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घोसी उपचुनाव: सपा की जीत में शिवपाल यादव बने किंगमेकर, गठबंधन के पहले टेस्ट में ओम प्रकाश राजभर इसलिए हुए फेल

घोसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव के परिणाम में हार और जीत के कई कारण हैं. लेकिन, एक बात साफ है कि सपा के लिए इस जीत के असली नायक शिवपाल यादव बनकर उभरे हैं. वहीं बड़बोलेपन के लिए चर्चित सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर गठबंधन की पहली परीक्षा में ही फेल साबित हो गए.

Ghosi By-Election Result: उत्तर प्रदेश में मऊ जनपद की घोसी विधानसभा उपचुनाव के नतीजे विपक्ष के लिए संजीवनी साबित हुए हैं. इस उपचुनाव को पहले दिन से भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए बनाम विपक्ष के इंडिया गठबंधन की लड़ाई के तौर पेश किया जा रहा था. यहां तक कि इसे लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर लिटमस टेस्ट कहा जा रहा था. ऐसे में इस सीट पर जीत विपक्ष और खासतौर से समाजवादी पार्टी के लिए बड़ा तोहफा साबित हुई है.

भाजपा ने सरकार और संगठन की ताकत झोंकी

घोसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव के परिणाम में हार और जीत के कई कारण हैं. लेकिन, एक बात साफ है कि सपा के लिए इस जीत के असली नायक शिवपाल यादव बनकर उभरे हैं. एक तरफ घोसी विधानसभा में सत्तापक्ष के मंत्रियों की फौज उतरी हुई थी. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह सहित वरिष्ठ पदाधिकारी डेरा जमाए रहे तो दूसरी ओर शिवपाल यादव लोगों के बीच में रहकर अपनी रणनीति को धार देते रहे. वहीं बड़बोलेपन के लिए चर्चित सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर गठबंधन की पहली परीक्षा में ही फेल साबित हो गए.

सैफई कुनबा एक बार फिर अपनी ताकत का एहसास कराने में सफल

सैफई कुनबे में अनबन खत्म होने के बाद शिवपाल यादव ने जहां पहले मैनपुरी में बहू डिंपल यादव की जीत के लिए पसीना बहाया वहीं इस बार घोसी विधानसभा उपचुनाव की बागडोर भी उनके हाथ में थी. दरअसल उम्मीदवार के चयन से लेकर चुनाव प्रचार और चुनावी रणनीति की कमान इस बार अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव को सौंप दी थी.

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शिवपाल यादव की रणनीति धरातल पर हुई सफल

सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह की बड़ी जीत के पीछे चाचा शिवपाल की ही रणनीति रही. कहा जा रहा है कि सपा पहले घोसी से भाजपा के दारा सिंह चौहान के खिलाफ पिछड़ी जाति के किसी नेता को टिकट देने का मन बना रही थी. इसके जरिए वह अपने पीडीए के फॉर्मूले पर काम करना चाहती थी. लेकिन, शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव से सुधाकर सिंह के नाम की पैरवी की और उनका टिकट फाइनल कराया.

हालांकि क्षत्रिय होने के कारण सुधाकर सिंह सपा के पीडीए यानी पिछड़े, दलित और मुस्लिम वोटबैंक वाले समीकरण में फिट नहीं बैठ रहे थ. वहीं घोसी विधानसभा क्षेत्र में क्षत्रिय वोट भी महज 15 हजार के करीब थे, बावजूद इसके शिवपाल यादव ने ऐसा चक्रव्यूह बनाया कि भाजपा उसमें उलझकर रह गई. दरअसल भाजपा नेता चुनावी जनसभाओं में लगे रहे.

काम नहीं आई ओम प्रकाश राजभर की बयानबाजी

मंत्री से लेकर संगठन के नेता बैठकों में बयानबाजी तक सीमित रहे. वह सिर्फ केंद्र और प्रदेश सरकार का गुणगान करते नजर आए. इसके अलावा ओम प्रकाश राजभर जैसे नेता निजी हमले में ज्यादा मशगूल रहे. उनकी बयानबाजी से ऐसा लग रहा था कि राजभर सहित अन्य मतदाता सिर्फ उनके कहने से ही दारा सिंह चौहान को वोट दे देंगे, दूसरी ओर शिवपाल यादव ने चुनावी रणनीति से लेकर बूथ मैनेजमेंट की कमान संभाली.

स्थानीय मुद्दों से मतदाताओं को जोड़ने में सफल हुए शिवपाल यादव

वह सहयोगी दलों पर निर्भर न होकर खुद लोगों के बीच में स​क्रिय रहे. एक तरफ भाजपा इस उपचुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों से लेकर अन्य बातों पर फोकस करती दिखी तो शिवपाल यादव इसे स्थानीय मुद्दों से जोड़ने में सफल रहे. उन्होंने अपने करीबियों के जरिए मतदाताओं के बीच में ये संदेश दिया कि दारा सिंह चौहान अपनी निजी महत्वकांक्षा के तहत पहले भाजपा से सपा और फिर सपा से भाजपा में शामिल हुए. उनके लिए जनता का हित प्राथमिकता में नहीं है.

मुलायम के दौर की तरह शिवपाल यादव ने किया काम

शिवपाल यादव ने ठीक उसी तरह काम किया, जिस तरह वह मुलायम सिंह यादव के समय में किया करते थे. उन्होंने एक-एक बूथ पर विश्वसनीय नेताओं की ड्यूटी लगाई. बयानबाजी के बजाय स्थानीय स्तर पर ज्यादा से ज्यादा संवाद पर जोर दिया. इसके साथ ही इस बात पर पूरा ध्यान दिया गया कि उपचुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं हो.

डोर टू डोर प्रचार पर ज्यादा ध्यान केंद्रित

दरअसल घोसी विधानसभा में 85 हजार अल्पसंख्यक मतदाता हैं. ऐसे में सांपद्रायिक ध्रुवीकरण होने पर भाजपा को फायदा मिल सकता था. लेकिन शिवपाल यादव उपचुनाव को स्थानीय मुद्दों से जोड़ने में सफल रहे. बड़ी चुनावी रैलियों की जगह उन्होंने डोर टू डोर प्रचार पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया.

बूथ मैनेजमेंट पर इस तरह किया फोकस

एक तरफ भाजपा के सहयोगी दल अपना दल, निषाद पार्टी और सुहेलदेव समाज पार्टी पिछड़ा कार्ड खेलने की कोशिश में जुटी रही तो दूसरी ओर सपा ने गठबंधन के साथियों को उपचुनाव से दूर रखा. वह अकेले मैदान में दिखी. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने जहां सपा के समर्थन का ऐलान किया, वहीं रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी प्रचार से दूर रहे. कहने को अखिलेश यादव ने जनसभा की. लेकिन शिवपाल यादव बूथ मैनेजमेंट पर फोकस करते नजर आए.

काम नहीं आई मायावती की अपील

उन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती के प्रत्याशी नहीं उतारने का भी लाभ लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कहने को मायावती ने अपने मतदाताओं को चुनाव से दूर रहने और नोटा पर वोट डालने के लिए कहा था. लेकिन, उनकी ये अपील काम नहीं आई और शिवपाल यादव इस वोटबैंक को अपने पाले में करने में सफल हुए. सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को दलित मतदाताओं के भी वोट मिले, तभी वह इतने मार्जिन से जीत हासिल कर सके.

ओम प्रकाश राजभर की बयानबाजी भाजपा के लिए साबित हुई घातक

उधर एनडीए में शामिल होने के बाद अखिलेश यादव पर लगातार हमला बोल रहे ओम प्रकाश राजभर को लग रहा था कि इस तरह वह दारा सिंह चौहान के पक्ष में माहौल बनाने में सफल होंगे और राजभर वोट एकतरफा उनके पक्ष में जाएगा. लेकिन, ओम प्रकाश राजभर ही यही बयानबाजी भाजपा के लिए घातक साबित हुई.

ओम प्रकाश राजभर ने दावा किया था कि वह इस उपचुनाव के बाद यादव परिवार को वापस इटावा भेज देंगे. लेकिन मतदाताओं ने घोसी से उनकी ही वापसी करा दी. ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि कमल के फूल पर वोट देने के लिए लोग रजामंद हैं. यहां पर लड़ाई बाहरी भीतरी नहीं, बल्कि अखिलेश और ओम प्रकाश के बीच है. इस तरह उन्होंने खुद को अखिलेश यादव के सामने खड़ा करने की कोशिश की.

हवा हवाई साबित हुए ओम प्रकाश राजभर के दावे

उन्होंने कहा कि हमने सपा अध्यक्ष को एसी से निकलकर जमीन पर काम करने का सुझाव दिया था, लेकिन तब नहीं सुने और अब जिस राजभर के कपड़े से उन्हें बदबू आती थी उन्हीं राजभर मतदाताओं के बीच जीवन में पहली बार प्रोफेसर रामगोपाल वोट मांग रहे हैं. जब पुलिस की भर्ती होती थी तो हिस्सा लेने के लिए नहीं पूछते थे. घोसी के चुनाव में सपा के बड़े नेताओं के निशाने पर ओम प्रकाश राजभर हैं. न तो योगी जी न तो मोदी जी न कोई है. यह साबित हो गया कि हम लोग ताकत में हैं चुनाव जीत रहे हैं. इस तरह ओम प्रकाश राजभर ने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ते नजर आए. उन्हें लगा कि इस तरह की बयानबाजी से न सिर्फ दारा सिंह चौहान जीत हासिल करेंगे, बल्कि इसमें उनकी भी बड़ी भूमिका मानी जाएगी. हालांकि ये दांव सफल नहीं हुआ.

काम नहीं आई सियासी गणित

ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि घोसी में 520 बूथ हैं, 234 पोलिंग स्टेशन हैं. एक-एक बूथ और एक-एक पोलिंग स्टेशन पर हमने सर्वे करवाया है. 548 हमारी पार्टी के जिम्मेदार नेता काम कर रहे हैं. 388 बूथ पर 60, 70, 80, 90, 100 फीसद वोट पाएंगे. शेष 86 बूथ पर वो लोग 80 प्रतिशत पा सकते हैं. कुछ बूथों पर हम आमने सामने होंगे. अगर जातिगत समीकरण देखें तो 80 हजार मुस्लिम और सिर्फ 20 हजार यादव हैं, जिसमें हमें कुछ फीसद मुस्लिम का वोट भी मिलेगा.

सुभासपा अध्यक्ष ने दावा किया कि इन दोनों के वोट बैंक के बदले हमारे पास 65 हजार राजभर, 55 हजार चौहान, यही वोट विपक्ष का मुकाबला कर लेगा. निषाद 17 से 18 हजार और सामान्य वर्ग भी इतने हैं. सामान्य वर्ग में भूमिहार का 90 प्रतिशत वोट बीजेपी को मिलेगा. अभी कुछ छोटी जातियां जैसे, बंजारा, गोंड, मौर्या, प्रजापति हैं. यह वोट भी हमें मिलेगा. सपा का वोट है कहां. इसके बाद अगर राजपूत की बता करें तो 60-40 का रेशियो रहेगा. अब सपा को कौन सा वोट मिल रहा है. लड़ाई नाम की कोई चीज नहीं है.

जितने मतों से जीतने का किया दावा उतने से मिली हार

खास बात है कि सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने जहां भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान को 42 हजार से अधिक मतों से हराया, वहीं ओम प्रकाश राजभर भी लगभगी इसी मार्जिन से जीत का दावा कर रहे थे. उन्होंने कहा कि हम लोग 50 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीतने जा रहे हैं. लेकिन, परिणाम इसके उलट आया और सपा की रणनीति काम कर गई. इस तरह देखा जाए तो घोसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव में मतदाताओं ने साफ संदेश दिया कि उन्हें निजी स्वार्थ में पाला बदलने वाले नेता पंसद नहीं हैं. इसके साथ ही वह बड़बोलेपन वाले नेताओं के कहने पर भी वोट नहीं डालेंगे.

अखिलेश यादव बोले- मतदाताओं ने तोड़ा भाजपा का घमंड

उधर इस जीत से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बेहद गदगद हैं. उन्होंने इसे लोकतंत्र की भी जीत करार दिया. उन्होंने कहा कि इस उपचुनाव में समाजवादी पार्टी और इंडिया गठबंधन प्रत्याशी की जीत ने भाजपा का घमंड तोड़ने के साथ सन् 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम का भी संकेत दे दिया है. यह भाजपा की उल्टी गिनती की शुरूआत है.

अखिलेश यादव ने कहा कि घोसी उपचुनाव की जीत सकारात्मक राजनीति की जीत और सांप्रदायिक नकारात्मक राजनीति की हार है. भाजपा की तोड़फोड़ और समाज को बांटने वाली राजनीति को भी यह मुंहतोड़ उत्तर है. भाजपा ने सत्ता के दुरुपयोग की भरसक कोशिशें की पर जनता ने करारा जवाब देकर भाजपा प्रत्याशी को सबक सिखाया है. पीडीए की धारा को इंडिया गठबंधन के साथ जोड़कर सामाजिक न्याय के लिए जातीय जनगणना की मांग करने वालों की भी जीत है.

भारत ने की इंडिया को जिताने की शुरुआत

सपा अध्यक्ष ने कहा कि भारत ने इंडिया को जिताने की शुरुआत कर दी है. उत्तर प्रदेश एक बार फिर से देश में सत्ता के परिवर्तन का अगुआ बनेगा. इसमें जीते तो एक विधायक हैं पर हारे कई दलों के भावी मंत्री है. सन् 2022 के चुनाव में भाजपा ने जनादेश के साथ छल किया था. यूपी में भाजपा की सरकार के छह वर्ष बीत चुके हैं. चारों तरफ अराजकता से राज्य की जनता तबाह है. झूठे प्रचार और जुमालाजीवियों को अब कोई नहीं पूछेगा.

घोसी उपचुनाव की जीत के साथ लखनऊ, बरेली, जालौन तथा मीरजापुर में भी जिला पंचायत के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को जीत मिली है. सभी जीते प्रत्याशियों को बधाई और मतदाताओं को धन्यवाद है.

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