Lucknow: चंद्रयान-3 मिशन (Chandrayaan Mission) की सफलता को लेकर पूरा देश प्रार्थना कर रहा है. इस मिशन की कामयाबी के साथ भारत ऐसा करने वाला चौथा देश होगा. इसलिए उत्तर प्रदेश में पूजा प्रार्थनाओं का दौर शुरू हो गया है.
चंद्रमा पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए प्रयागराज के श्री मठ बाघंबरी गद्दी में मंगलवार को हवन किया गया. इस दौरान लोगों ने मिशन के कामयाब होने की प्रार्थना की. इसी तरह वाराणसी में चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के लिए विशेष पूजा का आयोजन किया गया.
वाराणसी में कमच्छा स्थित मां कामख्या मंदिर में लोगों ने चंद्रयान की तस्वीर के साथ खास हवन-पूजन किया. हाथ में तिरंगा और चंद्रयान की तख्ती लेकर हवन कुंड में सामग्रियां छोड़ीं गईं. इस दौरान मंत्रों का उच्चारण करने के साथ हर-हर महादेव और भारत माता की जयघोष के साथ शंखनाद किया गया. राष्ट्रीय हिंदू दल के सदस्यों ने चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग एवं इसरो के वैज्ञानिकों की सफलता की कामना की. बीते दिनों भी अलग-अलग मंदिरों में इसरो के मिशन की सफलता के लिए पूजा-पाठ हुआ था.
मंदिर में मौजूद लोगों ने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता से पूरी दुनिया भारत की ताकत देखेगी. कहा कि चंद्रमा को हमारे भोलेनाथ अपने शीश पर धारण करते हैं. वे ही हमें सफलता देंगे. भारत के लिए यह गर्व की बात है.
लोगों ने कहा कि चंद्रयान की सफल लैंडिंग होने से भारत का गौरव पूरे विश्व भर में फैलेगा. रूस के चंद्र मिशन के फेल होने के बाद संतों ने हवन-पूजन करने का फैसला किया गया. हमारा रोवर सफलता पूर्वक चंद्रमा की सतह पर उतरेगा. दुनिया में भारत और यहां के लोगों का मान-सम्मान खूब बढ़ेगा.
उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि ये भारत के लिए गर्व की बात है. हमारे वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का नतीजा है कि चंद्रयान-3 लैंडिंग प्रक्रिया के आखिरी चरण में है. पूरा देश इसकी सफलता की प्रार्थना कर रहा है. उपमुख्यमंत्री ने कहा कि उनका दृढ़ विश्वास है कि प्रार्थनाएं परिणाम दिखाएंगी और चंद्रयान-3 चंद्रमा पर तिरंगा फहराने में सफल होगा.
उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने देश के नागरिकों और मिशन में शामिल सभी वैज्ञानिकों को इसे पूरे प्रोजेक्ट के लिए बधाई दी. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है. डिप्टी सीएम ने उम्मीद जताई कि भारतीय वैज्ञानिकों के प्रयास से मिशन पूरी तरह से सफल होगा.
चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए अयोध्या में दिवाकराचार्य महाराज ने हवन-पूजन किया. वहीं चन्द्रयान-3 की चांद पर सफल लैंडिंग के लिये मंगलवार को लखनऊ में ऐशबाग ईदगाह स्थित जामा मस्जिद में दुआ मांगी गई. दुआ में बड़ी संख्या में मदरसे के छात्र और नमाजी शामिल हुये. इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के चेयरमैन एवं ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने दोपहर में जोहर की नमाज के बाद अल्लाह से चन्द्रयान-3 के चांद पर सफल लैंडिंग के लिये दुआ की.
इस मौके पर बड़ी संख्या में मदरसे के छात्र और नमाजी शामिल हुए. मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने इसरो के वैज्ञानिकों को चन्द्रयान-3 के चन्द्रमा पर भेजे जाने के लिये मुबारकबाद दी. मौलाना ने कहा कि चन्द्रयान की सफल लैंडिंग के बाद भारत ल्यूनर साउथ पोल पर सफल लैंडिंग करने वाला दुनियां का पहला देश बन जाएगा. उन्होंने कहा कि ये हम सब देशवासियों के लिये गर्व की बात है.
