Kakori Action: उत्तर प्रदेश में आजादी की 76वीं वर्षगांठ ‘माटी को नमन-वीरों का वंदन’ करते हुए मनाई जा रही है. इस कड़ी में 9 अगस्त से प्रारम्भ हो रहे स्वाधीनता दिवस उत्सव के तहत 15 अगस्त तक हर दिन गांव से लेकर नगरों और राजधानी लखनऊ तक कई आयोजन किए जाएंगे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज काकोरी ट्रेन एक्शन दिवस पर वीर शहीदों को नमन करेंगे.
काकोरी कांड वास्तव में आजादी की लड़ाई का बेहद अहम हिस्सा है. पौने पांच हजार रुपए की ये डकैती अंग्रेजी सत्ता के सीने में एक नश्तर की तरह चुभी थी, जिसका सूरज कभी नहीं अस्त होता था. काकोरी में शहीद स्मारक पर उकेरी गई इबारतें खामोशी से आज भी वह कहानी कहती हैं.
9 अगस्त 1925 के दिन हुई ये घटना इतिहास के पन्नों में काकोरी कांड के नाम से दर्ज है. हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने इस घटना के नाम में बदलाव किया. सरकार ने इन सभी को बलिदानी मानने के साथ ही इसका नाम काकोरी एक्शन किया.
इस घटना ने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया था. 9 अगस्त 1925 की शाम काकोरी से आलमनगर के बीच अचानक 8 डाउन सहारनपुर लखनऊ पैसेंजर चेन पुलिंग की वजह से रुकी. इसके बाद रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की गर्जना थी और गोलियां की तड़तड़ाहट. कोई नीचे नहीं उतरेगा, हमारी नीयत किसी यात्री को लूटने या फिर किसी हत्या करने की नहीं है. हम केवल सरकारी खजाना लूटने के लिए यहां आए हैं. सभी लोग ट्रेन के अंदर ही रहेंगे.
कुछ क्रांतिकारी ट्रेन की छत से नीचे कूदे, कुछ बोगियों से नीचे उतरे और खजाने वाली बोगी को घेर लिया. उसकी सुरक्षा में लगे अंग्रेज सिपाहियों के होश फाख्ते हो गए. देखते ही देखते खजाने के बक्से को नीचे गिरा दिया गया. इसके बाद ताला तोड़कर क्रांतिकारियों ने 4,600 रुपए लूट लिए और फरार हो गए. इसके बाद यह केस चला और क्रांतिकारियों को सजा भी हुई. लेकिन, काकोरी का नाम इस दिन के बाद इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया.
इतिहासकारों के मुताबिक अंग्रेजों ने उस घटना में शामिल क्रांतिकारियों को चोर-लुटेरा बताया, जबकि यह कोई डकैती नहीं थी. घटना का मकसद भारत पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को कमजोर करना था न कि उनका कोई व्यक्तिगत लाभ. क्रांतिकारियों ने देश के लिए अपनी शहादत थी, उनका बलिदान अनमोल है. इसी कारण अब इस घटना को काकोरी ट्रेन एक्शन नाम से जाना जाता है. वास्तव में ये ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ देश के युवाओं को बहुत बड़ा एक्शन था, जिसका चर्चा विदेश तक में हुई थी.
शहीद स्मृति समारोह समिति के उदय खत्री के मुताबिक एक बार पं. राम प्रसाद बिस्मिल शाहजहांपुर से लखनऊ आने वाली गाड़ी संख्या 8 डाउन की थर्ड क्लास से यात्रा कर रहे थे. शाहजहांपुर में ट्रंक को लोड किया गया. इसमें भारतीयों पर जुल्म कर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा लूटा गया माल था. वहीं से इसे लूटने की योजना बनी. 9 अगस्त, 1925 का वह दिन आया, जब पं. रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लहरी, चंद्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, मुरारी लाल शर्मा, बनवारी लाल, मनमथ नाथ गुप्ता, सचीन्द्र नाथ बख्शी, मुकुंदी लाल ने काकोरी में खजाने की लूट को अंजाम दिया.
