Lucknow : योगी सरकार प्रदेश में डॉक्टरों को मेडिकल कॉलेजों से पलायन रोकने के लिए नई पहल करने जा रही है. सरकार अब निजी प्रैक्टिस करने की चाह रखने वाले डॉक्टरों को कुछ शर्तों के साथ यह सुविधा देगी. फिलहाल, शर्त यह होगी कि उन्हें निजी प्रैक्टिस की अनुमति तो मिलेगी मगर मरीज उन्हें सरकारी चिकित्सा संस्थान परिसर में ही देखने होंगे. लखनऊ के कल्याण सिंह कैंसर इंस्टीट्यूट से इसकी शुरुआत करने की तैयारी है. चिकित्सा शिक्षा विभाग इसका प्रस्ताव तैयार करा रहा है.
सुबे के हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोले जाने की योजना पर लगातार काम चल रहा है. करीब दर्जनभर जिला अस्पतालों को भी मेडिकल कॉलेज का दर्जा दिया जा चुका है. फिलहाल 14 नए कॉलेजों की भव्य बिल्डिंग भी तैयार हो रही हैं. मगर सबसे बड़ा संकट फैकल्टी का है. वहां एमबीबीएस और पीजी के छात्रों को पढ़ाने के लिए चिकित्सा शिक्षक नहीं हैं.
डॉक्टरों की कमी मरीजों के इलाज में भी बाधा बन रही है. प्राइवेट प्रैक्टिस और निजी क्षेत्र के आकर्षक ऑफर डॉक्टरों को आकर्षित कर रहे हैं. जबकि सरकारी डॉक्टरों के निजी प्रैक्टिस पर रोक है. इसके एवज में सरकार उन्हें एनपीए (नॉन प्रेक्टिसिंग अलाउंस ) देती है.
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अब डॉक्टरों का पलायन रोकने को राज्य सरकार मेडिकल कॉलेजों के चिकित्सकों को भी प्राइवेट प्रैक्टिस की सुविधा देने जा रही है. हालांकि अभी डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस भी सरकारी संस्थानों में ही करनी होगी. कल्याण सिंह कैंसर संस्थान से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसे शुरू करने की योजना है. फिर इसे आगे बढ़ाया जाएगा. चिकित्सा शिक्षा विभाग से जुड़े सूत्रों की मानें तो डॉक्टरों को दोपहर 2 बजे तक मौजूदा स्थिति की तरह ही मुफ्त मरीज देखने होंगे. दोपहर 2 बजे के बाद फीस लेकर मरीज देख सकेंगे. इस प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी के बाद ही अमल में लाया जाएगा.
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मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों के लिए फीस का फार्मूला भी तय किया जा रहा है. फिलहाल जिस फार्मूले की चर्चा है, उसके हिसाब से फीस से मिलने वाली धनराशि का 70 फीसदी चिकित्सक और 30 फीसदी संस्थान को मिलेगा. इसके पीछे विभाग का तर्क है कि निजी प्रैक्टिस के लिए डॉक्टरों को अलग सेटअप बनाने में कोई खर्च नहीं करना होगा. वहीं 30 फीसदी राशि से संस्थान में और सुविधाएं बढ़ाई जा सकेंगी. हालांकि डॉक्टर इस स्कीम में कितनी रुचि दिखाएंगे, योजना की सफलता इसी बात पर निर्भर करेगी.