रार्थना पत्र पर यह टिप्पणियां कीं. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने संवाद लेखक मनोज मुंतशिर को पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी करने का आदेश दिया है.
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान फिल्म में दिखाए गए डिस्क्लेमर पर टिप्पणी में कहा कि आप भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण और लंका दिखाते हैं और डिस्क्लेमर लगाते हैं कि यह रामायण नहीं है, क्या आपने देशवासियों को बेवकूफ समझा है.
पीठ ने यह आदेश कुलदीप तिवारी और नवीन धवन की याचिकाओं पर पारित किया. कुलदीप तिवारी की याचिका में फिल्म के तमाम आपत्तिजनक दृश्यों व संवादों का संदर्भ देते हुए प्रदर्शन पर रोक की मांग की गई है, जबकि नवीन धवन की ओर से प्रदर्शन पर रोक के साथ फिल्म को सेंसर बोर्ड द्वारा जारी प्रमाण पत्र निरस्त करने की मांग की गई है.
बहस के दौरान याचियों के अधिवक्ताओं की दलील थी कि सिनेमेटोग्राफ एक्ट के प्रविधानों और उक्त कानून के तहत बनाई गईं गाइडलाइंस का कोई पालन सेंसर बोर्ड द्वारा नहीं किया गया. कहा गया कि फिल्म में दिखाए गए गलत तथ्यों के कारण नेपाल ने न सिर्फ इस फिल्म पर बल्कि सभी हिंदी फिल्मों पर अपने यहां रोक लगा दी है. इस दौरान फिल्म की वजह से हिंदुओं की भावना आहत होने से लेकर मित्र देशों से संबंध खराब होने का भी जिक्र किया गया.