बृजभूषण शरण सिंह मामले में भाजपा कर रही वेट एंड वॉच, एक्शन लेने पर इन जनपदों की सियासत हो सकती है प्रभावित
भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह अपने बयानों से लेकर अन्य कारणों की वजह से कई बार विवादों और सुर्खियों में रहे हैं. कहा जा रहा है कि अगर बृजभूषण शरण सिंह पर कानूनी शिकंजा कसता है तो न सिर्फ ये उनके लिए बल्कि पार्टी की सियासत के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है. करीब छह जनपद इससे प्रभावित हो सकते हैं.
Lucknow: भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और कैसरगंज से भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह एक बार फिर विवादों में हैं. महिला पहलवानों के शोषण के आरोप में मुकदमा दर्ज होने के बाद उन्होंने न्यायपालिका पर भरोसा होने की बात कही है. ऐसे में अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या अपने राजनीतिक दबदबे से विरोधियों को धूल चटाने वाले बृजभूषण इस बार खुद पहलवानों के धोबी पछाड़ का शिकार होंगे. सबसे अहम बात है कि उन पर मामला दर्ज होने का अवध और पूर्वांचल के करीबी जनपदों की सियासत पर क्या असर पड़ेगा.
प्रदेश के कई जनपदों में बृजभूषण शरण सिंह का है दबदबा
बृजभूषण शरण सिंह के सियासी दबदबे की बात करें तो गोंडा, बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती जनपद में उनकी मजबूत पकड़ है. हिंदुत्व के मुद्दे पर अपने आक्रामक तेवर के कारण शुरुआत से ही उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है. अंबेडकर नगर में भी उनका दबदबा है. प्रदेश में वर्ष 2021 में पंचायतीराज चुनाव में ब्रजभूषण शरण सिंह ने अपने बलबूते पर भाजपा को बड़ी कामयाबी दिलाई थी. दरअसल तब जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी. ऐसे में गोंडा, बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती और अंबेडकर नगर में ब्रजभूषण ने कमान संभालकर पार्टी के जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित कराने में अहम भूमिका निभाई.
1991 में पहली बार पहुंचे लोकसभा
बृजभूषण ने पहली बार 1991 में चुनाव लड़ा था और आनंद सिंह को रिकॉर्ड एक लाख से अधिक मतों से हराया था. इसके बाद उन्होंने सियासत में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. धीरे धीरे गोंडा, बलरामपुर, अयोध्या समेत कई जनपदों में बृजभूषण का दबदबा बढ़ता चला गया. 1999 के बाद से वह कभी भी चुनाव नहीं हारे हैं. उनकी सीट भले ही बदलती रही हो. लेकिन, हर बार उन्हें कामयाबी मिली.
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2014 से पहले की भाजपा में वापसी
एक समय मतभेद के कारण उन्होंने भाजपा छोड़ दी थी और 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट पर कैसरगंज से जीत दर्ज की. हालांकि इसके बाद अगले लोकसभा चुनाव 2014 से पहले उन्होंने घर वापसी की. इसके बाद 2014 और फिर 2019 लोकसभा चुनाव में कैसरगंज सीट से भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की. बृजभूषण के बेटे प्रतीक भूषण गोंडा से भाजपा विधायक हैं.
विवादों से रहा है पुराना नाता
बृजभूषण शरण सिंह अपने बयानों से लेकर अन्य कारणों की वजह से कई बार विवादों और सुर्खियों में रहे हैं. उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे को अयोध्या में प्रवेश नहीं करने देने की धमकी भी दी थी. वहीं बृजभूषण शरण सिंह उन 40 आरोपियों में से एक थे, जिन्हें 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने के लिए जिम्मेदार कहा गया था. हालांकि लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 30 सितंबर 2020 को कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया.
बृजभूषण शरण सिंह पर 1993 में दाउद इब्राहिम के चार सहयोगियों को अपने घर पर पनाह देने का आरोप लगा. इसे लेकर उन्हें गिरफ्तार भी किया गया. वहीं सपा सरकार में मंत्री रहे पंडित सिंह पर जानलेवा हमले के आरोप में भी वह विवादों में रहे. वर्ष 2004 में राजस्व मंत्री रहे घनश्याम शुक्ला की संदिग्ध परिस्थिति में मौत को लेकर भी उन पर आरोप लगे. वर्ष 2008 में यूपीए के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में भाजपा सांसद होने के बावजूद उ पर कांग्रेस के समर्थन का आरोप लगा. इसके अलावा 15 दिसंबर 2021 को रांची में एक आयोजन में मंच पर एक पहलवान को थप्पड़ मारने का उनका वीडियो वायरल हुआ.
कुश्ती और पहलवानी के हैं शौकीन
पहलवानों के आरोपों के कारण विवादों में आए बृजभूषण शरण सिंह कुश्ती और पहलवानी के शौकीन हैं. अखाड़ों से उनका पुराना नाता रहा है. छात्र जीवन से ही वह राजनीति में सक्रिय रहे और छात्रसंघ अध्यक्ष भी रह चुके हैं. 1988 के दौर में वह भाजपा से जुड़े और हिंदुत्ववादी नेता के रूप में क्षेत्र में लोकप्रिय हुए. इसके बाद 90 के दशक से लेकर आज तक सियासत में उनकी एक ऐसे नेता के रूप में पहचान है, जिसकी एक बड़े क्षेत्र में मजबूत पकड़ है.
भविष्य पर टिकी हैं निगाहें
ऐसे में कहा जा रहा है कि अगर बृजभूषण शरण सिंह पर कानूनी शिकंजा कसता है तो न सिर्फ ये उनके लिए बल्कि पार्टी की सियासत के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है. करीब छह जनपद इससे प्रभावित हो सकते हैं. हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक फिलहाल ऐसा कहना जल्दबाजी होगी. भाजपा नेतृत्व बृजभूषण के राजनीतितक रसूख से अच्छी तरक वाकिफ है.
मिशन 2024 के मद्देनजर ऐसे नेताओं का सक्रिय होना बेहद जरूरी है. इसलिए पार्टी इस प्रकरण में जल्दबाजी में फैसला करती नजर नहीं आ रही है. वह मामले के किसी नतीजे पर पहुंचने का इंतजार कर रही है. अगर भविष्य में किसी परिस्थिति के मद्देनजर पार्टी अपने सांसद पर कोई कार्रवाई करती है या फिर कानूनी शिकंजा कसने की स्थिति पर उनका टिकट काटा जाता है तो इसका जरूर राजनीतिक प्रभाव देखने को मिल सकता है.