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Gyanvapi Survey: एक अंग्रेज ने 200 साल पहले ज्ञानवापी में खोज निकाला था मंदिर, जानिए इतिहास

Gyanvapi Case : बनारस का सर्वे करने वाले ईस्ट इंडिया कंपनी के टकसाल के अधिकारी जेम्स प्रिंसेप की बनारस पर लिखी किताब और उनकी चित्र श्रृंखला एक बार फिर से सुर्खियों में आ गई है. ब्रिटिश आर्किटेक्ट ने 19वीं सदी में लिखी किताब में ज्ञानवापी मस्जिद के मंदिर होने का दावा किया है.

By अनुज शर्मा | August 3, 2023 3:04 PM
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लखनऊ. बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर देश की सियायसत में भूचाल आया हुआ है. मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक साक्षात्कार में उसे मस्जिद मानने पर ऐतराज जताया है. हिन्दू – मुस्लिम दोनों ही पक्षों के अपने- अपने दावा और तर्क हैं. 1991 से इस मस्जिद को हटाकर मंदिर बनाने की कानूनी लड़ाई चल रही है. ऐसे में 200 साल पहले बनारस का सर्वे करने वाले ईस्ट इंडिया कंपनी के टकसाल के अधिकारी जेम्स प्रिंसेप की बनारस पर लिखी किताब और उनकी चित्र श्रृंखला एक बार फिर से सुर्खियों में आ गई है. ब्रिटिश आर्किटेक्ट ने 19वीं सदी में लिखी किताब में ज्ञानवापी मस्जिद को मंदिर होने का दावा किया है. ज्ञानवापी मस्जिद को विश्वेश्वर मंदिर बताते हुए लंदन में 1830 और 1834 के बीच बनारस इलस्ट्रेटेड के रूप में एक श्रृंखला के चित्र में प्रकाशित किया गया था.

8 इंच से एक मील के पैमाने पर बनारस का एक सटीक नक्शा बनाया

जेम्स प्रिंसेप प्राच्यविद् और पुरातनपंथी थे. वह जर्नल ऑफ द एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के संस्थापक संपादक थे .उन्हें प्राचीन भारत की खरोष्ठी और ब्राह्मी लिपियों को समझने के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है. प्रिंसेप ने कलकत्ता टकसाल में एक परख मास्टर के रूप में एक पद पाया और 15 सितंबर 1819 को अपने भाई हेनरी थोबी के साथ कलकत्ता पहुंचे. कलकत्ता में एक साल के भीतर, उन्हें उनके वरिष्ठ, प्रख्यात प्राच्यविद् होरेस हेमैन विल्सन ने काम करने के लिए बनारस भेजा. फिलिप 1830 में उस टकसाल के बंद होने तक बनारस में रहे. जेम्स प्रिंसेप ने बनारस में वास्तुकला में रुचि लेना जारी रखा. उन्होंने मंदिर की वास्तुकला का अध्ययन और चित्रण किया, बनारस में नए टकसाल भवन के साथ-साथ एक चर्च को भी डिजाइन किया. 1822 में उन्होंने बनारस का एक सर्वेक्षण किया और 8 इंच से एक मील के पैमाने पर एक सटीक नक्शा तैयार किया. यह नक्शा इंग्लैंड में लिथोग्राफ किया गया था. उन्होंने बनारस में स्मारकों और उत्सवों के जलरंगों की एक श्रृंखला को भी चित्रित किया, जिन्हें 1829 में लंदन भेजा गया था. 1830 और 1834 के बीच बनारस इलस्ट्रेटेड के रूप में एक श्रृंखला के चित्र में प्रकाशित किया गया था.

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शिवलिंग को बचाने के लिए ज्ञानवापी कूप मे छुपाया 

ज्ञानवापी मस्जिद जिसे आलमगीर मस्जिद भी कहा जाता है काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है. 1669 मे मुग़ल आक्रमणकारी औरंगजेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़ कर यह ज्ञानवापी मस्जिद बना दी. ज्ञानवापी एक संस्कृत शब्द है इसका अर्थ है ज्ञान का कुआं. 1991 से इस मस्जिद को हटाकर मंदिर बनाने की कानूनी लड़ाई चल रही है. पर 2022 मे सर्वे होने बाद ये ज्यादा चर्चों मे है. दावा किया जा रहा की मस्जिद के वाजुखाने मे 12.8 व्यास का शिवलिंग प्राप्त हुआ है जिसे आक्रमण से बचाने के लिए तत्कालीन मुख्य पुजारी ने ज्ञानवापी कूप मे छुपा दिया गया था. जेम्स प्रिंसेप ने ज्ञानवापी मस्जिद को अपनी किताब बनारस इलस्ट्रेटेड में ‘विश्वेश्वर मंदिर’ के रूप में वर्णित किया है. उनके चित्र में तोड़े गए मंदिर की असली दीवार मस्जिद में खड़ी नजर आती है.

