UP Assembly Election 1952: भारत की राजनीतिक में ऊंचाइयों तक जाने का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही जाता है. कहावत प्रचलित है कि प्रदेश की राजनीति में जिसने यूपी को साध लिया उसने किला फतह कर लिया. इसी क्रम में ‘प्रभात खबर’ एक नई सीरीज शुरू करने जा रहा है. इसके तहत यूपी में अब तक हुए सभी विधानसभा चुनावों की खबर पाठकों को मुहैया कराने की तैयारी की जा रही है. इसकी पहली कड़ी में जानते हैं…
देश की आजादी के पहले उत्तर प्रदेश को यूनाइटेड प्रोविंस के नाम से जाना जाता था. यूनाइटेड प्रोविंस के लिए विधानसभा का गठन पहली बार 1 अप्रैल 1937 को भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अनुसार किया गया था. साल 1935 के अधिनियम के तहत निर्धारित विधानसभा की क्षमता 228 थी और इसकी अवधि पांच वर्ष की थी. पुरुषोत्तम दास टंडन और अब्दुल हकीम क्रमशः 31 जुलाई 1937 को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुने गए थे. देश की आजादी के बाद भारत के स्वतंत्र होने के बाद, 3 नवंबर 1947 को पहली बार विधानसभा की बैठक हुई थी. 4 नवंबर 1947 को अपनी बैठक में विधानसभा ने सभी कार्यवाही में हिंदी के उपयोग के लिए एक प्रस्ताव अपनाया था. इसके बाद साल 1952 में पहली बार विधनसभा चुनाव का संपन्न कराई गई थी.
विकिपीडिया पर दी गई सूचना के अनुसार, भारत के नए संविधान के तहत अनंतिम उत्तर प्रदेश विधानमंडल का पहला सत्र जिसने देश को एक गणतंत्र के रूप में स्थापित किया था. 2 फरवरी, 1950 को राज्यपाल होमी मोदी के विधानसभा के हॉल में दोनों सदनों के एक संबोधन के साथ शुरू हुआ था. सत्र के शुरू से पूर्व राज्यपाल ने क्रमशः पुरुषोत्तम दास टंडन और चंद्रभाल को अपने-अपने कक्षों में पद की शपथ दिलाई थी. इसके बाद उपस्थित अन्य सभी सदस्यों ने अपने-अपने सदनों में संविधान द्वारा आवश्यक शपथ ली थी. 11 अगस्त, 1950 को अध्यक्ष पुरुषोत्तम दास टंडन ने अपने कार्यालय से इस्तीफा दे दिया था.
चूंकि, इलेक्शन कमीशन की आधिकारिक वेबसाइट पर उत्तर प्रदेश में हुए पहले विधानसभा चुनाव का कोई डाटा उपलब्ध नहीं है. इसीलिए यहांं विकिपीडिया की वेबसाइट पर दर्ज जानकारी के आधार पर सूचना दी गई हैै. विकिपीडिया के अनुसार उत्तर प्रदेश की नवनिर्वाचित विधानसभा की बैठक 19 मई, 1952 को हुई थी. 20 मई, 1952 को आत्माराम गोविंद खेर अध्यक्ष चुने गए थे. उस अवसर पर बोलते हुए गोविंद खेर ने कहा था कि वे सक्रिय राजनीति में भाग नहीं लेंगे और न ही उस कांग्रेस पार्टी में कोई पद धारण करेंगे. इससे वह संबंधित हैं लेकिन साथ ही वह उस पार्टी के सदस्य बने रहेंगे और गैर-विवादास्पद गतिविधियों में भाग लेंगे. बता दें कि उस वक्त के चुनाव में 430 विधानसभा सीट के लिए मतदान हुआ था. वोटिंग परसेंटेज 52.87 था. प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत बने थे. वहीं, विपक्षी दल के नेता लोकबंधु राजनारायण चुने गए थे. हालांकि, तीन साल बाद विपक्षी दल के नेता के पद पडरौना से कांग्रेस नेता गेंदा सिंह काबिज हो गए थे.
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