Lucknow News: भारतीय धर्म शास्त्र अपने अंदर काफी गूढ़ तथ्यों को सहेजे हुए है. भारत पुरुष प्रधान देश कहा जाता है. मगर यहां महिलाओं का सम्मान कम नहीं है. भारतीय ऋषि-मुनियों द्वारा भारत में कई त्योहार महिलाओं, कन्याओं के सम्मान में शास्त्रों में कहे गए हैं. भारतीय नवरात्रि (चैत्र एवं अश्विन) महिला सम्मान का प्रतीक है. इस बार चैत्र नवरात्रि 2 से 11 अप्रैल तक रहेगा. महाष्टमी 9 अप्रैल जबकि नवमी तिथि 10 अप्रैल को होगी. इस पावन पर्व के बारे में विस्तार से बता रहे हैं आचार्य जितेंद्र शास्त्री…
2 अप्रैल, दिन शनिवार प्रात: 6:24 से 8:29 तक एवं घट स्थापना का अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:05 से दोपहर 12:50 बजे तक रहेगा.
इस समय घट स्थापना से बचें- प्रात: 5:55 से 6:45 तक तथा 6:45 से 7:38 तक.
भारतीय मान्यता के अनुसार देवताओं के वरदान से अत्यन्त मजबूत एवं क्रूर हो चुके महिषासुर का आतंक पृथ्वी पर काफी बढ गया था, मानव को छोड़िए देवता गंधर्व सभी महिषासुर के आतंक से आतंकित हो चुके थे. इसको ऐसे-ऐसे वरदान प्राप्त थे जिसके कारण महिषासुर का सामना देवताओं द्वारा नहीं किया जा सकता था. देवता असमर्थ हो चुके थे. ऐसी स्थिति में समस्त देवताओं ने मिलकर माता पार्वती की आरधना की और उन्हे प्रशन्न किया. जब माता पार्वती प्रसन्न हुई तो देवताओं ने उनसे अपनी रक्षा का अनुरोध किया, देवताओं के आग्रह से माता पार्वती ने अपने अंश से नौ रूप प्रकट किये देवताओं ने उन्हे अपने अमोघ अस्त्र दिये जिससे नौ दुर्गा शक्ति सम्पन्न हुई एवं देवताओं की रक्षा हेतु महिषासुर के संहार के लिए विभिन्न चरित्र अपनाकर महिषासुर का अंत किया. नौ दुर्गा के इन नौ स्वरूपों का क्रम चैत्र माह प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होकर नौमी तिथि तक चलता रहा.
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शारीरिक, मानसिक को शुद्ध करते हुए चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा की तिथि को शुभ मुहूर्त में घट स्थापना करनी चाहिए, कलश में सप्तमृतिका, पंचरत्न, गंगाजल डालकर कलश को गले तक भर दें उसमें सुपाणी, हल्दी, दुर्वा डाल देना चाहिए. कलश को शुद्ध मिट्टी में जौ मिश्रित करके उसके ऊपर सप्तधान्य डालकर उसके ऊपर स्थापित करना चाहिए, कलश में पंचपल्लव (पीपल, पाकड, बरगद, गूलर, आम) डालकर उसके ऊपर एक मिट्टी का ढक्कन लगा दें जिसमें शुद्ध अक्षत रखते हैं अक्षत के ऊपर जलयुक्त नारियल को कलावा एवं लाल चुनरी में लपेटकर स्थापित कर दें.
नौ दुर्गा की पूजा में सर्वप्रथम गौरी – गणेश, नवग्रह इत्यादि की पूजा के बाद श्रीदुर्गासप्तशती का सम्पूर्ण पाठ( त्रयोदश अध्याय तक) करना चाहिए. यदि समयाभाव रहे तो कम से कम कवच, अर्गलास्तोत्रम्, कीलकम् एवं मध्यमचरित्र (द्वितीय अध्याय से चतुर्थ अध्याय तक) का पाठ एवं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् एवं सिद्धकुंजिकास्तोत्रम् का अवश्य पाठ करना चाहिए. यदि संस्कृत नहीं आती तो हिन्दी में भी पाठ किया जा सकता है.
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“या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यैनमस्तस्यै नमो नम:..”
नवरात्रि महिला सशक्तीकरण एवं बेटियों के सम्मान का प्रतीक त्योहार है, क्योंकि इसमें मात्रिस्वरूपा देवी की अराधना तो की ही जाती है. नवमी तिथि को कन्याओं का चरण धुलकर, नववस्त्र धारण कराकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है उसके बाद कन्याओं को शुद्ध पकवान खिलाया जाता है एवं उनका चरण स्पर्श कर प्रणाम किया जाता है. यदि घर में बिटिया का जन्म नहीं होगा अथवा बिटिया का जन्म भार का प्रतीक माना जायेगा तो नवरात्र में कन्या पूजन के लिए हम कन्याएं कहां से लाएंगे. एक तरफ जहां यह त्योहार आस्था का प्रतीक है. वहीं, यह पर्व महिला सशक्तीकरण एवं बेटियों के सम्मान का प्रतीक है.