17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Ayodhya Ram Mandir: जहां करते थे श्रीराम पूजा, वह स्थान होगा दुनिया के सबसे बड़े दीये से रोशन, जानें प्लान

अयोध्या में राम त्रेतायुग में तुलसीबाड़ी में ही पूरे परिवार के साथ सरयू के तट पर स्नान करने के बाद वह यहीं पूजन के लिए आते थे. इसलिए प्राण प्रतिष्ठा के दिन रामघाट पर तुलसीबाड़ी में त्रेतायुगीन दिया जलाया जाएगा. इस भव्य आयोजन को गिनीज बुक आफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने की तैयारी है.

अयोध्या (Ayodhya) के राम मंदिर (Ram Mandir) में रामलला (Ramlala) का प्राण प्रतिष्ठा समारोह 22 जनवरी होगी. यह समारोह श्रद्धालुओं के लिए विशाल एवं बेहद अनोखा होगा. प्राण प्रतिष्ठा के दिन रामघाट (Ramghat) पर तुलसीबाड़ी (Tulsibari) में त्रेतायुगीन दिया (Tretayugin Diya) जलाया जाएगा. 28 मीटर व्यास वाले इस दिया को जलाने के लिए 21 क्विंटल तेल लगेगा. इस भव्य आयोजन को गिनीज बुक आफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने की तैयारी है. दिया का नाम दशरथ (Dashrath Deep) होगा. इसे तैयार करने में चारधाम के साथ तीर्थ स्थानों की मिट्टी, नदियों व समुद्र के जल का इस्तेमाल किया गया है. तपस्वी छावनी के संत स्वामी परमहंस (Sant Swami Paramahamsa) ने बताया कि शास्त्रों व पुराणों के अध्ययन के बाद दीपक का आकार त्रेतायुग के मनुष्यों के आकार के अनुसार तैयार कराया जा रहा है. इसके लिए 108 लोगों की टीम बनाई गई है. दिये को तैयार करने में करीब साढ़े सात करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे. इसकी बाती सवा क्विंटल रूई से तैयार हो रही है. स्वामी परमहंस ने कहा कि यह दुनिया का सबसे बड़ा दिया होगा. इसमें देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था, मेहनत और श्रद्धा भी शामिल है. अब तक नौ मीटर व्यास का ही दिया जलाया गया है. इस आयोजन को गिनीज बुक आफ द वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness Book of the World Record) दर्ज कराने के लिए उनके टीम से संपर्क किया गया है.

Also Read: अयोध्या धाम से बेतिया का नाता है सदियों पुराना, आज भी विराजे हैं ‘हमारे राम’
त्रेतायुग में भगवान राम करते थे पूजन

स्वामी परमहंस ने बताया कि भगवान राम त्रेतायुग में तुलसीबाड़ी में ही पूरे परिवार के साथ पूजन किया करते थे. सरयू के तट पर स्नान करने के बाद वह यहीं पूजन के लिए आते थे, इसलिए आज भी इसका नाम रामघाट है. सरकारी दस्तावेजों में भी इसे इसी नाम से जाना जाता है. उनके अनुसार त्रेतायुग में मनुष्य की लंबाई 21 फुट यानी 14 हाथ हुआ करती थी. शास्त्रों व पुराणों में इसका वर्णन मिलता है. सतयुग में 32 फुट यानी 21 हाथ, द्वापर में 11 फुट यानी सात हाथ होती थी. कलयुग में पांच से छह फीट के बीच लंबाई होती है. बता दें कि इतने बड़े दिये की पथाई का काम कुम्हार करेंगे. इसको पकाने के लिए कोलकाता से मशीन मंगाई जा रही है. यह मशीन तीन से चार घंटे में इस दिये को पकाकर तैयार कर देगी.

Also Read: अयोध्या का पुराना नाम क्या है? किसने की थी इसकी स्थापना, जानिए पूरी डिटेल
यह है खास

  • 28 मीटर व्यास है दिये का

  • 108 लोगों की टीम कर रही तैयार

  • 7.5 करोड़ खर्च होने का अनुमान

  • 125 किलो रुई से तैयार होगी बाती

काशी से पहुंचे वैदिक ब्राह्मणों के निर्देश पर हुआ चर्तुस्त्र कुंड का निर्माण

वहीं प्राण प्रतिष्ठा के लिए नौ हवन कुंडों का निर्माण कार्य शोभन योग में बुधवार से शुरू हो गया. काशी से पहुंचे वैदिक ब्राह्मणों के निर्देशन में सबसे पहले चर्तुस्त्र कुंड का निर्माण हुआ. इससे तैयार होने में छह से सात घंटे लगे हैं. चार से पांच दिनों में कुंड निर्माण का कार्य पूर्ण हो जाएगा. काशी से आए पांच सदस्यीय वैदिक आचार्यों का दल सबसे अंत में पद्म कुंड का निर्माण कराएगा. आचार्यों के दल में कर्मकांडी विद्वान अरुण दीक्षित, पंडित सुनील दीक्षित, अनुपम कुमार दीक्षित और पंडित गजानन जोधकर के साथ ही सांगवेद महाविद्यालय के आचार्य और यज्ञकुंड निर्माण पद्धति के विशेषज्ञ पंडित दत्तात्रेय नारायण शामिल हैं. प्राण प्रतिष्ठा के लिए दो मंडपों में कुल नौ हवन कुंड बनाए जाने हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें