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अमरमणि त्रिपाठी: वो बाहुबली ब्राह्मण चेहरा जो यूपी की सभी प्रमुख पार्टियों में समय के साथ दिखा

अमरमणि त्रिपाठी ने जेल में रहते हुए 2007 में जीत हासिल की और 2017 में अपने बेटे के लिए जीत हासिल की. चार बार के विधायक के जेल से निकलने के बाद उत्तर प्रदेश और मूल गोरखपुर क्षेत्र में राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता है.

लखनऊ. जेल के अंदर या उससे बाहर,अमरमणि त्रिपाठी ने अपने 40 साल के राजनीतिक करियर में हमेशा ‘भाग्यशाली ब्रेक ‘ से लाभ उठाया है. सबसे बड़ा ब्रेक उनके लिए गुरुवार को आया, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने मधुमिता हत्याकांड में उनकी और उनकी पत्नी मधुमणि की रिहाई की घोषणा की. सजा सुनाए जाने के बाद, सजा का बड़ा हिस्सा विभिन्न आधारों पर अस्पताल में बिताने वाले अमरमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं. वह चार बार के विधायक रहे. यूपी की सभी चार प्रमुख पार्टियों , कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा और भाजपा से जुड़े रहे हैं . वह जेल से चुनाव जीते हैं. अब वह जेल से बाहर आ गए हैं तो क्या अपने दबदबा को दोबारा प्राप्त कर सकते हैं, यह सवाल बना हुआ है.

वीरेंद्र प्रताप शाही से मुकाबला कर निगाह में आए

राजनीति में अनुभव मायने रखता है, उम्र नहीं. देश के सर्वोच्च सदन राज्यसभा के सदस्यों की औसत उम्र 60 के पार है. ऐसे में 66 वर्षीय अमरमणि त्रिपाठी आज की राजनीति में खुद को फिर से स्थापित करेंगे इसको लेकर चर्चा तेज हो गई है. अमरमणि ने पहली बार अपनी ताकत तब साबित की जब उन्होंने इलाके के प्रभावशाली ठाकुर नेता वीरेंद्र प्रताप शाही से मुकाबला किया. उनको कभी यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र के सबसे बड़े ब्राह्मण नेताओं में गिना जाता था. नेपाल की सीमा को छूने वाले पैतृक जिले महराजगंज के साथ-साथ आसपास के जिलों तक था.अमरमणि के प्रभाव वाले जिलों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का क्षेत्र गोरखपुर भी शामिल था.

जेल से अंदर रहकर खुद और बेटे को विधान सभा का चुनाव जिताया  

अमरमणि, वीरेंद्र प्रताप शाही के खिलाफ 1981 और 1985 के विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन यूपी की दो प्रमुख जातियों के नेताओं के बीच हुए मुकाबले ने क्षेत्र में ब्राह्मण चेहरे के रूप में अमरमणि की स्थिति तय कर दी. बाद में, वह 1989, 1996, 2002 में महाराजगंज की लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से जीते. परिसीमन के बाद नौतनवा में शामिल होने के बाद उन्होंने 2007 में नौतनवा से जीत हासिल की. 2003 में अमरमणि को मधुमिता शुक्ला की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया और उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा. इसके बाद भी 2017 के अंत में, उनके बेटे अमनमणि ने अपने प्रभाव की बदौलत नौतनवा से विधानसभा चुनाव जीता. राजनीतिक कार्यकर्ता विनोद कुमार कहते हैं, अमरमणि त्रिपाठी की महाराजगंज में स्वीकार्यता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि 2017 में उनके बेटे अमनमणि ने अपने पिता की नौतनवा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. हालांकि पिछले साल के विधानसभा चुनाव में उन्होंने नौतनवा की सीट को गंवा दिया.

भाजपा ब्राह्मणों के साथ अपने संबंधों में सुधार के मिशन पर

महाराजगंज के एक पूर्व विधायक ‘प्रभात खबर ‘ से बातचीत में कहते हैं, अमरमणि त्रिपाठी के लिए बाहरी राजनीतिक की दुनिया बहुत बदली हुई है. यूपी में अधिकांश राजनीतिक दल भाजपा के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. भाजपा उनके प्रति सहयोगात्मम दिख रही है. योगी आदित्यनाथ सरकार ने दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर बनाई गई नीति के तहत अमरमणि और मधुमणि त्रिपाठी की समयपूर्व रिहाई का आदेश दिया.उनकी रिहाई भाजपा के नजदीक होने का प्रमाण है. अमरमणि त्रिपाठी के जरिए भाजपा ब्राह्मणों के साथ अपने संबंधों में सुधार करने जा रही है. यह अब छुपी हुई नहीं रही है.

