Lakhimpur Kheri Violence: उत्तर प्रदेश की राजनीति अंततः जाति पर जाकर ही सिमट जाती है और इसका जीता जागता उदाहरण हैं लखीमपुर खीरी मामला. भले ही मृत किसानों को सरकार समेत विपक्ष से भी मुआवजे के रूप में मदद मिल गई है और विपक्ष के कई नेता किसानों एवं दिवंगत पत्रकार के परिजनों से मिल आये हैं या फिर आशीष की गिरफ्तारी हो गयी है, लेकिन इन सब तथ्यों के पीछे का एक कड़वा सच यह है कि यह मामला भीतरखाने में अब ब्राह्मण बनाम सिख होता जा रहा है. ऐसे में इस आग को लगाने वाली राजनीतिक पार्टी कौन सी हैं, यह कह पाना फिलहाल मुश्किल है लेकिन इतना जरूर स्पष्ट है कि इस मामले को अब दूसरी तरफ मोड़ा जा रहा है.
उत्तर प्रदेश की हालिया सरकार में एक विशेष सवर्ण जाति को ज्यादा लाभ मिलने से ब्राह्मण पहले से ही असंतुष्ट हैं. इसी असंतुष्टि का फायदा उठाकर कांग्रेस समेत समाजवादी पार्टी अब ब्राह्मण समुदाय के बीच में उम्मीद देख रहे हैं. इस राजनीतिक ब्राह्मण प्रेम लीला में बसपा भी उतर चुकी है. वहीं, दूसरी तरफ भाजपा ने भी जितिन प्रसाद को लेकर एवं कुछ ब्राह्मण चेहरों को संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर उपकृत किया है. अजय मिश्रा टेनी को राज्यमंत्री बनाया जाना भी उसी रणनीति के तहत किया गया था.
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ऐसे में लखीमपुर मामले के बाद अब टेनी ही भाजपा के लिये अपने पुत्र के कृत्यों के कारण परेशानी का सबब बन गये हैं. टेनी के पुत्र के साथ हुई कार्यवाही का राजनीतिक इस्तेमाल भाजपा को ब्राह्मण विरोधी करार देने में किया जा रहा है. निश्चित रूप से भाजपा को अब इस इलाके में ब्राह्मण वोटों का बिखराव देखने को मिलेगा, लेकिन उस परिस्थिति में अति पिछड़ा एवं व्यापारी वोट एक साथ भाजपा के पाले में जायेगा जो ब्राह्मण वोटों की संख्या एवं अनुपात से कहीं अधिक होगा.
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ब्राह्मण समुदाय में इस बात की भी चर्चा है कि हादसे में मारे गये भाजपा कार्यकर्ता, जिनमें से अधिकांश ब्राह्मण थे, उनके साथ और उनके परिवार के साथ सौतेला व्यवहार क्यों हुआ ? उन परिवारों से जुड़े लोगों ने यह सवाल उठाया है कि क्यों कोई भाजपा नेता या अन्य दल का नेता उनसे मिलने या उन्हें सांत्वना देने नहीं आया ? हालांकि प्रियंका गांधी ने भाजपा कार्यकर्ताओं के घर जाने की भी अनुमति मांगी थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए उन्हें नहीं मिलने दिया था. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के किसी भी नेता या पदाधिकारी ने लखीमपुर घटना में मृत भाजपा कार्यकर्ताओं के घर जाकर उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करना जरूरी नहीं समझा.
An attempt to turn #LakhimpurKheri into a Hindu vs Sikh battle is being made. Not only is this an immoral & false narrative, it is dangerous to create these fault-lines & reopen wounds that have taken a generation to heal.We must not put petty political gains above national unity
— Varun Gandhi (@varungandhi80) October 10, 2021
खीरी के तराई इलाके में सिख समुदाय की संख्या अधिक है, ऐसे में विपक्ष के नेताओं के अलावा पंजाब से कांग्रेस के सिख नेताओं, आम आदमी पार्टी एवं अकाली दल समेत अन्य किसान संगठनों के वरिष्ठ नेताओं की आवाजाही सिख समुदाय के लोगों के बीच हुई. दूसरी तरफ मृत भाजपा कार्यकर्ताओं के पास इन दलों के किसी नेता ने जाना जरूरी नहीं समझा. ऐसे में यह घटना अब ब्राह्मण बनाम सिख बन चुकी है.
उत्तर प्रदेश में सिख वोटों का प्रतिशत भले ही पंजाब या दिल्ली की तुलना में बहुत कम है, लेकिन आने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र भाजपा भविष्य में इस मामले को किस प्रकार इस्तेमाल करेगी, यह बड़ा सवाल है. इस राजनीतिक परिदृश्य में अगर कुछ स्पष्ट है तो वह यह है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस वक्त लखीमपुर के बहाने और भी बहुत कुछ हो रहा है.
(रिपोर्ट- उत्पल पाठक, लखनऊ)