Loading election data...

लखनऊ: चार दिन के नवजात को लेकर सरकारी अस्पतालों भटकता रहा पिता, वेंटिलेटर के अभाव में उखड़ी सांसे, जानें मामला

फाजिल के मुताबिक सभी जगह से निराशा हाथ लगने पर उसने मासूम बच्ची को कृष्णानगर के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया. जहां दो दिन में 13 हजार रुपए ले लिए गए. फाजिल ने बताया​ कि मजदूर होने के कारण वह इतना महंगा इलाज कराने में असमर्थ थे, इस वजह से उन्होंने एक बार फिर सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटे.

By Sanjay Singh | October 15, 2023 11:25 AM

Lucknow News: राजधानी लखनऊ में सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर नहीं मिलने से चार दिन की नवजात बच्ची की मौत का मामला सामने आया है. मासूम की इलाज के अभाव में मौत से परिजन बेहद सदमे में हैं. सरकारी अस्पतालों से निराशा हाथ लगने पर उन्होंने मासूम को प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया, जहां के महंगा खर्च नहीं दे पाने की हालत में एक बार फिर सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटे. इसी भागदौड़ में मासूम की सांसे उखड़ गईं. आरोप है कि केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में सांसे थमने के बाद मासूम को भर्ती कर उसके कागज तैयार किए गए, ताकि मामले को दबाया जा सके. लखनऊ के राजाजीपुरम क्षेत्र के बख्तामऊ निवासी फाजिल पेशे से मजूदर है. फाजिल ने बताया कि उसकी पत्नी शमीम बानो को प्रसव पीड़ा होने पर विगत 10 अक्टूबर को लोकबंधु अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां उसी दिन देर रात नार्मल डिलीवरी से बच्ची का जन्म हुआ. कुछ देर बाद बच्ची की तबियत बिगड़ने लगी. इस पर डॉक्टरों ने उसे केजीएमयू रेफर कर दिया. आरोप है कि परिजन बच्ची को एम्बुलेंस से केजीएमयू लेकर पहुंचे, जहां बताया गया कि पीडियाट्रिक वेंटिलेटर बेड खाली नहीं हैं. इसके बाद अस्पताल प्रशासन ने फा​जिल को मासूम बच्ची को दूसरे अस्पताल ले जाने को कहा. मासूम की हालत बिगड़ने पर आनन फानन में फाजिल उसे सिविल, लोहिया संस्थान और एसजीपीजीआई में ले गया, लेकिन कई दालिखा हीं मिला.


मजबूरी में प्राइवेट अस्पताल में कराया भर्ती

फाजिल के मुताबिक सभी जगह से निराशा हाथ लगने पर उसने मासूम बच्ची को कृष्णानगर के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया. जहां महज दो दिन में 13 हजार रुपए ले लिए गए. फाजिल ने बताया​ कि पेशे से मजदूर होने के कारण वह इतना महंगा इलाज कराने में असमर्थ थे, इस वजह से उन्होंने शनिवार को एक बार फिर एम्बुलेंस से बच्ची को लेकर सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटे.

Also Read: Air Pollution: यूपी के कई शहरों की हवा हुई जहरीली, खराब AQI से बढ़ रहे मरीज, जानें अपने शहर के प्रदूषण का हाल
एसजीपीजीआई सहित कई अस्पतालों में काटे चक्कर

उन्होंने बताया कि वह बच्ची को लेकर केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर पहुंचे. जहां वेंटिलेटर बेड नहीं होने का हवाला देकर फिर वापस कर दिया गया. इसके बाद उन्होंने एसजीपीजीआई समेत अन्य अस्पतालों में चक्कर काटे. बाद में एसजीपीजीआई में नर्सिंग स्टॉफ एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष सीमा शुक्ला ने केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर प्रभारी डॉ. संदीप तिवारी से फोन पर बातचीत की. उन्होंने किसी तरह बच्ची को भर्ती करने का अनुरोध किया.

केजीएमयू के ट्रामा सेंटर में मासूम की मौत के बाद खानापूर्ति का आरोप

इसके बाद फाजिल शाम चार बजे बच्ची को लेकर ट्रॉमा सेंटर पहुंचा, लेकिन इलाज शुरू होने से पहले ही उसकी सांसे थम चुकी थी. इसके बावजूद डॉक्टरों ने भर्ती करने की खानापूर्ति की. अगर सही समय पर पहले ही उसकी बच्ची को इलाज मिल जाता तो उसकी जान बच सकती थी. नवजात बच्ची की मौत के बाद फाजिल और परिजन बेहद गमगीन हैं. उधर इस प्रकरण में केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कहा कि ट्रॉमा सेंटर में मरीजों का दबाव अधिक रहता है. जो भी मरीज आते हैं, उन्हें प्रमुखता से इलाज मुहैया कराया जाता है. अगर वेंटिलेटर खाली हो तो बच्ची को जरूर दिया जाता.

सभी जगह वेंटिलेटर रहते हैं फुल

बताया जा रहा है कि लखनऊ के सरकारी संस्थानों और अस्पतालों में एनआईसीयू के सिर्फ नौ वेंटिलेटर हैं. इनमें से लोहिया संस्थान में छह, बलरामपुर में एक, केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर के एनआईसीयू में दो पीडियाट्रिक वेंटिलेटर उपलब्ध हैं. इनमें हमेशा कोई न कोई मरीज रहता है. ऐसे में बेहद मुश्किल से ही नए मरीज को इलाज मिल पाता है. सामान्य तौ पर एक शिशु को वेंटिलेटर से ठीक होने में दो सप्ताह का वक्त लग जाता है.

पहले भी वेंटिलेटर के अभाव में हो चुकी है मौत

इससे पहले जून माह में भी वेंटिलेटर के अभाव में नवजात की मौत हो गई थी. तब बहराइच निवासी सईद नवजात को लेकर राजधानी आए थे. उन्हें भी कई अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद पीडियाट्रिक वेंटिलेटर नहीं मिला था. बाद में केजीएमयू में एम्बुलेंस में ही मासूम की सांसे उखड़ गई. इस घटना के बाद डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने अस्पतालों को निर्देश दिया था कि अगर वेंटिलेटर खाली नहीं हैं तो बाइपेप के जरिए इलाज दिया जाए. उन्होंने कहा कि किसी भी हालत में मरीज को वापस नहीं लौटाया जाए. हालांकि इसके बाद भी अस्पतालों की स्थिति में सुधार देखने को नहीं मिल रहा है.

Next Article

Exit mobile version