Holi Exclusive: मत कहो होली केवल हिन्दुओं का त्योहार, मुगलों ने मारी भर- भर पिचकारी, बादशाह तक ने रचे होली पद
''होली (होरी) हिन्दुओं का एक त्योहार है. यह कहना अपनी गंगा जमुनी तहजीब के रंगों को फीका करना है. साथ ही हम यह उजागर कर देते हैं कि पर्व- त्योहार की परंपरा और इतिहास से हम कितने दूर होते जा रहे हैं. धर्म- आधुनिकता के चश्मा से झांककर बहाने होली के सार- सार को उड़ाकर थोथा- थोथा को गह रहे हैं. ''
लखनऊ. बसंत पंचमी से शुरू हुआ होली का उल्लास चरम की ओर बढ़ रहा है. भारत और भारत के बाहर होली के रंग में डूबे भारतवंशी यह जानकर हैरान होंगे कि होली की खुमारी में मुगलों के दरबारों में भी भर- भर पिचकारी मारी गयीं हैं. ब्रज की जिस होली की पूरी दुनिया दीवानी है, उसके लिये मुगल बादशाहों ने गीत-पद लिखे हैं. न केवल पद लिखे हैं बल्कि हाेली के पद का गायन हुरियारे किस राग में करेंगे यह तक बताया गया है.
शाहआलम सानी ने ब्रज की होरी पर रचे पदहोली और मुगल काल की जब भी बात चलती है अमीर खुसरो, नजीर की रचना सभी की जुबां पर आ जाती हैं. आप यह भी जानते होंगे कि बादशाह अकबर, जहांगीर, शाहजहां, शाहआलम, मोहम्मद शाह रंगीला भी होली खेलते थे. लेकिन आप यह जानते हैं कि दिल्ली में मुगल बादशाह ऐसा भी रहा है जिसने ब्रज की होरी के पद रचे हैं. ब्रज संस्कृति शोध संस्थान गोदाबिहार वृन्दावन में उसके लिखे होरी पद संरक्षित हैं.
मुगलिया सल्तनत के सोलहवां बादशाह शाह आलम सानी (1728 – 1806 ) द्वारा रचित हिन्दी पदों को ‘नादिराते शाही’ नामक पुस्तक में संग्रहीत किया गया है.इसमें होली पर रचित 60 पद हैं. जितने अच्छे शायर थे, उतनी ही पकड़ उनकी फारसी और पंजाबी भाषा पर भी थी. बादशाह शाह आलम द्वारा रचित उर्दू-फारसी के पद तो कई पुस्तकालयों में सुरक्षित हैं लेकिन, हिंदी में लिखे पद केवल रामपुर रजा लाइब्रेरी में संरक्षित हैं.
शाह आलम सानी ने राधा -कृष्ण के प्रेम, हंसी ठिठोली और छेड़छाड़ फाग भरी गारियों को पदों में पिरोया है. सोरठ होरी, जैजैवंती होरी, गौंड होरी, भटियार होरी के पद होली गायन में उच्च स्थान रखते हैं. बादशाह अकबर, जहांगीर, शाहजहां, शाहआलम, मोहम्मद शाह रंगीला आदि के समय भी मुगल दरबार में होली, दीपावली, बसंत उत्साह के साथ मनाने के प्रामाणिक संदर्भ संस्थान में संग्रहीत हैं. इनको देखने के लिए दूर-दर से लोग आज भी आते है.गोपाल शर्मा , प्रकाशन अधिकारी , ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, वृंदावन
होरी खेलन आई सबे मिल अपने कंत सूं सांवरी गोरी
हाथ भरी पिचकारी है रंग की,अबीर गुलाल लिए भर झोरी
दफ, मिरदंग बजावत गावत केसर रंग में है सब बोरी
खेलत फाग में घात सूं प्यारे कन्हिया ने मोरी बांह मरोरी
गौंड होरी पद ….गा गा गारियांअबीर गुलाल भर भर झोरियां और केसर रंग लिये पिचकारियां
सब मिल करि हैं किलोल नारियां, एक एक अंग संग दे दे तारियां
घर से निकसीं नारियां फूलन गेंद मारियां खेलत फाग गा गा गारियां
स्याम कन्हियां ने बांह गही, तब भूल गयीं सब खेल को हारियां
‘ईद ए गुलाबी ‘-‘आब ए पलाशी’ में रंगे कई बादशाहमुगलकाल में होली के त्योहार को ‘ईद ए गुलाबी ‘, ‘आब ए पलाशी’ भी कहा जाता था. इस मौके पर दिल्ली के लाल किला के पास मेला लगता था.राजदरबार के लोग इसमें बढ़चढ़कर हिस्सा लेने के दृष्टांत विभिन्न पुस्तकों में मिलते हैं. अमीर खुसरो ने ‘आज रंग है, हे मां रंग है …री’ तो बहादुर शाह जफर ने ‘क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी…’लिखकर खुद को होली के दीवानों में शुमार करा दिया है. शायर मीर तकी मीर ने भी खूब लिखा है. बादशाह जहांगीर ने तुज़ुक ए जहांगीर में ‘एक दिन है होली और माना जाता है कि यह साल का आखिरी दिन है’ लिखकर होली को सभी पर्व- त्योहार से ऊंचा बना दिया है.