राजनीतिक दलों के सियासी समीकरण बदलने जा रहे

अमरमणि की रिहाई के अगले सियासी कदम को लेकर सामाजिक चिंतक और राजनीतिक विशेषज्ञ खुलकर बताते हैं लेकिन पहचान उजागर न करने की शर्त भी रख देते हैं. अब एक बाद चल निकली है कि अमरमणि के बाहर आते ही राजनीतिक दलों के सियासी समीकरण बदलने जा रहे हैं. साल 1956 में फरेंदा में जन्मे अमरमणि त्रिपाठी अपने सियासी गुरु पंडित हरिशंकर तिवारी की मुखालफत करने के कारण हमेशा सुर्खियों में रहे. तिवारी कुछ समय पहले निधन हुआ है. अमरमणि को उनकी जगह भरने वाले ब्राह्मण चेहरे के रूप में देखा जा रहा है.

विधायक से लेकर हत्या के दोषी तक

अमरमणि त्रिपाठी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने के लिए एक असामान्य रास्ता अपनाया और 1981 में सीपीआई के टिकट पर अपना पहला चुनाव लड़ा. जल्द ही, उन्होंने खुद को एक मजबूत व्यक्ति के रूप में खुद को स्थापित कर लिया. पूर्वी यूपी में राजनीति में आगे बढ़ने का यह एक आजमाया हुआ और परखा हुआ तरीका है. महाराजगंज के लक्ष्मीपुर से लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के बाद, अमरमणि कांग्रेस में चले गए और 1989 में इस सीट से पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अपना पहला चुनाव जीता. इसके बाद, उन्हें दिवंगत कांग्रेस के दिग्गज ब्राह्मण नेता हरि शंकर तिवारी के करीबी के रूप में देखा जाने लगा. फिर भी, अमरमणि अधिक समय तक कांग्रेस में नहीं रहे और लोकतांत्रिक कांग्रेस में चले गये. 1996 में उन्होंने लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर लक्ष्मीपुर से जीत हासिल की. जब पार्टी भाजपा में शामिल हो गई, तो अमरमणि भाजपा के मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह के अधीन मंत्री बने रहे.

आरोप लगते ही मायावती ने बसपा से किया निष्कासित

2002 के विधानसभा चुनाव के समय तक अमरमणि बसपा में थे, अपनी सीट से दोबारा जीतने के बाद, उन्हें मायावती सरकार में शामिल किया गया, जिसे भाजपा का समर्थन प्राप्त था. इसके एक साल बाद उभरती हिंदी कवयित्री मधुमिता शुक्ला की उनके लखनऊ स्थित आवास पर दो हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी. उसकी बहन निधि ने अमरमणि पर आरोप लगाते हुए कहा कि मधुमिता उसके साथ रिश्ते में थी और जब उसकी हत्या की गई तो वह गर्भवती थी. मामला तूल पकड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने उन्हें बसपा से निष्कासित कर दिया. मामला सीबीआई को सौंप दिया. एजेंसी ने जांच की और अमरमणि, उनकी पत्नी और अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

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2012 में चेक बाउंस के मामले दर्ज हुए

जेल में रहते हुए, अमरमणि ने 2007 का विधानसभा चुनाव अपनी सीट (अब नौतनवा में विलय) से सपा के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की. बाद में निधि शुक्ला की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को उत्तराखंड स्थानांतरित कर दिया था. 2007 में, मधुमिता की हत्या की साजिश रचने के लिए सीबीआई अदालत ने अमरमणि, मधुमणि और अमरमणि के भतीजे रोहित चतुर्वेदी सहित दो अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. दोषी ठहराए जाने के बाद अमरमणि और मधुमणि को शुरू में हरिद्वार जेल में रखा गया था. हालांकि, 2008 में मधुमणि को गोरखपुर जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था . 2012 में अमरमणि के खिलाफ उत्तर प्रदेश में चेक बाउंस होने के मामले दर्ज किए गए थे.

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फिलहाल वापस बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हैं

जुलाई 2012 में, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने चारों को सीबीआई अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा. अदालत ने अमरमणि के एक अन्य सहयोगी प्रकाश पांडे को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसे पहले रिहा कर दिया गया था. अमरमणि ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया. 2014 में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अमरमणि, उनकी पत्नी और चार अन्य हत्या के दोषियों के लंबे समय तक रहने पर विवाद हुआ था. उनमें से अधिकांश को “अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति” के आधार पर अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया था. विवाद के बाद अमरमणि और मधुमणि को गोरखपुर जेल में स्थानांतरित कर दिया गया. वे फिलहाल वापस बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हैं.

