Lucknow: लोकसभा चुनाव को लेकर यूपी में सियासी दल अपनी रणनीति को धार देने में जुट गए हैं. इस बीच यूपी की फूलपुर लोकसभा सीट से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चुनाव लड़ने की काफी चर्चा है. खास बात है इस चर्चा को खुद नीतीश की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) ने हवा दी है.
पार्टी नेताओं को लगता कि नीतीश कुमार के यूपी से चुनाव लड़ने से न सिर्फ जद (यू) को लाभ मिलेगा, बल्कि विपक्ष का गठबंधन भी मजबूत स्थिति में होगा. हालांकि उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इन दावों को खारिज कर दिया है.
बलिया के एक दिवसीय दौरे पर आए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि नीतीश कुमार चाहे फूलपुर से लोकसभा चुनाव लड़ें या बिहार से, वो कहीं से भी नहीं जीतेंगे. उन्होंने कहा कि यूपी में इस समय हमारे 66 सांसद हैं. इन सीटों पर 2024 में भाजपा प्रत्याशी भारी मतों से जीत दर्ज करेंगे. इसके साथ ही अन्य सीटों पर भी हमारी ही जीत होगी. 2024 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सभी 80 सीटों पर जीत हासिल करेगी. जो पूर्वांचल में जीत गया उसकी पूरे प्रदेश में जीत सुनिश्चित है.
केशव मौर्य ने कहा कि सपा का खाता नहीं खुलेगा. वहीं कांग्रेस नेतृत्व विहीन है. वह सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध तक सीमित है. विश्वस्तर के नेता नरेंद्र मोदी पर देश आज गर्व कर रहा है. भाजपा यूपी की सभी लोकसभा सीटों को लेकर मिशन 80 पर काम कर रही है. इसके लिए लोकसभा चुनाव 2019 में हारी हुई सीटों पर खास फोकस किया जा रहा है.
वहीं अगर प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा सीट की बात करें तो नीतीश कुमार के यहां से चुनाव लड़ने की चर्चा पिछले वर्ष भी हुई थी. हालांकि तब जद (यू) की ओर से इसे खारिज कर दिया गया. वहीं इस बार खुद नीतीश सरकार में मंत्री और पार्टी के उत्तर प्रदेश प्रभारी श्रवण कुमार ने इस मुद्दे को हवा दी है.
श्रवण कुमार ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में जद (यू) के कार्यकर्ता चाहते हैं कि नीतीश कुमार उनके क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ें. इनमें विशेष रूप से फूलपुर की जनता नीतीश कुमार को अपने संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ाने की इच्छुक है. नीतीश कुमार के यूपी से चुनाव लड़ने को लेकर समाज के हर वर्ग के लोग उत्साहित हैं.
खास बात है कि जिस बात की यूपी से लेकर बिहार तक चर्चा हो रही है. विभिन्न दलों के नेता जिस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं, उस मामले में नीतीश कुमार ने अभी तक एक शब्द नहीं बोला है. नीतीश कुमार विपक्ष की एकता की तो बात कर रहे हैं. लेकिन फूलपुर के मुद्दे पर उन्होंने अभी तक अपनी जुबान नहीं खोली है. ऐसे में पार्टी के यूपी कार्यकर्ता इसे उनकी स्वीकृति से जोड़कर देख रहे हैं.
इसके पक्ष में दलील दी जा रही है कि नीतीश कुमार के यूपी से चुनाव लड़ने पर राष्ट्रीय परिदृश्य में उनकी स्थिति कहीं ज्यादा मजबूत होगी. बिहार से चुनाव लड़ने पर वह सिर्फ अपने राज्य तक सीमित रह सकते हैं. इसके अलावा नीतीश के यूपी से चुनाव लड़ने पर सियासी तौर पर भी मजबूत संदेश जाएगा.
लोकसभा चुनाव 2014 में नरेंद्र मोदी ने स्वयं गुजरात छोड़कर यूपी के वाराणसी से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर प्रधानमंत्री बने. इसके बाद वह 2019 में फिर काशी से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. ऐसे में दलील दी जा रही कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गृह राज्य से बाहर चुनाव लड़कर सियासी माहौल बना सकते हैं, तो विपक्ष के बड़े नेता के तौर पर नीतीश कुमार को भी इससे परहेज नहीं करना चाहिए.
