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UP Crime: जिंदा रहते ही खुद का कराया कर्मकांड, फिर दो दिन बाद हो गई मौत, जानें पूरा मामला

एटा में अपने जिंदा रहते खुद का मृत्यु भोज करवा चर्चा का विषय बने हकीम सिंह की 2 दिन बाद मौत हो गई. हाकिम सिंह ने अपने भाई पर जमीन कब्जे का आरोप लगाया है. यहां जानें हकीम सिंह को खुद का मृत्यु भोज क्यों करना पड़ा था.

यूपी के एटा में जिंदा रहते अपनी मौत के बाद के सभी कर्मकांड पूरा करवा चर्चा में आने वाले 70 वर्षीय बुजुर्ग की 2 दिन बाद मृत्यु हो गई. सकीट थाना क्षेत्र के मुंशीनगर निवासी हाकिम सिंह भजन-कीर्तन करते थे. गांव में उन्हें सभी लोग साधु बाबा के रूप में जानते हैं. भगवा रंग के कपड़े पहने हाकिम सिंह की शादी हो गई थी. लेकिन जब लंबे समय तक उनकी कोई संतान नहीं हुई, तो उनकी पत्नी छोड़कर चली गई थी. उन्होंने सोमवार को एक हजार लोगों को मृत्यु भोज करवाया अपनी आंखों के सामने ही तेरहवीं और पिंडदान की रस्मों को अदा किया. यह बात आसपास के कई गांवों में चर्चा का विषय बना हुआ था. लोगों ने मृत्यु भोज किया और चर्चा करते रहे कि आखिरकार बुजुर्ग ने ऐसा क्यों किया? हाकिम सिंह ने बताया था कि मेरी शादी बिहार में हुई थी. मेरी पत्नी छोड़कर चली गई. इसके बाद से मैं अकेला ही रह रहा हूं. मैंने अपने मृत्यु भोज में 50 हजार रुपए खर्च कर किए. मेरे 5 भाई हैं. वे लोग मेरे साथ मारपीट करते रहे हैं. मेरे हिस्से की जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. कुछ जमीन तो उन्होंने ले भी ली है. बाकी बची जमीन भी वो हड़प लेते.

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Up crime: जिंदा रहते ही खुद का कराया कर्मकांड, फिर दो दिन बाद हो गई मौत, जानें पूरा मामला 2
डर सताने लगा कि मरने के बाद मेरा क्या होगा?- हाकिम सिंह

उन्होंने आगे बताया था कि मैं अकेला शरीर का आदमी और अब तो शरीर से भी लाचार हो गया हूं. भाइयों की बहू और पूरा परिवार है. उन्होंने आगे कहा कि शुक्रवार को मेरी तबीयत खराब हो गई. मुझे बहुत ठंड लग रही थी. मुझे डर सताने लगा कि मरने के बाद मेरा क्या होगा? भाई-भतीजे और परिवार के किसी सदस्य पर मुझे यह भरोसा नहीं हैं कि मृत्यु होने के बाद वे लोग कुछ करेंगे. इसके बाद मेरे मन में आया कि अपने सामने ही सभी कर्मकांड करवा लूं, ताकि मरने के बाद मुझे मोक्ष मिल सके. पता नहीं ये लोग कुछ करवाएंगे भी या नहीं.

हाकिम सिंह ने भाई पर लगाया जमीन कब्जे का आरोप

हाकिम सिंह ने बताया था कि मेरे हिस्से में 10 बिसवा जमीन थी. इसे मैंने तुरंत बेच दिया. इससे जो पैसे मिले उससे अपने जान-पहचान के पंडितों और परिचितों की मदद से मृत्यु भोज करवाया. मैंने सभी गांव वालों और रिश्तेदारों को आमंत्रित किया था. बड़ी संख्या में लोग पहुंचे, सभी ने पूरा सहयोग किया. गांव के लोगों ने भोज करवाया. पंगत में खाने खिलाने के लिए गांव के बाल-बच्चे लगे रहे. पूरे कर्मकांड के बाद हाकिम सिंह ने कहा कि अब मैं कम से कम चैन से मर सकूंगा, अब मुझे यह भय भी नहीं सताएगा कि मरने के बाद मेरी तेरहवीं भी होगी कि नहीं. वहीं स्थानीय लोगों ने बताया कि हाकिम सिंह के भाइयों ने एक बार मारपीट की थी तब उनका हाथ टूट गया था. इसके बाद से हाकिम सिंह इधर-उधर दुकानों में रहकर जीवन व्यतीत करते थे. अब उन्होंने ऐसा कदम उठाया है, तो शायद परिवार के लोग कुछ समझें. फिलहाल मौके पर परिवार के लोग पहुंचे या नहीं, इसकी जानकारी नहीं हो सकी है.

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