लखनऊ : बिहार विधानसभा चुनाव में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती के साथ हाथ मिला कर पांच सीट की जीत से उत्साहित है. अब एआईएमआईएम की नजर पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में है. पश्चिम बंगाल से सटे बिहार के जिलों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब हुए एआईएमआईएम अगले साल होनेवाले चुनाव के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में होनेवाले 2022 के चुनाव में उतरने की कोशिश में है.
साल 2022 में होनेवाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अगर बसपा के साथ एआईएमआईएम एक बार फिर हाथ मिलाकर दलित-मुस्लिम कार्ड का दांव खेल सकती है. इससे बसपा और एआईएमआईएम दोनों को लाभ हो सकता है. दोनों पार्टियों की दोस्ती उत्तर प्रदेश में राजनीतिक समीकरण के गणित को बिगाड़ सकता है.
बिहार में मिली जीत से उत्साहित एआईएमआईएम राजनीतिक आधार बढ़ाने के लिए जिला मुख्यालयों में संगठन की मजबूती पर ध्यान केंद्रित कर दिया है. नये जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के साथ-साथ पार्टी में सदस्यों को जोड़ने का अभियान भी तेज कर दिया गया है.
उत्तर प्रदेश एआईएमआईएम के अध्यक्ष शौकत अली ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमला बोलते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश में तीनों चुनावों- जिला पंचायत का चुनाव, 2022 का विधानसभा का चुनाव, फिर नगरपालिका-नगर पंचायत चुनाव की तैयारी हम एक साथ कर रहे हैं. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी.
साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमला बोलते हुए कहा है कि उनके जिले गोरखपुर के पड़ोसी जिले संत कबीरनगर में आज तक कोई खास काम नहीं हुआ है. उन्हें नाम बदलने का काफी शौक है. उन्होंने अपना नाम बदला है. इसलिए वे जहां जाते हैं, नाम बदलते रहते हैं. साथ ही उन्होंने योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का सबसे विफल मुख्यमंत्री बताया है.
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट 20 फीसदी है. वहीं, दलित वोट करीब 21 फीसदी है. ऐसे में दोनों पार्टियों की गठजोड़ सत्ताधारी दल बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है. वहीं, शौकत अली ने भी दावा किया है कि ओवैसी-मायावती मिलकर सांप्रदायिक शक्तियों को सत्ता में आने से रोक सकते हैं.