उन्होंने बताया कि शहीद चंद्रशेखर आजाद व मुरारी शर्मा ट्रेन की छत पर थे, जबकि बिस्मिल, मनमथ, सचीन्द्र नाथ, मुकुंदी लाल थर्ड क्लास कम्पार्टमेंट में थे. राजेंद्र नाथ लहरी व अन्य साथी सेकंड क्लास कम्पार्टमेंट में थे. वे रिवॉल्वर व माउजर लेकर चढ़े थे. शाम छह बजे के बाद जब ट्रेन काकोरी स्टेशन से आगे बढ़ी तो वारदात को अंजाम दिया गया.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों द्वारा काकोरी कांड की घटना 9 अगस्त 1925 को हुए ब्रिटिश राज के खिलाफ युद्ध में हथियार खरीदने के लिए एक ट्रेन से ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटने की थी.
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों ने इस घटना को अंजाम दिया था. शाहजहांपुर में राम प्रसाद बिस्मिल ने एक बैठक में क्रांतिकारियों द्वारा चलाए जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन को रफ्तार देने के लिए धन की तत्काल व्यवस्था की आवश्यकता के मद्देनजर ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटने की योजना बनाई थी.
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के घर 8 अगस्त को हुई आपात बैठक में सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई गई. अगले ही दिन 9 अगस्त 1925 को हरदोई शहर के रेलवे स्टेशन से सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग सवार होंगे. इन दस क्रांतिकारियों में शाहजहांपुर से बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, मुरारी शर्मा और बनवारी लाल, राजेंद्र लाहिडी, शचींद्रनाथ बख्शी और केशव चक्रवर्ती, औरैया से चंद्रशेखर आजाद और मनमथनाथ गुप्ता और मुकुंदी लाल शामिल थे.
9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से सरकारी खजाने को लूटने की घटना को अंजाम दिया गया, जिसे काकारी कांड का नाम दिया गया. ब्रिटिश सरकार के सरकारी खजाने को लूटने की इस योजना के मुताबिक, पार्टी के एक प्रमुख सदस्य राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1925 को अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व में लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को चेन खींचकर रोक दिया. ट्रेन रुकते ही क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने पंडित चंद्रशेखर आजाद और अन्य साथियों की मदद से ट्रेन में छापा मारकर सरकारी खजाने को लूट लिया.
ट्रेन को लूटने के लिए क्रांतिकारियों के पास पिस्तौलों के अलावा चार जर्मन निर्मित माउजर भी थे, जिनके बट में कुन्दा लगा लेने से यह एक छोटी स्वचालित राइफल की तरह दिखती थी और सामने वाले के मन में भय पैदा करती थी. कहते हैं कि इन माउजर की मारक क्षमता भी अधिक थी. मनमथनाथ गुप्ता ने जिज्ञासावश माउजर का ट्रैगर को दबा दिया, जिससे छूटी हुई गोली अहमद अली नाम के एक यात्री को जा लगी और वह मौके पर ही गिर पड़ा.
इसके बाद क्रांतिकारियों ने झटपट चांदी के सिक्कों और नोटों से भरे चमड़े के थैलों को चादरों में बांध दिया और वहां से बचने के लिए एक चादर वहीं छोड़ दी. अगले दिन अखबारों के जरिए यह खबर पूरी दुनिया में फैल गई. इस ट्रेन डकैती को ब्रिटिश सरकार ने काफी गंभीरता से लिया और उसकी जांच शुरु कर दी.
काकोरी कांड के बाद उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के कुल 40 क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाने को लूटने और यात्रियों की हत्या का मामला शुरू किया. इसमें राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह उन्हें मौत की यानी फांसी की सजा सुनाई गई थी. इस मामले में 16 अन्य क्रांतिकारियों को न्यूनतम 4 वर्ष कारावास से लेकर अधिकतम ‘काला पानी’ यानी आजीवन कारावास तक की सजा दी गई थी.
