Exclusive: यूपी विधानसभा उपाध्यक्ष के चुनाव में SP प्रत्याशी होंगे नरेंद्र वर्मा? नितिन अग्रवाल को देंगे टक्कर

Exclusive: यूपी विधानसभा उपाध्यक्ष के चुनाव में सीतापुर से विधायक नरेंद्र वर्मा सपा प्रत्याशी होंगे. वे बीजेपी के नितिन अग्रवाल को टक्कर देंगे. माना जाता है कि नरेंद्र वर्मा की कुर्मी वोटों में गहरी पैठ है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 14, 2021 4:45 PM

Exclusive: उत्तर प्रदेश विधानसभा उपाध्यक्ष के चुनाव की तिथि घोषित होने के बाद लखनऊ में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ीं हैं. माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के सीतापुर से विधायक और सपा सरकार में तीन बार मंत्री रह चुके नरेंद्र वर्मा को प्रत्याशी बनाने का मन बना चुकी है. भाजपा पहले ही वैश्य समाज से आने वाले नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल को प्रत्याशी बनाने की तैयारी में है. ऐसे में सपा खेमे से नरेंद्र वर्मा के नाम की चर्चा बढ़ने से यह चुनाव अब रोचक होने के मोड़ पर है.

कुर्मी वोटों में गहरी पैठ रखते हैं नरेंद्र वर्मा

वर्तमान में सपा से विधायक नरेंद्र सिंह वर्मा सीतापुर की महमूदाबाद सीट से छह बार चुनाव जीत चुके हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय से परास्नातक की शिक्षा प्राप्त कर चुके नरेंद्र सिंह वर्मा के ऊपर किसी प्रकार के कोई आपराधिक मामले भी दर्ज नहीं हैं और उत्तर प्रदेश के मध्य एवं तराई इलाकों के कुर्मी समुदाय में उनकी गहरी पैठ है. सपा सूत्रों ने बताया है कि नरेंद्र वर्मा को अधिकृत प्रत्याशी बनाकर अखिलेश यादव कुर्मी वोटों का ध्रुवीकरण वापस अपने पक्ष में करना चाहते हैं.

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मोदी-योगी को चिट्ठी लिखकर चर्चा में आये थे नरेंद्र वर्मा

इसी साल जुलाई महीने में नरेंद्र वर्मा ने प्रधानमंत्री को एक ऐसी चिट्ठी लिखी थी, जिसके बाद उत्तर प्रदेश की सियासत गर्म हो गयी थी. सीतापुर के महमूदाबाद सीट से सपा विधायक एवं पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह वर्मा ने प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मांग की थी कि जब विधायक, मंत्री, सांसद, राज्यपाल, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पेंशन सुविधा मिल रही है तो सरकारी कर्मचारी को भी यह सुविधा मिलनी चाहिए.

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नरेंद्र कर चुके हैं अपनी पेंशन छोड़ने की घोषणा

विधायक नरेंद्र सिंह वर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर सरकार से मांग की थी कि या तो सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ दिया जाय या विधायकों, सांसदों, न्यायाधीशों को भी नई पेंशन योजना के दायरे में लाया जाए. विधायक ने प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में सेवानिवृत्त के बाद खुद भी पेंशन न लेने की घोषणा की थी. विधायक का तर्क यह था कि जब वर्ष 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों व अधिकारियों को पुरानी पेंशन से वंचित रखा जा रहा है तो जन प्रतिनिधियों को भी पुरानी पेंशन योजना से लाभांवित होने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है.

पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए करीब डेढ़ दशक से आंदोलनरत सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों के पक्ष में महमूदाबाद के विधायक नरेंद्र सिंह वर्मा ने अपनी पेंशन छोड़ने की घोषणा करके पूरे राजनीतिक समुदाय को आइना दिखाने का काम किया था. विधायक द्वारा लिखे गए पत्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल भी हुए थे.

