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निकाय चुनाव से पहले, पार्टियों में ‘विद्रोह’ सपा-कांग्रेस ही नहीं, भाजपा भी ‘आंतरिक विरोधियों’ से जूझ रही

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शहर में पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव में किस्मत आजमा रहे 35 बागियों को पार्टी से निष्कासित कर दिया है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के लिए भी टिकट न मिलने से नाराज अपनों को मनाना चुनौती.

लखनऊ: राजधानी में 4 मई को होने वाले निकाय चुनावों से पहले सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को ‘आंतरिक विरोधियों’ की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शहर में अपने ही आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव में किस्मत आजमा रहे 35 बागियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. पार्टी संगठन ने इन बागियों को छह साल के लिए निष्कासित कर दिया. दूसरी ओर, सपा नेता और पूर्व राज्य मंत्री अमित त्रिपाठी और महिला आयोग की सदस्य माला द्विवेदी ने अपने समर्थकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया. भाजपा जिलाध्यक्ष मुकेश शर्मा ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह के निर्देश पर बागियों को खदेड़ने का आदेश जारी किया.

आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे

भाजपा जिलाध्यक्ष मुकेश शर्मा ने आदेश में कहा गया कि ये सदस्य पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. कुछ खुद चुनावी मैदान में हैं, तो कुछ ने अपने परिवार के सदस्यों को मैदान में उतारा है, जो पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा रहे हैं. निष्कासित किए गए लोगों में निवर्तमान पार्षद दिलीप श्रीवास्तव, अमित मौर्य, सुभाषिनी मौर्य, पूर्व डिप्टी मेयर सुरेश अवस्थी और अनुराग पांडेय के नाम शामिल हैं. पूर्व उपमुख्यमंत्री और पूर्व महापौर दिनेश शर्मा का कहना है कि सभी पार्टी कार्यकर्ताओं को निष्कासित करने का निर्णय लेने से पहले उनको पार्टी के खिलाफ किए गए कार्य को समझाने के लिए पर्याप्त समय दिया था.

पार्षद राजू गांधी के भाजपा में जाने से सपा को झटका

हालांकि, समाजवादी पार्टी भी दलबदल से पीड़ित है. पार्षद राजू गांधी के भाजपा में जाने से पार्टी को झटका लगा है. वह कैंट विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा चुनाव के दौरान सपा के आधिकारिक उम्मीदवार थे. पांच बार के कांग्रेस पार्षद गिरीश मिश्रा भी भाजपा में शामिल हो गए. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष वर्मा ने कहा, ‘समाजवादी पार्टी का वोटरों के बीच मजबूत जनाधार है, इसलिए इन दलबदलों का उस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. इस बार, लखनऊ में समाजवादी मेयर और समाजवादी पार्टी के वर्चस्व वाला एलएमसी हाउस होना तय है.

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