समाजवादी पार्टी सांसद एस.टी. हसन ने कहा कि हमें ऊपर वाले से पूरी उम्मीद है कि हमारा चंद्रयान मिशन बहुत सफल होगा. मैं अपने वैज्ञानिकों को पहले से बधाई देता हूं कि वे कुछ बड़ा हासिल करने वाले हैं. उन्होंने कहा कि लोगों ने देखा कि हाल ही में रूस का मिशन विफल हो गया. हमें उम्मीद है कि हम सफल होंगे और हमारे वैज्ञानिक भारत का नाम रोशन करेंगे.
चंद्रयान-3 की सुरक्षित लैंडिंग पर ISRO के पूर्व वैज्ञानिक वाईएस राजन का भी बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 में लगभग 80 प्रतिशत बदलाव किए गए हैं. इसरो ने चंद्रयान-3 में कई चीजें शामिल की हैं. पहले यह उतरते समय केवल ऊंचाई देखता था, जिसे अल्टीमीटर कहा जाता है. अब इसके अलावा उन्होंने एक वेलोसिटी मीटर भी जोड़ा गया है, जिसे डॉप्लर कहा जाता है. इससे ऊंचाई और वेग का भी पता चल जाएगा ताकि यह खुद को नियंत्रित कर सके.
भारत ने अपने मिशन के तहत 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान मिशन लॉन्च किया था. इसके साथ ही भारत ने दुनिया को पृथ्वी की कक्षा के बाहर, किसी अन्य खगोलीय पिंड पर मिशन भेजने की अपनी क्षमताओं के बारे में बता दिया था. तब सिर्फ चार अन्य देश चांद पर मिशन भेजने में कामयाब हो पाए थे. इनमें अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान शामिल थे. पांचवें स्थान पर भारत का नाम था. इसरो ने भले ही अपने यान को जानबूझकर नष्ट किया था, लेकिन भारत के चंद्रयान मिशन के तहत चांद की सतह पर पानी मिला और फिर भारत का भी नाम इस ऐतिहासिक सूची में शामिल हो गया.
अंतरिक्ष यान के अंदर 32 किलोग्राम का एक जांच उपकरण रखा गया था. इसका उद्देश्य सिर्फ यान को क्रैश करना था, जिसे मून इम्पैक्ट प्रोब बताया गया. 17 नवंबर, 2008 की रात को करीब 8:06 बजे, इसरो के मिशन नियंत्रण में बैठे इंजीनियरों ने चंद्रमा प्रभाव जांच को नष्ट करने के निर्देशों को माना. कुछ ही घंटों में चांद की दुनिया में धमाका होने वाला था. मून इम्पैक्ट प्रोब ने चांद की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई से अपनी अंतिम यात्रा की शुरुआत की थी. जैसे ही जांच उपकरण चंद्रयान ऑर्बिटर से दूर जाने लगे, उसी समय ऑनबोर्ड स्पिन-अप रॉकेट सक्रिय हो गए. इसके बाद वह चंद्रमा की ओर जाने वाले मिशन को रास्ता दिखाने लगे.
चंद्रमा की सतह की तरफ बढ़ रहे जूते के डिब्बे के आकार का जांच उपकरण था, जो सिर्फ एक धातु का टुकड़ा नहीं था. इसके भीतर तीन उपकरण को ले जाने के लिए एक मशीन थी. एक वीडियो इमेजिंग सिस्टम, एक रडार अल्टीमीटर और एक मास स्पेक्ट्रोमीटर था. यह इसरो को क्या खोजने वाले हैं इसकी जानकारी देने के लिए लगे थे. वीडियो इमेजिंग प्रणाली को तस्वीरें लेने और उन्हें बेंगलुरु वापस भेजने के लिए बनाया गया था.
सतह के ऊपर आते ही अंदर रखे गए उपकरणों ने ऑर्बिटर के ऊपरी हिस्से में डेटा इक्ट्ठा करना शुरू कर दिया. डाटा को रीडआउट मेमोरी में रिकॉर्ड किया गया और विश्लेषण के लिए भारत भेजा गया. यह मिशन बेहद मुश्किलों से पूरा हुआ. इसरो ने ऐसे अंतरिक्ष यान को दूसरी दुनिया में दुर्घटनाग्रस्त करके इतिहास रच दिया. प्राचीन काल से मानव प्रजाति के लिए एक पहेली थी. इन तीन उपकरणों का डाटा संभावित रूप से 2019 में चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 मिशन की नींव रखने में मदद की.
