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कोरोना महामारी के समय मानसिक दबाव नहीं झेल पा रहे लोग, कर रहे हैं आत्महत्या

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के एक गांव में 37 वर्षीय विवेक ने कथित रूप से अपनी पत्नी और तीन बच्चों को जहर देने के बाद आत्महत्या कर ली. बांदा जिले में प्रवासी श्रमिकों छुटकू और रामबाबू ने भी खुदकुशी कर ली. आत्महत्या की ये तीनों घटनाएं साफ-साफ बयां करती हैं कि लोग मानसिक दबाव नहीं झेल पा रहे हैं, खास तौर से बेरोजगारी से जुड़े उस दबाव का जो कोविड-19 महामारी के कारण सामने आ खड़ा हुआ है.

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के एक गांव में 37 वर्षीय विवेक ने कथित रूप से अपनी पत्नी और तीन बच्चों को जहर देने के बाद आत्महत्या कर ली. बांदा जिले में प्रवासी श्रमिकों छुटकू और रामबाबू ने भी खुदकुशी कर ली. आत्महत्या की ये तीनों घटनाएं साफ-साफ बयां करती हैं कि लोग मानसिक दबाव नहीं झेल पा रहे हैं, खास तौर से बेरोजगारी से जुड़े उस दबाव का जो कोविड-19 महामारी के कारण सामने आ खड़ा हुआ है.

महामारी के कारण लॉकडाउन के चलते शहरों में नौकरियां गंवाने के बाद लाखों लोग अपने अपने गांव-घर को लौटने पर मजबूर हुए. छुटकू (33) और रामबाबू (40) भी इनमें से थे. छुटकू हरियाणा में मजदूरी करता था और उसका शव अलिहा गांव के उसके कमरे में पंखे से लटकता मिला. रामबाबू लॉकडाउन के दौरान दिल्ली से अपने गांव लौटा था और उसने भी फांसी लगा ली. वह दिल्ली में दिहाड़ी मजदूर था. छुटकू और रामबाबू दोनों के ही परिवार वाले कहते हैं कि कामकाज नहीं था इसलिए वे मानसिक अवसाद से जूझ रहे थे.

बाराबंकी में विवेक ने कारोबार शुरू करना चाहा, लेकिन सफल नहीं हुआ. आर्थिक दिक्कत आयी तो उसने कथित तौर पर पत्नी अनामिका, बच्चों सात साल की रितू, दस साल की पियम और पांच साल के बबलू को जहर देने के बाद फांसी लगा ली. घटना जून की है. विवेक ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि वह आर्थिक तंगी के चलते अपने परिवार को कोई सुख नहीं दे पाया इसलिए ऐसा कदम उठा रहा है.

किंग जार्ज मेडिकल विश्वद्यालय (केजीएमयू) के मनोरोग विभाग में एडिशनल प्रोफेसर डॉ. आदर्श त्रिपाठी ने कहा कि महामारी की शुरुआत से ही बहुत असुरक्षा रही क्योंकि बीमारी नयी थी और इससे निपटने के लिए अपनाये गये लॉकडाउन सहित विभिन्न उपायों का लोगों पर सीधा असर हुआ. उन्होंने कहा कि आर्थिक गतिविधियां रूकीं, कारोबार बंद हुए, भविष्य को लेकर असुरक्षा बढी, नौकरियां गयीं, शादी ब्याह रूके, शिक्षा रूकी तो सबका सीधा मनोवैज्ञानिक असर पड़ा. इसके चलते कई लोग अकेलापन महसूस करने लगे क्योंकि तनाव मुक्त रहने के लिए समाज में उठने बैठने, बोलने बतियाने का सिलसिला रूक गया. अस्पतालों का ध्यान भी केवल कोविड-19 पर केन्द्रित हो गया. जो इस दबाव को नहीं झेल पाये, उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया.

त्रिपाठी ने कहा कि दो से तीन महीने के आंकड़े देखें तो पाएंगे कि केजीएमयू से टेलीमेडिसिन के जरिए सलाह लेने वाले 26 हजार लोगों में से सात हजार ने मनोरोग विभाग से मदद मांगी. उनका कहना है, ‘‘इससे पहले अगर विश्वविद्यालय में दस हजार लोग आते थे तो केवल 300 रोगी ही मनोरोग विभाग के होते थे. 15 से 25 वर्ष की आयु वर्ग वाले आत्मघाती कदम उठाने की दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील हैं.” ऐसा कोई आंकड़ा हालांकि नहीं है कि महामारी के दौरान कितनी आत्महत्याएं हुईं. हापुड़ और बरेली जिलों में मार्च के दौरान दो लोगों ने कथित तौर पर सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उन्हें भय हो गया कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित हैं. हापुड में आत्महत्या करने वाले ने तो बाकायदा अपने सुसाइड नोट में परिवार के लोगों से कोरोना वायरस संक्रमण की जांच कराने के लिए कहा था.

Upload By Samir Kumar

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