अयोध्या: श्रीराम की सार्वभौमिक छवि को अयोध्या में वैश्विक चेतना के उद्गम केंद्र के तौर पर स्थापित किया जाएगा. मंगलवार को सीएम योगी की अध्यक्षता में हुई बैठक में निर्णय लिया गया कि प्रभु श्रीराम को वैश्विक आस्था के केंद्र के रूप में प्रचारित-प्रसारित किया जाए. इसके लिए अयोध्या में देश-विदेश की 18 से ज्यादा रामलीला स्वरूपों का मंचन कराया जाएगा. श्रीराम को केंद्र में रखकर विभिन्न सांस्कृतिक, पारंपरिक लोक कला व आध्यात्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाएगा.
भारत की तरह ही विदेशों में भी रामलीला का मंचन होता है. इसी को देखते हुए अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में मकर संक्रांति 15 जनवरी से 22 जनवरी के बीच विभिन्न रामलीला प्रारूपों का मंचन अयोध्या के विभिन्न सांस्कृतिक केंद्रों में किया जाएगा. एक तरफ जहां देश-विदेश के कलाकार रामायण आधारित रामलीला की प्रस्तुति देंगे तो वहीं लोकपरंपराओं पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे. योगी सरकार इस आयोजन के जरिए वर्तमान के साथ भावी पीढ़ी समेत अयोध्या आने वाले पर्यटकों व श्रद्धालुओं को श्रीराम के आदर्शों व मूल्यों से अवगत कराने का अनुपम प्रयास करने जा रही है.
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रामोत्सव के लिए नेपाल, कंबोडिया, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों के रामलीला मंडलियों के कलाकारों को आमंत्रित किया गया है. साथ ही महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, कर्नाटक, सिक्किम, केरल, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर, लद्दाख और चंडीगढ़ की मंडली भी श्रीराम के जीवन पर आधारित विभिन्न प्रसंगों की प्रस्तुतियां देंगी. तुलसी भवन स्मारक स्थित तुलसी मंच पर देश व विदेश की विभिन्न रामलीलाओं का मंचन प्रस्तावित है. रामकथा पार्क के पुरुषोत्तम मंच, भजन-संध्या स्थल के सरयू मंच, तुलसी उद्यान के कागभुशुंडि मंच व तुलसी स्मारक भवन के तुलसी मंच पर रामलीला मंचन समेत विभिन्न सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व लोक कला आधारित कार्यक्रमों का मंचन व संचालन किया जाएगा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठाधीश्वर भी हैं. उनके मार्गदर्शन में ही राज्य की विभिन्न आध्यात्मिक नगरों में विकास की प्रगति ने उत्तर प्रदेश को नई पहचान दी है. अयोध्या में होने वाले सांस्कृतिक व आध्यात्मिक कार्यक्रमों को भी आस्था के सम्मान से जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसे में इन कार्यक्रमों में उन लोक परंपराओं को भी तरजीह दी जाएगी, जिन लोक परंपराओं ने समाज में प्रभु श्रीराम के आदर्शों को अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से जीवंत बनाए रखा है.