इसरो के मुताबिक 40 दिनों की लंबी यात्रा के बाद 23 अगस्त चंद्रयान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की कोशिश करेगा. इसरो के चंद्रयान-1 के मून इम्पैक्ट प्रोब, चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को भी उसी क्षेत्र में उतरने के लिए भेजा गया था. अब चंद्रयान 3 भी यहीं उतरने की कोशिश करेगा. हालांकि इससे पहले दोनों मौक़ों पर नाकामी हाथ लगी थी.
चंद्रयान-1 का मून इम्पैक्ट प्रोब, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. जबकि चंद्रयान-2 के लैंडर से सॉफ्ट लैंडिंग के आखिरी मिनट में सिग्नल मिलना बंद हो गया था. अब एक बार फिर चंद्रयान-3 के साथ इसरो भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश बनाने की कोशिश कर रहा है.
इस बीच 11 अगस्त को रूस द्वारा लॉन्च किया गया लूना 25 भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की तैयारी कर रहा था, जो दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. लेकिन, इसरो को उम्मीद है कि चंद्रयान-3 अपने मिशन में कामयाब होगा.
चंद्रमा को लेकर दुनिया में अभी तक के अहम अभियान पर नजर डालें तो 14 सितंबर, 1959 को पहला मानव निर्मित यान चंद्रमा पर उतरा. तत्कालीन सोवियत रूस का लूना-2 अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरा. इस प्रकार लूना 2 ने चंद्रमा पर उतरने वाली पहली मानव निर्मित वस्तु के रूप में इतिहास रचा. लूना 2 ने चंद्रमा पर उतरने के बाद, उसकी सतह, विकिरण और चुंबकीय क्षेत्र के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की.
इस सफलता ने चंद्रमा पर और अधिक प्रयोग करने तथा अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का रास्ता बनाया. नासा द्वारा लॉन्च किए गए अधिकांश अपोलो मिशन, मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन और रूस द्वारा किए गए लूना 24 मिशन चंद्रमा के भूमध्य रेखा के करीब ही उतरे हैं.
चंद्रयान से पहले हमेशा इन मिशन में चंद्रमा की भूमध्य रेखा पर उतरने का ही प्रयास किया गया क्योंकि चंद्रमा की भूमध्य रेखा के पास उतरना आसान है. चंद्रमा के भूमध्य रेखा के पास, तकनीकी सेंसर और संचालन के लिए आवश्यक अन्य उपकरण सूर्य से सीधी रोशनी प्राप्त करते हैं. यहां दिन के समय भी रोशनी साफ दिखाई देती है. इसीलिए अब तक सभी अंतरिक्ष यान चंद्रमा के भूमध्य रेखा के करीब उतरे.
पृथ्वी की धुरी 23.5 डिग्री झुकी हुई है. इसके कारण ध्रुवों के पास छह महीने दिन का प्रकाश और छह महीने अंधेरा रहता है, लेकिन चंद्रमा की धुरी सूर्य से लगभग समकोण पर है. नासा के अनुसार चंद्रमा की धुरी 88.5 डिग्री लंबवत है. यानी सिर्फ डेढ़ डिग्री की वक्रता. इसका मतलब यह है कि भले ही सूर्य की किरणें चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों को छूती हों, लेकिन सूर्य की किरणें वहां के गड्ढों की गहराई तक नहीं पहुंच पाती हैं.
इस प्रकार, चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र में बने गड्ढे दो अरब वर्षों से सूर्य की रोशनी के बिना बहुत ठंडी अवस्था में बने हुए हैं. चंद्रमा के वे क्षेत्र जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता है, स्थायी छाया वाले क्षेत्र कहलाते हैं. ऐसे क्षेत्रों में तापमान शून्य से 230 डिग्री सेल्सियस तक कम हो सकता है. जाहिर है, ऐसी जगहों पर लैंडिंग करना और तकनीकी प्रयोग करना बहुत मुश्किल है.
चंद्रमा पर बने कुछ गड्ढे बहुत चौड़े हैं. उनमें से कुछ तो सैकड़ों किलोमीटर व्यास के हैं. इन सभी मुश्किल चुनौतियों के बावजूद, इसरो चंद्रयान-3 के लैंडर को 70वें अक्षांश के पास दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग कराने की कोशिश कर रहा है.