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Khejarli Shaheed Katha: खेजड़ली नरसंहार,जानें राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के पीछे का ये दर्दनाक इतिहास

Khejarli Shaheed Katha: 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में मनाने के लिए इलसिए चुना गया था क्योंकि इसी दिन 1730 में कुख्यात खेजड़ली नरसंहार हुआ था. यह दिन भारत के पर्यावरण आंदोलन के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन था .ऐसा कहा जाता है.

By Rajneesh Yadav | September 11, 2023 7:45 PM
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Khejarli Shaheed Katha: 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में मनाने के लिए इलसिए चुना गया था क्योंकि इसी दिन 1730 में कुख्यात खेजड़ली नरसंहार हुआ था. यह दिन भारत के पर्यावरण आंदोलन के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन था .ऐसा कहा जाता है कि इस दिन, 1730 में, जोधपुर के पास एक छोटे से रेगिस्तानी गांव में, एक बहादुर महिला के नेतृत्व में लगभग 363 बिश्नोई लोगों ने राजा के आदमियों द्वारा पेड़ों की कटाई का विरोध किया था . जोधपुर के किले का निर्माण चल रहा था जिसके लिए लकड़ियों की जरूरत थी इसलिए सैनिकों को खेजड़ली गांव से लकड़ियां लाने का आदेश दिया लेकिन बिश्नोई समुदाय के लोगों ने इस आदेश का विरोध किया क्योंकि वे खेजड़ली के पेड़ों को पवित्र मानते थे.

विरोध स्वरूप, अमृता देवी नाम की एक महिला ने खेजड़ली के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए अपना सिर दे दिया हालांकि , महाराज के सैनिकों ने दोबारा नहीं सोचा और अमृता देवी का सिर काट दिया. उन्होंने उस दिन 350 से अधिक लोगों को मार डाला, जिनमें अमृता देवी के छोटे बच्चे भी शामिल थे. जब इस नरसंहार की सूचना राजा तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत अपने सैनिकों को पीछे हटने के लिए कहा और बिश्नोई समुदाय के लोगों से माफी मांगी. इसके अलावा राजा अभय सिंह ने एक घोषणा की कि बिश्नोई गांवों के आसपास के क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई और जानवरों की हत्या नहीं होगी. साल 2013 में भारत सरकार, पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 11 सितंबर को घोषणा किए जाने के बाद, यह दिन आधिकारिक रूप से अस्तित्व में आया और राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.

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