Assembly Election : मायावती का पांच राज्यों में चुनाव जीतने के लिए है ये प्लान, चुनाव आयोग से कर दी ये अपील
बसपा सुप्रीमो ने चुनाव आयोग से निष्पक्ष चुनाव की अपील की है. बीएसपी ने मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में गोण्डवाना गणतंत्र पार्टी के साथ चुनावी समझौता किया है. मिज़ोरम को छोड़कर, राजस्थाऩ व तेलंगाना इन दोनों राज्य में अकेले ही बिना किसी से कोई समझौता किए हुए चुनाव लड़ रही है.
लखनऊ. बहुजन समाजवादी पार्टी (BSP) की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ व मिज़ोरम में विधानसभा आमचुनाव अगले महीने कराने की घोषणा का स्वागत. साथ ही चुनाव आयोग के लिए इसे असली चुनौती बताया है. पूर्व मुख्यमंत्री ने आयोग पर सरकारी मशीनरी व धनबल आदि के दुरुपयोग को रोककर चुनाव को पूरी तरह स्वतंत्र व निष्पक्ष कराने की है, जिस पर लोकतंत्र का भविष्य निर्भर है. ख़ासकर सत्ताधारी पार्टी द्वारा चुनाव को गलत दिशा में प्रभावित करने के लिए लुभावने वादे व हवाहवाई घोषणाओं आदि पर अंकुश लगना ज़रूरी, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस भी जारी किया है. जातिवाद व साम्प्रदायिकता का उन्माद व हिंसा के खिलाफ सख़्त कार्रवाई अत्यावश्यक. बीएसपी मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्य में गोण्डवाना गणतंत्र पार्टी के साथ चुनावी समझौता करने के अलावा, मिज़ोरम को छोड़कर, राजस्थाऩ व तेलंगाना इन दोनों राज्य में अकेले ही बिना किसी से कोई समझौता किए हुए चुनाव लड़ रही है और इन राज्यों में अच्छे रिज़ल्ट की उम्मीद करती है. बसपा प्रमुख मायावती ने भाजपा और कांग्रेस पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाते हुए उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर जाति सर्वेक्षण की मांग की है. उन्होंने यह भी कहा कि जातिवादी और सांप्रदायिक पार्टियों पर भरोसा करके ‘बहुजन’ समुदाय की नियति में सुधार नहीं किया जा सकता है.
एससी और एसटी श्रेणियों के आरक्षण को अप्रभावी बनाने की साजिश
पार्टी के संस्थापक कांशीराम को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देते हुए मायावती ने कहा, ”(आगामी) लोकसभा चुनावों के मद्देनजर, जातिवादी और आरक्षण विरोधी दलों/तत्वों, खासकर भाजपा और कांग्रेस में इन दिनों होड़ लगी हुई है.” बहुजनों के वोटों के लिए खुद को ओबीसी समुदाय के नए शुभचिंतक के रूप में पेश करें.” “एससी/एसटी समुदाय, ओबीसी और धार्मिक अल्पसंख्यक इस तथ्य से अवगत हैं कि कांशीराम ने उनके संवैधानिक अधिकारों और कल्याण के लिए लड़ाई लड़ी थी. आरक्षण विरोधी जो जाति सर्वेक्षण के विरोधी हैं, वे वही जातिवादी विचारधारा वाले लोग हैं जो लगातार एससी और एसटी श्रेणियों के आरक्षण को निष्क्रिय और अप्रभावी बनाने की साजिश रचते हैं और उनके आरक्षण का बैकलॉग भी नहीं भरते हैं, ” “इस कारण से, नीति निर्माण में ‘बहुजन’ समुदाय के लोगों की कोई भूमिका नहीं है. मायावती ने दावा किया कि इस अत्यंत दुखद एवं चिंताजनक स्थिति को बदलना आवश्यक है. सही दावेदार और जरूरतमंदों को सामाजिक न्याय और बहुप्रचारित विकास से वंचित कर दिया गया है,” .
Also Read: मायावती ने बामसेफ, डीएस और बसपा के संघर्ष का प्रतीक कांशीराम को उनकी पुण्यतिथि पर ऐसे किया याद , देखें..
गरीबों की दयनीय स्थिति के लिए भाजपा और कांग्रेस को जिम्मेदार
गरीबों की दयनीय स्थिति के लिए भाजपा और कांग्रेस को जिम्मेदार बताते हुए मायावती ने कहा, “बहुजन समाज और ऊंची जाति के गरीब लोग महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी और सड़क, बिजली , पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण पीड़ित हैं. बसपा प्रमुख ने कहा कि लेकिन ऐसे बदलाव के लिए जातिवादी, सांप्रदायिक और संकीर्ण सोच वाले लोगों पर भरोसा करके ‘बहुजन’ समुदाय की नियति कैसे बनाई और सुधारी जा सकती है? अब उन पर भरोसा करना संभव नहीं है. शिक्षा और सरकारी नौकरियों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण के लिए मंडल आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन में बसपा की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, मायावती ने कहा, “लोग कांशी राम के संघर्ष और बोट क्लब पर बसपा द्वारा आयोजित धरने को नहीं भूल सकते. नई दिल्ली में. कांग्रेस और बीजेपी के विरोध के बाद भी बीएसपी ने वीपी सिंह सरकार को इस शर्त पर समर्थन दिया था कि उनकी सरकार मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करेगी. दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी और अन्य दल विलासिता में लिप्त थे.
अब जातिवादी, संकीर्ण सोच वाली ताकत है बड़ी चुनौती
मायावती ने कहा कि बसपा आंदोलन को अब जातिवादी, संकीर्ण सोच वाली, सांप्रदायिक, पूंजीवादी और गरीब विरोधी ताकतों से बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. उनकी अपार संपत्ति और संसाधनों के दुरुपयोग के अलावा, उनकी ‘साम’, ‘दाम’, ‘दंड’, ‘भेद’ की रणनीति का मुकाबला बसपा द्वारा किया जा सकता है. उन्होंने लोगों से ‘मान्यवर श्री कांशी राम जी, आपका मिशन अधूरा, बीएसपी करेगी पूरा’ के वादे को चुनाव में सफल बनाने के लिए भी कहा. वह कहती हैं कि जो राजनीतिक दल और नेता कांशीराम के आदर्शों के विरोधी थे, वे उनकी पुण्य तिथि पर कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं. इन पार्टियों ने पंजाब और यूपी में एक दिन के शोक की भी घोषणा नहीं की. 2006 में उनकी मृत्यु पर सपा सरकार ने कांशीराम जिले का नाम बदल दिया और बसपा सरकार में स्थापित कांशीराम उर्दू, अरबी, फारसी विश्वविद्यालय का नाम बदल दिया. ऐसी जातिवादी, सांप्रदायिक और संकीर्ण सोच वाली पार्टियां बहुजन समुदाय के कल्याण के लिए कैसे काम कर सकती हैं?”