इन क्रांतिकारियों ने आजादी की ऐसी अलख जगाई की जब केस की सुनवाई होती तो कोर्ट परिसर में क्रांतिकारियों के समर्थन में भीड़ उमड़ पड़ती था. इसके बाद मामले की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट स्थापित की गई. ये कोर्ट उसी भवन में बनायी गयी जिसे आज GPO यानी प्रधान डाकघर कहते हैं. ब्रिटिश हुकूमत के समय ये रिंग्स थिएटर हुआ करता था. हजरतगंज में बना ये भवन आज भी उस तारिख का गवाह है, जब कोर्ट ने क्रांतिकारियों को सजा सुनाई थी.
काकोरी कांड ने ब्रिटिश हुकूमत को इस कदर हिला दिया था कि क्रांतिकारियों को पकड़ने लिए उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. 4600 रुपए की लूट करने वाले इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए करीब 10 लाख रुपये खर्च किए थे. क्रांतिकारियों पर सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छोड़, सरकारी खजाना लूटने और हत्या करने का केस चलाया गया. करीब 10 महीने मुकदमा चला. इसके बाद क्रांतिकारियों को सजा सुनाई गई थी.
दिसंबर 1925 से अगस्त 1927 तक लखनऊ के रोशनद्दौला कचहरी फिर बाद में रिंंक थियेटर में यह मुकदमा दो चरणों में चला. काकोरी षड्यंत्र केस और पूरक केस. इस मुकदमे में एक खास बात यह थी कि इसमें वह एक्शन भी शामिल कर लिए गए, जिनका काकोरी कांड से कोई संबंध नहीं था. जैसे 25 दिसंबर 1924 को पीलीभीत जिले के बमरौला गांव, नौ मार्च 1925 को बिचुरी गांव, और 24 मई 1925 को प्रतापगढ़ जिले के द्वारकापुर गांव में किए गए एक्शन. गिरफ्तार किए गए कई क्रांतिकारी ऐसे थे, जो काकोरी कांड की घटना में शामिल तक नहीं थे.
काकोरी शहीद स्मारक आयोजन समिति के महामंत्री उदय खत्री ने बताया कि क्रांतिकारियों को पकड़वाने के लिए पांच हजार रुपए के इनाम की घोषणा की गई थी. लेकिन, कांड से उत्साहित जनता की क्रांतिकारियों के प्रति सहानुभूति और गहरी हो गई थी.
खुफिया विभाग के एक वरिष्ठ अंग्रेज अधिकारी आरए हार्टन को इस घटना की विवचेना का इंचार्ज बनाया गया. आठ डाउन ट्रेन के यात्रियों के बयान और घटना के स्वरूप को देख हार्टन को शुरू से ही यह समझ में आ गया था कि इस घटना को क्रांतिकारियों ने ही अंजाम दिया है. क्योंकि, इसमें केवल सरकारी खजाना ही लूटा गया था, यात्रियों को कोई नुकसान तक नहीं पहुंचा था.
अंग्रेजों द्वारा इस घटना की एफआईआर काकोरी थाने में दर्ज करवाई गई. इसकी मूल कॉपी उर्दू में लिखी गई थी. बाद में इसका हिंदी अनुवाद भी किया गया. इस एफआईआर की कॉपी आज भी काकोरी थाने में फोटो फ्रेम में सुरक्षित रखी गई है. हालांकि, पूरी कॉपी नहीं है, केवल एक पन्ना भर ही सुरक्षित रखा जा सका है. इसमें अभियुक्तों की संख्या 20 से 25 और लूट की रकम 4,601 रुपए 15 आने और छह पाई दर्ज है.
काकोरी कांड से प्रेरित होकर 2006 में आमिर खान ने फिल्म रंग दे बसंती बनाई. इस फिल्म में दिखाया गया कि किस तरह से कुछ युवा काकोरी कांड से प्रेरित होकर सफेदपोश नेताओं और रक्षा दलालों का काम तमाम करते हैं. इसके साथ ही जनता तक अपनी आवाज को पहुंचाते हैं.