Emergency Anniversary: आपातकाल को आज भी नहीं भूले हैं लोकतंत्र सेनानी, केशव मौर्य बोले- कांग्रेस ने किया पाप

आपातकाल के दिन को भाजपा ने जहां काला दिवस के तौर पर मनाया. वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ ने इमरजेंसी में कांग्रेस का विरोध करने वाले नेताओं के अब उसके साथ आने पर तंज कसा. इसके अलावा लोकतंत्र सेनानियों ने भी उस दौर की याद करते हुए कहा कि वह अभी तक इसे भूल नहीं हैं.

By Sanjay Singh | June 25, 2023 2:15 PM

Emergency Anniversary: देश में 1975 को आज ही के दिन आपातकाल घोषित किया गया था. इस दौरान सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले लोगों को सीधे जेल भेज दिया गया. लोकतंत्र के अध्याय में इमरजेंसी को कांग्रेस विरोधी दल हमेशा से काला दिन बताते आए हैं.

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने आपाताकाल को याद करते हुए कहा कि सभी विपक्षी दल चाहे वह आप, सपा या टीएमसी हो, हर कोई आज उस पार्टी कांग्रेस के साथ खड़ा है, जिसने देश में 21 महीने के लिए आपातकाल लगाया था. हम इस दिन को काला दिवस के रूप में मनाते हैं. सभी लोग कांग्रेस मुक्त देश चाहते हैं. कांग्रेस ने आपातकाल लगाकर पाप किया था.

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव ने कहा कि 25 जून 1975 को तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा लगाया गया आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का सबसे दुखद अध्याय था. जो लोग कभी आपातकाल का विरोध कर रहे थे, आज वह ही सत्ता में बैठकर देश को तानाशाही की ओर ले जा रहे हैं व जनता पर अघोषित आपातकाल थोपे हुए हैं.

वहीं इस दौरान लंबे समय तक जेल की सलाखों के पीछे रहे यूपी के लोकतंत्री सेनानी भी आज तक इसे भूल नहीं पाए हैं. उनके जहन में आपातकाल के दर्द की यादें अभी भी जिंदा हैं. इंदिरानगर निवासी राजेंद्र तिवारी ने बताया कि वह लखनऊ विवि के छात्रावास में रहते थे. जनसंघ से जुड़ाव होने के कारण वह नाना जी देशमुख का आदर करते थे. जनसंघ की ओर से उन्हें राजधानी आए नानाजी देशमुख को चिट्ठी देने के लिए कहा गया.

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वह पत्र लेकर निकले तो किसी मुखबिर ने कैसरबाग पुलिस को सूचना दे दी. पुलिस ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की तो उन्होंने पहले नानाजी देशमुख की गुप्त प्रत‍ि को चबा लिया. फिर कागज के दूसरे बंडल को नाले में फेंक दिया. इसके बाद उन पर पुलिस का कहर टूटा और खूब पिटाई की गई.

30 जून 1975 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. जेलर नाराज होने पर भंडारे में आटा गूंथने को कहता, जिससे हाथों में छाले पड़ जाते थे. जब खाना खाने बैठता था तो आगे से थाली खींच लेते थे. बेहद यातनाएं दी गईं.

प्रयागराज के कृपा शंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि 25 जून 1975 को भोर में उन्हें आवास से गिरफ्तार कर कोतवाली ले जाया गया, जहां पहले से ही डॉ. मुरली मनोहर जोशी, जनेश्वर मिश्र सहित अन्य बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लाया गया था. दूसरे दिन सभी को केंद्रीय कारागार नैनी में जवाहरलाल नेहरू बैरक में बंद कर दिया गया. दोपहर में मीरजापुर से राजनाथ सिंह और इटावा से मुलायम सिंह यादव को भी गिरफ्तार कर लाया गया.

कृपा शंकर बताते हैं कि इसके बाद उन्हें भोपाल सेंट्रल जेल भेज दिया गया. जहां पहले से ही लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी बाजपेई तथा चंद्रशेखर जैसे बड़े मौजूद थे. जेल में हम लोगों को अखबार पढ़ने तक की सुविधा नहीं थी. परिवार से मिलना तो दूर उन्हें चिट्ठी तक नहीं लिख सकते थे. जेल में दिए गए कष्टों को याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं और आंखों में आंसू आ जाते हैं.

उन्होंने बताया कि मीसाबंदी भारत सरकार से माफी मांग कर बाहर आ गए थे. लेकिन कई ने ऐसा नहीं किया. वह दो साल तक जेल में रहें. आपातकाल समाप्त होने के बाद उन्हें 10 मार्च 1977 को भोपाल सेंट्रल जेल से रिहा किया गया.

हाथरस के लोकतंत्र सेनानी दिनेश चंद्र वार्ष्णेय उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि देखा जाए तो आपातकाल की नींव 12 जून, 1975 को ही पड़ गई थी. इस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग का दोषी पाया था और उनके चुनाव को खारिज कर दिया था. इसके साथ ही इंदिरा गांधी पर छह वर्ष तक चुनाव न लड़ने और किसी भी तरह का पद सम्भालने पर भी रोक लगा दी गई थी.

इसके बाद 24 जून, 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला बरकरार रखा था. हालांकि, इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दे दी गई थी. ऐसे में जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वान किया. इसके चलते इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था.

केशव देव गर्ग ने बताया कि इस दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था. इमरजेंसी के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण अडवाणी, मुलायम सिंह यादव समेत विपक्ष के तमाम बड़े नेता जेलों में ठूंस दिए गए थे. आपातकाल लगते ही अखबारों पर सेंसर बैठा दिया गया. हर मामले में सरकार का पहरा और पैनी नजर होती थी. कोई भी सरकार की मंशा के खिलाफ कुछ करने की कोशिश करता, तो उसे जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया जाता था.

बिसावर के तुलसीदास अग्रवाल आपातकाल की याद करते हुए कहते हैं कि उस समय जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर गरीब मजदूरों की जबरन नसबंदी कराई गई. हर तरफ दहशत का माहौल था. आज भले ही आपातकाल को भुलाने की कोशिशें की जाती हैं. लेकिन, हम लोग काले दिनों के अनुभवों को कैसे भूल सकते हैं.

सोमप्रकाश वार्ष्णेय ने कहा कि आपातकाल की घोषणा के बाद कृष्णा वैदिक पुस्तकालय में मीटिंग करते हुए सुल्तान सिंह पचौरी, मास्टर प्रताप सिंह वर्मा, सुरेश चंद वार्ष्णेय, कैलाश चंद, श्री गोपाल जैसवाल, प्रेम बल्लभ, माधव प्रकाश आदि के खिलाफ केस दर्ज किया गया था. आपातकाल के खिलाफ भूमिगत गतिविधियों का मुख्य केंद्र उनका आवास और वेदराम प्रजापति का आवास हुआ करता था, जो आबादी से दूर था. रात में लोकतंत्र सेनानी पुलिस से बचने के लिए यहीं शरण लिया करते थे. आज भी आपातकाल से जुड़ी हर बातें जहन में हैं, जिन्हें भूलने की कोशिश करें तो भी नहीं भूल पाएंगे.

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