Indian Railways: ट्रेन हादसों में जान-माल का नुकसान से बचाव के लिए कितना सुरक्षित है LHB कोच? यहां जानें
Indian Railways: इंडियन रेलवे ने ट्रेनों LHB कोच (लिंक हॉफमैन बुश) लगाए जा रहे हैं. इसका निर्माण कपूरथला रेल कोच फैक्ट्री में किया जाता है. ये कोच यात्रियों के लिए काफी आरामदायक होता है. ये कोच दुर्घटना की स्थिति में कम क्षतिग्रस्त होते हैं और यात्रियों के सुरक्षित रहने की संभावना बढ़ जाती है.
Indian Railways: अभी हम ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण रेल हादसे को भूले भी नहीं थे कि दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल से चलकर यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल होते हुए कामाख्या तक जाने वाली नॉर्थ ईस्ट सुपरफास्ट ट्रेन बक्सर में हादसे का शिकार हो गई. इस हादसे में ट्रेन की 21 बोगियां पटरी से उतर गईं, जिसमें कई यात्रियों की मौत हो गई. वहीं तकरीबन सैकड़ों यात्री घायल हो गए. फिलहाल रेलवे ने अभी तक इस हादसे के कारणों का खुलासा नहीं किया है, लेकिन लगातार हो रहे रेल हादसों को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या रेलवे में ट्रैक और सिग्नल की सेफ्टी पर शानदार काम होने का दावा खोखला है? रेलवे का सेफ्टी पर ध्यान देने के बावजूद देश के अलग-अलग हिस्सों में बार-बार ट्रेन हादसे क्यों हो रहे हैं?
ट्रेन में पहले लगता था ICF डिजाइन वाले कोच
बता दें कि पिछले कई सालों से मोदी सरकार रेलवे के यात्रियों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दे रही है. इसी के तहत कोरोना काल के दौरान पटरी से लेकर ट्रेन के कोच तक बदले गए. इसी के तहत ट्रेन में एलएचबी (लिंक हॉफमैन बुश) कोच लगाए जा रहे हैं. पहले रेलवे ICF (इंटीग्रल कोच फैक्ट्री) डिजाइन वाले कोचों के जरिए ट्रांसपोर्ट किया करती थी, जिसे कई कारणों से अब लगभग हटा ही दिया गया है. भारतीय रेलवे ने वक्त और जरूरत के हिसाब से अपने तकनीक में बदलाव करना शुरू किया. रेलवे में यह बदलाव 1995 के दौर से शुरू हुई थी, जिसे अभी तक जारी रखा गया है. साल 1995 में एक जर्मनी कंपनी से इंडियन रेलवे ने कोच के डिजाइन को लेकर समझौता किया था. इसके बाद से आईसीएफ कोच की जगह नई टेक्नोलॉजी के एलएचबी (लिंक हॉफमैन बुश) का परिचालन देश में शुरू किया गया.
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यहां जानें रेल हादसे में कब होता है भारी नुकसान
हाल के दिनों में कुछ बड़े ट्रेन हादसों को लेकर रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन आरएन मल्होत्रा मीडिया के साथ हुए बातचीत में बताया कि देखिए ट्रेन हादसा कई कारणों से होता है. इससे डिजाइन, पटरी या कोच के प्रकार का कोई संबंध नहीं होता है. अक्सर पटरी पर जा रही ट्रेन उतर जाती हैं. जब ट्रेन कम स्पीड से हादसे का शिकार होती हैं तो ज्यादा जानमाल का नुकसान नहीं होता है. लेकिन, जब यही ट्रेन स्पीड में रहती है तो कुछ डिब्बे पलट जाती हैं या उलटी हो जाती हैं.
देखिए ट्रेन की बॉगियां तब पलटती हैं, जब रेल लाइन ऊंचाई पर बनी होती है या फिर खाई या पुल या पुलिया वहां होती है. पटरी से हटते ही ट्रेन का पहिया दूर चला जाता है तो पलटना स्वाभाविक है. आप कार दुर्घटना में भी देखते हैं कि गाड़ी का पहिया मुड़ने पर वह तीन-चार बार पलट जाती है. ट्रेन में अगर इस तरह का हादसा हुआ है तो इसमें जानमाल का नुकसान ज्यादा होता है. पुल या खाई होने की वजह से भी मौत ज्यादा होती हैं. इसके आलावा अगर दो ट्रेनों में आमने-सामने टक्कर होती हैं तो नुकसान ज्यादा होता है.
जानें रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन ने क्या कहा
मल्होत्रा आगे कहते हैं कि आईसीएफ रेलवे की अपनी फैक्टरी का नाम है, जहां कोचेज बनाई जाती हैं. अभी तक भारत की डिजाइन वाली कोच जो बनती हैं उसे आईसीएफ कहते हैं. यह कपूरथाला और चेन्नई सहित देश के कई हिस्सों में है. वहीं, एलएचबी जर्मनी की कंपनी है. दोनों में फर्क इतना था कि जर्मनी वाली कंपनी का स्प्रींग सिस्टम भारत से बेहतर था. इनकी स्पीड ज्यादा रखी जाती थी. शुरू-शुरू में जब यह तकनीक भारत में आई तो इसमें में भी चलते वक्त या रुकते वक्त ट्रेन में बैठे लोगों को थोड़ा जर्क महसूस होता था. बाद में पता चला कि यह झटका कपलिंग की वजह से आता था. दो डिब्बों को जोड़ने के लिए कपलिंग लगाई जाती है. एलएचबी बॉगी में यह कपलिंग रेलवे ने कहीं और से लेकर लगाई थी. इस वजह से झटका लगता था. अब कपलिंग एलएचबी की ही लगाई जा रही है तो जर्क नहीं होता है.
हम अगर कुल मिलाकर बात करें तो ट्रेन दुर्घटनाओं में एलएचबी कोचेज और आईसीएफ कोचों को कोई लेना-देना नहीं होता है. आईसीएफ डिजाइन वाले कोच में कई सारी कमियां आने लगी थीं, ये कमियां भारतीय रेलवे की तरक्की में बहुत बड़ी बाधा साबित हो रहीं थीं. इसी को ध्यान में रखते हए अब एलएचबी कोचेज लगाए जा रहे हैं. आईसीएफ कोचेज में कम गति, जंग, खराब राइडिंग कम्फर्ट, अंडर गियर पुर्जो की अधिक घिसाव और भी कई तरह के कारण थे. जबकि, एलएचबी कम वजन, बड़ी और चौड़ी खिड़कियां, भरोसे लायक, तेज गति वाली रेल, बेहतर यात्री सुविधा और मरम्मत पर कम खर्चा लगता था.