अनुज शर्मा
लखनऊ: आज 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (International Mother Language Day) पर सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर भारतेंदु हरिश्चंद्र को खूब याद किया जा रहा है. पुकार हो रही है कि अब मातृभाषा में पढ़ाई के लिये लड़ाई लड़ी जानी चाहिये. देशभर के विद्वान भी चिंतित हैं कि काशी, मथुरा, अयोध्या और प्रयागराज जैसी धार्मिक विरासत वाले यूपी में मात्र तीन हजार लोग हैं, जिनकी मातृभाषा संस्कृत है, और भी कई भाषा हैं जो खो सी गयी हैं.
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (Central Sanskrit University) लखनऊ कैंपस के निदेशक प्रो सर्व नारायण झा कहते हैं कि मातृभाषा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि बहुत ही सहज भाव से भाषा का बोझ ढोये बिना भाव बोध होने की क्षमता विकसित करती है. यह संस्कृति सभ्यता, ज्ञान, कला और संस्कार की संवाहिका है. हम अपने बच्चों को शिक्षा बेहतर देना चाहते हैं लेकिन मातृभाषा में शिक्षा की व्यवस्था नहीं है.
इसका सीधा असर बच्चों की बुद्धिमता पर पड़ रहा है. वे विषय के साथ- साथ भाषा के बोझ में भी दबे जा रहे हैं. संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा के कुलपति रहे प्रो. झा एक उदाहरण देते हैं- हिन्दी, अवधी, मगही, ब्रज आदि भाषी परिवेश- क्षेत्र में रहने वाला बच्चा जब विज्ञान और गणित बढ़ता है तो उस पर इन विषयों की सीखने से अधिक अंग्रेजी सीखने का दबाव होता है. वह यही समझता है कि अंग्रेजी नहीं सीखेगा तो गणित – विज्ञान में मेधावी नहीं हो पायेगा.
मातृभाषा की अनदेखी, वर्तमान स्थित पर चिंता और भविष्य में इसे मजबूती देने वाले उपाय सुझाने वाले झा अकेले विद्वान नहीं हैं. पद्भश्री से सम्मानित इतिहासकार- साहित्यकार डॉ. उषा किरण खान और आलोक धान्वा भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं. डॉ. खान का मानना है कि मातृभाषा में हिन्दी का स्थान गंगा नदी की तरह है. अन्य क्षेत्रीय भाषा, कोसी- कमला, गोमती कावेरी नर्मदा की तरह हैं. नदी जैसे संस्कृति को पालती- पोषती है, मातृभाषा भी वही काम करती है.
केंद्र सरकार भारतीय मातृभाषा सर्वेक्षण (एमटीएसआई) के तहत ‘फील्ड वीडियोग्राफी’के जरिये यूपी की भाषाओं को सहेजने का काम अभी जारी रखे हुए है. इस कार्य के पूरा होने पर यूपी में बोली जाने वाली सभी बोलियां राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) के ‘वेब’ संग्रह पर स्थापित कर दी जायेंगी. इसके बाद लोगों को एक क्लिक से अपने राज्य की कई नयी बोली जानने को मिलेंगी.
गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार देशभर में 576 भाषाओं और बोलियों का मातृभाषा सर्वेक्षण पूरा कर लिया है. उत्तर प्रदेश भारत में जनसंख्या के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है. जनसंख्या ज्यादा होने के कारण उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या भी अधिक है. उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा हिन्दी, अवधी, भोजपुरी ब्रजभाषा खड़ीबोली, उर्दू प्रमुख रूप से बोली जाती.
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत योगी सरकार राज्य के अधिकांश इलाकों में बोली जाने वाली भाषा हिन्दी में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराने जा रही है. पाठ्यक्रम का हिन्दी में अनुवाद का कार्य भी पूरा कर लिया गया है. वहीं संस्कृत को बढ़ावा देने के लिये वह सरकारी प्रेस विज्ञप्तियों को हिन्दी अंग्रेजी के साथ संस्कृत- उर्दू में जारी करने का प्रयोग कर चुकी है.
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विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देने के लिये पूरी दुनिया मातृभाषा दिवस 21 फरवरी को मनाया जाता है, 17 नवंबर (नवम्बर), 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि 2008 को अन्तरराष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर दोहराया है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट को आधार मानें तो दुनिया में 6000 भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से लगभग 2680 भाषा खत्म होने के कगार पर हैं. दुनिया भर से हर महीने लगभग दो भाषाएं गायब होती जा रही हैं.