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1936 में पूरे ज्ञानवापी क्षेत्र में नमाज अदा करने के अधिकार के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जिला न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया था. वादी ने सात गवाह पेश किए, जबकि ब्रिटिश सरकार ने पंद्रह गवाह पेश किए. ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज अदा करने का अधिकार स्पष्ट रूप से 15 अगस्त, 1937 को दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि ज्ञानवापी संकुल में ऐसी नमाज कहीं और नहीं पढ़ी जा सकती. 10 अप्रैल 1942 को उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और अन्य पक्षों की अपील को खारिज कर दिया. पंडित सोमनाथ व्यास, डॉ. रामरंग शर्मा और अन्य ने ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और पूजा की स्वतंत्रता के लिए 15 अक्टूबर, 1991 को वाराणसी की अदालत में मुकदमा दायर किया. अंजुमन इंतजमिया मस्जिद और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ ने 1998 में हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर कर इस आदेश को चुनौती दी थी. 7 मार्च 2000 को पंडित सोमनाथ व्यास का निधन हो गया. पूर्व जिला लोक अभियोजक विजय शंकर रस्तोगी को 11 अक्टूबर, 2018 को मामले में वादी नियुक्त किया गया था. 17 अगस्त 2021 मे शहर की 5 महिलाओं राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, सीता साहू और रेखा पाठक ने वाराणसी सत्र न्यायलय में याचिका दायर की थी और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी का उन्हें नियमित दर्शन पूजन की अनुमति मांगी जिसके बाद मस्जिद मे सर्वे कराया गया.

क्या कहती हैं हिन्दू परंपराएं

1669 मे औरंगजेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़ कर इस मस्जिद का निर्माण करवाया. मंदिर परिसर के ही शृंगार गौरी, श्री गणेश और हनुमानजी के स्थानों को भी ध्वस्त कर दिया था. मान्यता है की पश्चिमी दीवार जो की पूरी तरह किसी मंदिर के मुख्य द्वार जैसा प्रतीत होता है वो शृंगार गौरी मंदिर का प्रवेश द्वार होगा जिससे बांस-मिट्ठी से बंद कर दिया गया है. मस्जिद के अंदर गर्भगृह होगा. इसी पश्चिमी दीवार के सामने एक चबूतरा है जहां शृंगार गौरी की एक मूर्ति है जो सिंदूर से रंगी है, यह साल मे एक बार चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन हिन्दू पक्ष के द्वारा यह पूजा होती है परंतु 1991 के पहले यह नियमित पूजा होती थी जिसपर तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने रोक लगा दी थी. 2021 मे पांचों महिलों का इसी मंदिर मे नियमित पूजा करने के लिए याचिका दायर की थी जिसके सर्वे का आदेश कोर्ट द्वारा किया गया था.

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विकीपीडिया के अनुसार यह रिपोर्ट 6 और 7 मई का है. ये लगभग 2-3 पन्नों की रिपोर्ट है. इसके मुताबिक, 6 मई को किए गए सर्वे के दौरान बैरिकेडिंग के बाहर उत्तर से पश्चिम दीवार के कोने पर पुराने मंदिरों का मलबा मिला, जिस पर देवीदेवताओं की कलाकृति बनी हुई थी और अन्य शिलापट पट्ट थे, जिन पर कमल की कलाकृति देखी गईं. पत्थरों के भीतर की तरफ कुछ कलाकृतियां आकार में स्पष्ट रूप से कमल और अन्य आकृतियां थीं, उत्तर पश्चिम के कोने पर गिट्टी सीमेन्ट से चबूतरे पर नए निर्माण को देखा जा सकता है. उक्त सभी शिक्षा पट्ट और आकृतियों की वीडियोग्राफी कराई गई. उत्तर से पश्चिम की तरफ चलते हुए मध्य शिला पट्ट पर शेषनाग की कलाकृति, नागफन जैसी आकृति देखी गईं. शिलापट्ट पर सिन्दूरी रंग की उभरी हुई कलाकृति भी थीं. शिलापट्ट पर देव विग्रह, जिसमें चार मूर्तियों की आकृति बनी है, जिस पर सिन्दूरी रंग लगा हुआ है, चौथी आकृति जो मूर्ति की तरह प्रतीत हो रही है, उस पर सिन्दूर का मौटा लेप लगा हुआ है. शिलापट्ट भूमि पर काफी लंबे समय से पड़े प्रतीत हो रहे हैं. ये प्रथम दृष्टया किसी बड़े भवन के खंडित अंश नजर आते हैं. बैरिकेडिंग के अंदर मस्जिद की पश्चिम दीवार के बीच मलबे का ढेर पड़ा है. ये शिलापट्ट पत्थर भी उन्हीं का हिस्सा नजर आ रहे हैं. इन पर उभरी कुछ कलाकृतियां मस्जिद की पीछे की पश्चिम दीवार पर उभरी कलाकृतियों जैसी दिख रही है. परंतु मुस्लिम पक्ष के विरोध के कारण यह सर्वे रुक गया