इसके साथ ही जातीय समीकरणों के लिहाज से फूलपुर लोकसभा सीट नीतीश कुमार के लिए बेहतर बताई जा रही है. दरअसल फूलपुर का सामाजिक समीकरण नीतीश कुमार के लिए सकारात्मक साबित हो सकता है. यहां अब तक हुए 20 चुनावों में कुर्मी सांसद बने हैं. राम पूजन पटेल तीन बार और जंग बहादुर पटेल दो बार सांसद रहे हैं. नीतीश कुमार भी कुर्मी जाति से आते हैं.
ऐसे में विपक्षी एकता खासतसौर से समाजवादी पार्टी के सहयोग से नीतीश कुमार के लिए यहां सियासी राह आसान हो सकती है. विपक्षी दलों के उम्मीदवार मैदान में नहीं उतरने से जद (यू) और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होगा, जिसका फायदा नीतीश कुमार को मिल सकता है. इस सीट को भाजपा की परंपरागत सीट नहीं माना जाता है. पार्टी का पहली बार 2014 में यहां खाता खुला था, तब केशव प्रसाद मौर्य ने यहां से जीत दर्ज की थी. योगी सरकार में उपमुख्यमंत्री बनने पर जब उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दिया तो सपा ने भाजपा के कब्जे से सीट छीन ली. हालांकि 2019 में भाजपा ने एक बार फिर यहां जीत दर्ज की.
फूलपुर संसदीय सीट सियासी तौर पर बेहद अहम है. आजादी के बाद से ये संसदीय सीट न सिर्फ प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का संसदीय क्षेत्र रहा, बल्कि यहां से तमाम दिग्गजों ने चुनाव लड़ा है. इनमें से कई दिग्गज जीते और हारे, तो कुछ की जमानत भी जब्त हुई है.
विधानसभा के तौर पर फूलपुर का गठन पहली बार 2012 में ही हुआ. इससे पहले इस विधानसभा का कुछ क्षेत्र प्रतापपुर तो कुछ झूंसी विधानसभा क्षेत्र में आता था. बाद में झूंसी विधानसभा को खत्म करके और प्रतापपुर के कुछ हिस्सों को मिलाकर फूलपुर के नाम से नई विधानसभा बनाई गई. वहीं, संसदीय सीट के तौर पर फूलपुर 1952 से ही अस्तित्व में है.
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1952 में पहली लोकसभा में पहुंचने के लिए इसी सीट को चुना और लगातार तीन बार 1952, 1957 और 1962 में उन्होंने यहां से जीत दर्ज कराई थी. नेहरू के चुनाव लड़ने के कारण ही इस सीट को वीआईपी सीट का दर्जा मिला.
अहम बात है कि फूलपुर से जवाहर लाल नेहरू का कोई खास विरोध नहीं होता था और वे आसानी से चुनाव जीत जाते थे. लेकिन, उनके विजय रथ को रोकने के लिए 1962 में प्रख्यात समाजवादी नेता डॉक्टर राममनोहर लोहिया स्वयं फूलपुर सीट से चुनाव मैदान में उतरे. हालांकि उन्हें हार नसीब हुई.
जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद इस सीट की जिम्मेदारी उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने संभाली और उन्होंने 1967 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र को हराकर नेहरू और कांग्रेस की विरासत को आगे बढ़ाया. 1969 में विजय लक्ष्मी पंडित ने संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद इस्तीफा दे दिया. इसके बाद यहां हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने नेहरू के सहयोगी केशवदेव मालवीय को उतारा. लेकिन, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जनेश्वर मिश्र ने उन्हें पराजित कर दिया. इसके बाद 1971 में यहां से पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए.
आपातकाल के दौर में 1977 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने यहां से रामपूजन पटेल को टिकट दिया. लेकिन, जनता पार्टी की उम्मीदवार कमला बहुगुणा ने यहां से जीत हासिल की. बाद में कमला बहुगुणा स्वयं कांग्रेस में शामिल हो गईं. कमला बहुगुणा पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और वर्तमान में भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी की मां थीं.
राजनीतिकि परिस्थितियों के कारण आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार पांच साल नहीं चली और 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए. तब इस सीट से जनता पार्टी (सेक्युलर) के उम्मीदवार प्रोफेसर बीडी सिंह ने जीत दर्ज की. 1984 में हुए चुनाव कांग्रेस के रामपूजन पटेल ने जीत दर्ज कर एक बार फिर पार्टी की यहां वापसी कराई. हालांकि, कांग्रेस से जीतने के बाद रामपूजन पटेल जनता दल में शामिल हो गए.