सपा के बागी विधायक नितिन अग्रवाल हैं भाजपा की पहली पसंद

भाजपा ने समाजवादी पार्टी के बागी विधायक नितिन अग्रवाल को अपना समर्थन दिया है. विधान सभा में विधायकों की संख्या के आधार पर नितिन अग्रवाल का चुनाव जीतना लगभग तय माना जा रहा है, लेकिन स्पष्ट संकेत मिले हैं कि समाजवादी पार्टी विधानसभा के डिप्टी स्पीकर के चुनाव में भाजपा समर्थित नितिन अग्रवाल का विरोध कर सकती है क्योंकि नितिन अग्रवाल सपा के टिकट पर ही विधायक बने हैं.

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अखिलेश ही लेंगे अंतिम फैसला

बताया जा रहा है कि डिप्टी स्पीकर के चुनाव का विरोध एवं प्रत्याशी उतारे जाने का अंतिम फैसला सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ही लेंगे. हरदोई से समाजवादी पार्टी के विधायक नितिन अग्रवाल के पिता नरेश अग्रवाल भाजपा में शामिल हो गए हैं, लेकिन विधानसभा में वह सपा के ही विधायक हैं और उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है. सपा की तरफ से नितिन अग्रवाल की सदस्यता रद्द करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा गया था, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने सपा की इस मांग को ठुकरा दिया है.

नितिन पहले भी दिखा चुके हैं भाजपा से वफादारी

कभी सपा सरकार में मंत्री रहे नरेश अग्रवाल के पुत्र नितिन अग्रवाल कई बार भाजपा के प्रति अपनी वफादारी साबित करने की कोशिश कर चुके हैं. 2018 में हुए राज्यसभा चुनाव में नितिन ने सपा से विधायक होने के बावजूद भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान किया था. शायद यही वजह है कि भाजपा नेतृत्व ने उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़वाने का फैसला लिया हो. अगर ऐसा होता है तो यह उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार होगा कि सत्तारूढ़ दल द्वारा विपक्षी दल के विधायक को विधान सभा का उपाध्यक्ष चुना जाएगा.

नितिन अग्रवाल को प्रत्याशी बनाने की वजह

नितिन अग्रवाल को प्रत्याशी बनाये जाने के कारण भी पुख्ता हैं. गौरतलब है कि सपा के कद्दावर मंत्री रह चुके नरेश अग्रवाल ने जब 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा की सदस्यता ली थी, तब उन्हें सम्मानजनक जिम्मेदारी देने के साथ ही राज्यसभा भेजे जाने का आश्वासन दिया गया था. नरेश के भाजपा में आने से पार्टी को हरदोई के साथ ही आसपास की कई विधानसभा सीटों पर फायदा भी हुआ था, लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी पार्टी अपना वादा पूरा नहीं कर सकी है. नरेश अग्रवाल को न तो राज्यसभा भेजा गया और न ही उन्हें किसी महत्वपूर्ण पद पर समायोजित किया गया.

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ऐसे में आगामी विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश के मध्य क्षेत्र में सपा से मिल रही मजबूत टक्कर के कारण विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए एक-एक सीट महत्वपूर्ण है. ऐसे में हरदोई और आसपास के जिलों में नरेश अग्रवाल के प्रभाव क्षेत्र का उपयोग करने, 2019 के वादे की भरपाई करने और इस इलाके के वैश्य मतदाताओं को साधने की नीयत से भाजपा ने उनके पुत्र नितिन अग्रवाल को विधानसभा उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित कराने की तैयारी की है. विधानसभा में भाजपा के पास दो तिहाई बहुमत होने से नितिन के निर्वाचन में कोई मुश्किल नहीं है. लिहाजा उनके चुनाव के सन्दर्भ में शासन स्तर पर प्रक्रियात्मक कार्यवाही शुरू हो गई है.

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष चुनाव के लिए निर्वाचन की तिथि तय हो गयी है. 17 अक्टूबर को सुबह 11 बजे से 1 बजे तक नामांकन होना है एवं 18 अक्टूबर को सुबह 11 से 1 के बीच निर्वाचन होना सुनिश्चित हुआ है. इसके लिए विधानसभा का एक विशेष सत्र भी बुलाया गया है.

रिपोर्ट- उत्पल पाठक

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