विशेष कोर्ट कमिश्नर विशाल सिंह की है यह सर्वे रिपोर्ट

यह रिपोर्ट 14 से 16 मई के बीच का है जो मुस्लिम पक्ष के विरोध के बाद हुआ था. ये लगभग 12-14 पन्नों की रिपोर्ट है. अजय कुमार मिश्र की तरह विशाल सिंह की रिपोर्ट में भी मस्जिद परिसर में हिंदु आस्था से जुड़े कई निशान मिलने की बात कही गई है. रिपोर्ट में शिवलिंग बताए जा रहे पत्थर को लेकर भी डिटेल में जानकारी दी गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वजूखाने में पानी कम करने पर 2.5 फीट का एक गोलाकार आकृति दिखाई दी, जो शिवलिंग जैसा है. गोलाकार आकृति ऊपर से कटा हुआ डिजाइन का अलग सफेद पत्थर है. जिसके बीच आधे इंच से का छेद है, जिसमें सींक डालने पर 63 सेंटीमीटर गहरा पाया गया. इसे वादी पक्ष ने शिवलिंग बताया तो प्रतिवादी पक्ष ने कहा कि यह फव्वारा है परंतु जब हिंदू पक्षकारों ने सर्वे के दौरान कथित फव्वारे को चालकर दिखाने को कहा तब मस्जिद कमेटी के मुंशी ने फव्वारा चलाने में असमर्थता जताई. फव्वारे पर मस्जिद कमेटी ने गोल-मोल जवाब दिया. पहले 20 साल और फिर 12 साल से इसके बंद होने की बात कही गई. कथित फव्वारे में पाइप जाने की कोई जगह नहीं मिली है. रिपोर्ट में तहखाने के अंदर मिले साक्ष्यों का जिक्र करते हुए कहा है कि दरवाजे से सटे लगभग 2 फीट बाद दीवार पर जमीन से लगभग 3 फीट ऊपर पान के पत्ते के आकार की फूल की आकृति बनी थी, जिसकी संख्या 6 थी.

तहखाने में पश्चिमी दीवार पर स्वास्तिक, त्रिशूल और पान के चिन्ह

तहखाने में 4 दरवाजे थे, उसके स्थान पर नई ईंट लगाकर उक्त दरावों को बंद कर दिया गया था. तहखाने में 4-4 पुराने खम्भे पुराने तरीके के थे, जिसकी ऊंचाई 8-8 फीट थी. नीचे से ऊपर तक घंटी, कलश, फूल के आकृति पिलर के चारों तरफ बने थे. बीच में 02-02 नए पिलर नए ईंट से बनाए गए थे, जिसकी वीडियोग्राफी कराई गई है. एक खम्भे पर पुरातन हिंदी भाषा में सात लाइनें खुदी हुईं, जो पढ़ने योग्य नहीं थी. लगभग 2 फीट की दफती का भगवान का फोटो दरवाजे के बाएं तरफ दीवार के पास जमीन पर पड़ा हुआ था जो मिट्टी से सना हुआ था. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक अन्य तहखाने में पश्चिमी दीवार पर हाथी के सूंड की टूटी हुई कलाकृतियां और दीवार के पत्थरों पर स्वास्तिक और त्रिशूल और पान के चिन्ह और उसकी कलाकृतियां बहुत अधिक भाग में खुदी हैं. इसके साथ ही घंटियां जैसी कलाकृतियां भी खुदी हैं. ये सब कलाकृतियां प्राचीन भारतीय मंदिर शैली के रूप में प्रतीत होती है, जो काफी पुरानी है, जिसमें कुछ कलाकृतियां टूट गई हैं.

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