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पूर्व CJI रंजन गोगोई ने आत्मकथा ‘जस्टिस फॉर द जज’ में अयोध्या फैसले पर लिखी दिल की बात, UP की राजनीति पर असर!

इस किताब ने अयोध्या राम जन्मभूमि को लेकर बरसों से चली आ रही स्थानीय राजनीति में भी हलचल पैदा कर दी है. इस किताब का जिक्र वहां के चौराहों पर हो रहा है. किताब के पक्ष और विपक्ष में लोगों के बीच चर्चा की जा रही है.

Ayodhya News: एक किताब इन दिनों ‘Justice for the Judge: An Autobiography’ काफी चर्चा में है. अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए जिस निर्णय ने सारे रास्ते खोले उसका इस किताब में विस्तार से वर्णन किया गया है. इसके लेखक हैं देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई. उन्होंने अपनी इस किताब में अयोध्या मुद्दे को लेकर कई रोचक खुलासे किए हैं. इसके बाद से अयोध्या मंदिर को लेकर राजनीतिक चर्चा का बाजार गर्म हो गया है.

इस किताब ने अयोध्या राम जन्मभूमि को लेकर बरसों से चली आ रही स्थानीय राजनीति में भी हलचल पैदा कर दी है. इस किताब का जिक्र वहां के चौराहों पर हो रहा है. किताब के पक्ष और विपक्ष में लोगों के बीच चर्चा की जा रही है. यकीनन विधानसभा चुनाव 2022 में भी इस विषय को लेकर कुछ समीकरण बन सकते हैं.

गोगोई ने अपनी किताब में लिखा है, ‘अयोध्या मामला भारत की न्यायापालिका के लिए मानव जाति की लंबी यात्रा में एक अमूल्य योगदान देने का अवसर था.’ देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने अपनी आत्मकथा में बतौर मुख्य न्यायाधीश रहते हुए पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सभी पक्षों की ओर से 40 दिनों तक लगातार बहस के साथ मामले की लंबी सुनवाई का विस्तार से जिक्र किया है. इसमें उन्होंने यह भी बताया है कि किस तरह से इस फैसले में हर तथ्यों पर गौर करते हुए निर्णय लिया गया था. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है, ‘इस फैसले के माध्यम से अलग-अलग विश्वासों के बीच के विवाद को खत्म करने के लिए दुनिया के तमाम समुदायों के बीच विश्वास कायम करने की उम्मीद शांतिपूर्ण और न्यायिक तरीकों से की गई थी.’

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अपनी इस चर्चित आत्मकथा में उन्होंने यह भी लिखा है कि इस सुनवाई को ज्यादा से ज्यादा देतर तक टालने की कई कोशिशें भी की गईं.’ उन्होंने जिक्र किया है कि अयोध्या मामले को लेकर देश-दुनिया की नज़र हर सुनवाई पर हुआ करती थी. इसी वजह से किसी भी शख्स को अदालत में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी गई थी. इस महासुनवाई के आखिरी दिन का वर्णन उन्होंने बरी बारीकी से किया है. वे लिखते हैं, ‘सुनवाई के दौरान दोपहर के करीब जस्सटिस गोगोई को सुप्रीम कोर्ट के महासचिव से एक कागज की पर्ची मिली, जिस पर लिखा था कि अयोध्या मामले में एक पक्ष का प्रतिनिधि सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश करने की अनुमति मांग रहा है.’ इसी क्रम में उन्होंने आगे लिखा है, ‘जस्टिस बोबडे मेरी दाईं ओर बैठे थे. जस्टिस चंद्रचूड़ मेरी बाईं ओर थे. उन्होंने नोट के बारे में पूछा. पांच न्यायाधीशों की बेंच द्वारा सुनवाई के बीच रजिस्ट्रार से किसी नोट का मिलना असामान्य है.’

उन्होंने फैसले के मसौदे को भी विस्तार से लिखा है. किताब में दर्ज है, ‘न्यायाधीश हर दिन की सुनवाई के बाद तर्कों पर चर्चा करते थे मगर सुनवाई के अंतिम कुछ दिनों के पहले तक यह राय बननी शुरू नहीं हुई थी कि भूमि को हिंदू पक्षों के हिस्से जाना चाहिए. राम मंदिर बनाने और मुस्लिम पक्षकारों को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में उपयुक्त और प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ वैकल्पिक भूखंड की अनुमति दी जानी चाहिए.’

तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने उस बेंच के ऐतिहासिक फैसले के बाद हुई पार्टी का भी जिक्र अपनी इस आत्मकथा में किया है. उन्होंने लिखा है, ‘राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद पर 9 नवंबर, 2019 को सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला सुनाने के के बाद मैं उस बेंच के अन्य जजों को डिनर के लिए होटल ताज मानसिंह लेकर गया था. वहां सभी ने पसंदीदा डिनर ऑर्डर करने के साथ ही वाइन पी थी.’ बता दें कि इस ऐतिहासिक फैसले को सुनाने वाली पीठ में सीजेआईरंजन गोगोई सहित सीजेआई नामित एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजार भी शामिल थे.

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