इसके बाद 1989 और 1991 का चुनाव रामपूजन पटेल ने जनता दल के टिकट पर ही जीता. पंडित नेहरू के बाद इस सीट पर लगातार तीन बार यानी हैट्रिक लगाने का रिकॉर्ड रामपूजन पटेल ने ही बनाया. 1996 से 2004 के बीच हुए चार लोकसभा चुनावों में यहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार जीतते रहे. 2004 में माफिया कहे जाने वाले अतीक अहमद ने यहां से जीत दर्ज की. अतीक अहमद के बाद 2009 में पहली बार इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने भी जीत हासिल की. जबकि बीएसपी के संस्थापक कांशीराम यहां से स्वयं चुनाव हार चुके थे.
खास बात है कि कुर्मी बहुल इस सीट पर अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल ने भी दो बार ताल ठोकी. हालांकि, 1996 के लोकसभा चुनाव में उनकी जमानत जब्त हो गई और 1998 में वहह जमानत तो बचाने में कामयाब रहे लेकिन, जीत उनसे काफी दूर रही. 2014 में यहां की जनता ने केशव प्रसाद मौर्य को भारी मतों से विजयी बनाया. केशव मौर्य ने बसपा प्रत्याशी कपिलमुनि करवरिया को तीन लाख से भी जयादा मतों से शिकस्त दी. भाजपा के लिए ये जीत इतनी अहम थी कि पार्टी ने केशव प्रसाद मौर्य की इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी कर दी.
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1952 : जवाहरलाल नेहरू, कांग्रेस
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1957 : जवाहरलाल नेहरू,कांग्रेस
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1962 : जवाहरलाल नेहरू, कांग्रेस
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1964 (उपचुनाव): विजयलक्ष्मी पंडित, कांग्रेस
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1967 : विजयलक्ष्मी पंडित, कांग्रेस
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1969 (उपचुनाव) : जनेश्वर मिश्रा, संयुक्त सोशियलिस्ट पार्टी
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1971 : विश्वनाथ प्रताप सिंह, कांग्रेस
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1977 : कमला बहुगुणा, जनता पार्टी
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1980 : बी.डी.सिंह, जनता पार्टी (सेक्युलर)
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1984 : राम पूजन पटेल, कांग्रेस
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1989 : राम पूजन पटेल, जनता दल
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1991 : राम पूजन पटेल, जनता दल
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1996 : जंग बहादुर पटेल, समाजपार्टी पार्टी
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1998 : जंग बहादुर पटेल, समाजवादी पार्टी
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1999 : धर्मराज पटेल, समाजवादी पार्टी
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2004 : अतीक अहमद, समाजवादी पार्टी
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2009 : कपिल मुनी करवरिया, बहुजन समाज पार्टी
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2014 : केशव प्रसाद मौर्य, भारतीय जनता पार्टी
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2018 (उपचुनाव): नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल, समाजवादी पार्टी
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2019 : केसरी देवी पटेल, भारतीय जनता पार्टी
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कुल चुनाव : 20
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कांग्रेस : 07
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समाजवादी पार्टी : 05
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जनता दल : 02
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भाजपा : 02
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बसपा : 01
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अन्य : 03
इन सबके बीच राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि फिलहाल 2024 को लेकर नीतीश कुमार के चुनाव लड़ने की चर्चा को सिर्फ चर्चा कहा जा सकता है. नीतीश कुमार कुशल राजनेता हैं, वह इतनी जल्दी अपने पत्ते नहीं खोलेंगे. अभी वह विपक्ष को मजबूत करने में जुटे हैं. लोकसभा चुनाव करीब आने पर सियासी परिस्थितियों को अच्छी तरह भांपने के बाद ही वह कोई निर्णय करेंगे.
नीतीश कुमार अच्छी तरह जानते हैं कि यूपी से चुनाव लड़ने की स्थिति में वह विपक्ष पर पूरी तरह से निर्भर होंगे, क्योंकि यहां उनकी पार्टी जद (यू) का कोई जनाधार नहीं है. पार्टी के चर्चित चेहरे के रूप में केवल धनंजय सिंह हैं. ऐसे वह जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं करेंगे.