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दोषियों की समयपूर्व रिहाई पर बनाई गई नीति का लाभ मिला

योगी आदित्यनाथ सरकार ने दोषियों की समयपूर्व रिहाई पर बनाई गई नीति के तहत अमरमणि और मधुमणि त्रिपाठी की समयपूर्व रिहाई का आदेश दिया. अभी अमरमणि की रिहाई का मुद्दा लटका रहेगा, क्योंकि मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखा है. पूर्व मंत्री और उनकी पत्नी की रिहाई का विरोध किया है. सुप्रीम कोर्ट में चल रही इस मामले की सुनवाई का भी हवाला दिया है . शुक्ला ने अमरमणि पर “गुमराह” कर रिहाई कराने का नया आरोप लगाया है. निधि ने कहा है कि अमरमणि ने अपनी जेल की सजा का आधे से अधिक समय गोरखपुर के सरकारी बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में बिताया और उनकी रिहाई के बाद उन्हें अपनी जान को खतरा होने का डर है. समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने त्रिपाठियों को रिहा करने के भाजपा सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है और इसे बिलकिस बानो मामले के आरोपियों की सजा माफ करने के बराबर बताया है.

बेटे पर पत्नी सारा सिंह की हत्या का मामला लंबित

दूसरा, 2015 में, अमरमणि के बेटे अमनमणि पर उनकी पत्नी सारा सिंह की हत्या का मामला दर्ज किया गया था, जो फिरोजाबाद जिले में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाई गई थीं. सीबीआई ने कहा कि उसकी जांच में पाया गया कि अमनमणि ने एक दुर्घटना में सारा के मरने की कहानी बनाई जब वह साइकिल चला रही एक लड़की को बचाने की कोशिश कर रहा था.सीबीआई ने उन्हें “पूर्व-निर्धारित योजना” के तहत सारा की गला घोंटकर हत्या करने और दुर्घटना को अंजाम देने का दोषी ठहराया.उनके खिलाफ आरोप पत्र में, सीबीआई ने कहा कि सारा को अमनमणि द्वारा “शारीरिक यातना और क्रूरता” का शिकार बनाया जा रहा था.

गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश का भी आरोप

फिलहाल अमनमणि जमानत पर हैं और मामला अदालत में लंबित है. सारा की मां सीमा ने अमरमणि पर मामले के गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है, साथ ही उनकी रिहाई को लेकर भी आशंका जताई है. “ कुछ जेल अधिकारियों ने जेल के अंदर अमरमणि के अच्छे आचरण की झूठी रिपोर्ट बनाई और सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया. सीमा सिंह कहती हैं, ”मैं सीएम से अमरमणि के बारे में सच्चाई जानने और उसे अदालत में पेश करने का अनुरोध करती हूं.”

योगी नीति जिसने त्रिपाठियों की मदद की

2018 में, आदित्यनाथ सरकार ने आजीवन कारावास वाले कैदियों के लिए एक समयपूर्व रिहाई नीति तैयार की, जिसमें उनके लिए कोई आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई. 2021 में, सरकार ने यह निर्धारित करने के लिए इसमें संशोधन किया कि आजीवन कारावास का दोषी 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद समय से पहले रिहाई के लिए पात्र होगा. 2022 में, राज्य सरकार ने इसमें और संशोधन किया और हत्या जैसे अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए कैदी को बिना छूट के 16 साल या छूट के साथ 20 साल की जेल अवधि पूरी करने के बाद ही रिहा करने पर विचार करने का निर्णय लिया.

इस संशोधित नीति में, सरकार ने 60 वर्ष से कम उम्र के आजीवन कारावास वाले कैदियों की समयपूर्व रिहाई पर भी विचार करने का निर्णय लिया. सजा के 16 साल पूरे करने के बाद त्रिपाठी समय से पहले रिहाई के पात्र थे. इस साल इस साल यूपी जेल विभाग ने नीति के तहत अब तक 691 दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया है. जून में, 2005 में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के सेल्स मैनेजर एस मंजूनाथ की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे छह लोगों में से एक, जो एक भ्रष्टाचार रैकेट का पर्दाफाश करने की कोशिश कर रहे थे, को रिहा कर दिया गया.

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