UP Politics: देश में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद यूपी की सियासत में नई बहस छिड़ गई है. चुनाव परिणाम के बाद भाजपा और उसके सहयोगी दलों का उत्साह जहां सातवें आसमान में हैं, वहीं विपक्षी दलों में इस शिकस्त के बाद तकरार शुरू हो गई है. स्थिति ये है कि लोकसभा चुनाव 2024 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को सत्ता से बेदखल करने का दावा करने वाले इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव एलायंस (I-N-D-I-A) के घटक दल आपस में ही लड़ रहे हैं. मतगणना की तस्वीर साफ होते ही जैसे ही समाजवादी पार्टी को लगा कि कांग्रेस तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता से दूर हो गई है, उसके नेता पार्टी पर हमलावर हो गए. मध्य प्रदेश में कांग्रेस पर गठबंधन नहीं करने से लेकर कमलनाथ के बयानों को लेकर पार्टी नेता एक के बाद एक कांग्रेस को घेरने में जुट गए. सपा नेताओं की ओर से दावा किया गया कि अगर कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सपा को तरजीह दी होती तो तस्वीर इतनी खराब नहीं होती. इन सबके बीच इन नतीजों से कांग्रेस यूपी में जरूर दबाव में आ गई है और सपा अभी से प्रेशर पॉलिटिक्स करती नजर आ रही है.
यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं. वर्ष 2019 में भाजपा के खाते में 62 सीटें आईं थी, जबकि बीएसपी को 10 और सपा को 5 सीटें मिलीं. ये चुनाव सपा और बसपा ने मिलकर लड़ा था और चुनाव के नतीजों के बाद ही दोनों की दोस्ती एक बार फिर टूट गई. वहीं भाजपा के सहयोगी अपना दल को यूपी में 2 सीटों पर जीत मिली. कांग्रेस प्रदेश में सिर्फ एक सीट पर ही सिमटकर रह गई. देखा जाए तो कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर भले ही बड़ी पार्टी हो लेकिन, चुनाव दर चुनाव यूपी में उसकी जमीन बेहद कमजोर हो गई है. नगर निगम, विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हर बार बड़े बड़े दावे करती है. लेकिन परिणाम हमेशा इतिहास दोहराने वाला ही साबित हुआ है. ऐसे में दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवाने और एक राज्य मध्य प्रदेश में सत्ता वापसी का सपना चकनाचूर होने के बाद कांग्रेस भले ही तेलगांना में जीत हासिल करने पर खुशी जता रही हो. लेकिन, वह जानती है कि यूपी में उसकी लड़ाई और कठिन हो गई है.
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दरअसल मध्य प्रदेश में जिस तरह से कांग्रेस ने सपा को गठबंधन की बात करके अंत में झटका दिया, उसी समय से सपा मौका तलाशने में जुटी है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी में अपने हिसाब से फैसले करने की बात कही है. उन्होंने कहा कि यूपी में वह गठबंधन में सीटें मांग नहीं रहे, बल्कि देने वाली स्थिति में हैं. सीधे तौर पर कहा जाए तो सपा यूपी में खुद को छोटे भाई की जगह बड़े भाई के तौर पर पेश कर रही है. ऐसे में इन चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस और भी दबाव की स्थिति में आ गई है. अगर उसने सपा के साथ मध्य प्रदेश में गठबंधन कर लिया होता तो अखिलेश यादव और उनके नेता इतना दबाव नहीं बना पाते. 2024 में विपक्ष के गठबंधन में यूपी से सपा, रालोद और कांग्रेस के साथ जद यू, तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य सहयोगी दल भी सीट मांग सकते हैं. ऐसे में सपा अगर लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों के आधार पर ही सीटों के बंटवारे पर अड़ गई, तो कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं. इस पर भी बसपा ने दोनों गठबंधन से दूरी बनाई है. मायावती एकला चलो की राह पर हैं. उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव अपने बलबूते पर लड़ने के फैसले पर अटल है. ऐसे में विपक्षी दलों को यूपी में भाजपा के साथ बसपा से भी मुकाबला करना होगा.
जेडीयू के वरीष्ठ नेता केसी त्यागी का बयान इस लिहाज से महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि यह नतीजे बेहतर भी हो सकते थे. इसको विपक्ष के गठबंधन से मत जोड़िये. गठबंधन चुनाव में कहीं नहीं था. सिर्फ कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ रही थी. यह इलाके कांग्रेस पार्टी के गढ़ माने जाते है, पिछले चुनाव में भी इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी थी. लिहाजा यह भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार है. इसका गठबंधन से कोई रिश्ता नहीं है. कांग्रेस ने चुनाव से पहले अपने घटक दलों से दूरी बना ली थी. वह इन राज्यों में किसी और दल के उपस्थिति के पक्ष में नहीं थी. जदयू, राजद और सपा ने भी प्रयास किया कि नॉमिनल नॉमिनेशन इन दलों को मिलना चाहिए. समाजवादी आंदोलन का इन इलाकों में काफी असर रहा है. अब यह तय हो गया है कि कांग्रेस पार्टी अपने बलबूते पर भाजपा को पराजित नहीं कर सकती है. क्षेत्रीय दल जो बेहतर स्थिति में हैं, उन्हें कांग्रेस को साथ देना चाहिए. क्षेत्रीय दल संबंधित राज्य में बेहतर करेंगे और भाजपा को चुनौती देंगे. मल्लिकार्जुन खरगे ने 6 दिसंबर को इंडी गठबंधन की बैठक बुलाई है. इस पर भी सभी की नजरें टिकी हुई हैं.
इस बीच उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने चार राज्यों के चुनाव परिणाम पर कहा कि चुनाव परिणामों का बारीकी से विश्लेषण करने से यह समझ आती है कि जनता ने कांग्रेस के मुद्दे पर अपनी सहमति जताई है. यहां तक कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जहां हर चुनाव में सरकार बदलने जैसी परंपरा रही है, वहां भी कांग्रेस प्रत्याशियों की हार का अंतर बहुत कम रहा है. यह साबित करता है कि जातिगत जनगणना का दांव बिल्कुल सही है और जनता ने इस पर अपना समर्थन भी व्यक्त किया है. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने ईडी और सीबीआई जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर यह चुनाव जीता है. चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस नेताओं के घर पर छापे डालकर उनका मनोबल तोड़ने की कोशिश की गई. लेकिन, वे यूपी में इस मुद्दे के सहारे भाजपा को घेरेंगे और उसे हराने का काम करेंगे.
दूसरी ओर भाजपा की बात करें तो इन नतीजों ने पार्टी कार्यकर्ताओं का जोश कई गुना बढ़ा दिया है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित यूपी के अन्य नेताओं ने प्रचार किया. सीएम योगी ने नवंबर में महज 15 दिन में 92 प्रत्याशियों के समर्थन में 57 रैलियां और रोड शो किए. इनमें अधिकांश सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. प्रधानमंत्री मोदी के फैक्टर ने एक बार फिर भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका निभायी. यूपी में राम मंदिर को लेकर भी अभी से भाजपा माहौल बनाने में जुट गई है. जनवरी 2024 में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही पार्टी इसे लेकर पूरे देश में अपने पक्ष में माहौल बनाएगी, इसके लिए अभी से रणनीति तैयार कर ली गई है. ऐसे में राम मंदिर का मुद्दा लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ा मददगार साबित हो सकता है.