Leptospirosis case: मौसम में बदलाव के बीच डेंगू सहित कई प्रकार की बीमारियों ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में पैर पसार लिए हैं. इनमें बड़ी संख्या में बच्चों प्रभावित हो रहे हैं. इन सबके बीच लेप्टोस्पायरोसिस (Leptospirosis) बीमारी ने दस्तक दी है. आम लोग इसके बारे में भले ही नहीं जानते हों. लेकिन, ये कोरोना संक्रमण से भी कई गुना ज्यादा घातक मानी जाती है और सही इलाज नहीं मिलने या फिर इलाज में लापरवाही करने में गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.
चिकित्सकों के मुताबिक वास्तव में लेप्टोस्पायरोसिस एक तरह का बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, जो इंसानों और जानवरों दोनों को संक्रमित कर सकता है. यह लेप्टोस्पाइरा जीनस (genus) के बैक्टीरिया के कारण होता है. इंसानों में लेप्टोस्पाइरा के कई तरह के लक्षण देखने को मिलते हैं, जिनमें से कई अन्य बीमारियों के लक्षणों से मिलते हैं. अहम बात है कि इसके अलावा कई मरीजों में इसका एक भी लक्षण नजर नहीं आता. वास्तव में लेप्टोस्पायरोसिस कोई मामूली बीमारी नहीं है, इसका समय पर इलाज नहीं होने से किडनी डैमेज, लिवर फेल, सांस संबंधी समस्या और यहां तक कि मौत भी हो सकती है.
विशेषज्ञों के मुताबिक लेप्टोस्पायरोसिस का कारण बनने वाले बैक्टीरिया संक्रमित जानवरों के मूत्र के जरिए तेजी से फैलते हैं. ये पानी या मिट्टी में मिल सकते हैं और वहां हफ्तों से लेकर महीनों तक जीवित रह सकते हैं. इसकी वजह से कई अलग-अलग तरह के जंगली और घरेलू जानवर इन बैक्टीरिया की चपेट में आ जाते हैं और संक्रमण का शिकार होते हैं. इनमें भेड़, सुअर, घोड़े, कुत्ते, चूहे समेत अन्य जंगली जानवर भी शामिल हो सकते हैं, जो इस संक्रमण का शिकार हो सकते हैं. वहीं, इंसानों में यह इन्फेक्शन संक्रमित जानवरों के मूत्र या लार को छोड़कर शरीर के अन्य तरल पदार्थ के संपर्क में आने से फैल सकता है.
उत्तर प्रदेश के वाराणसी व अन्य जगहों पर लेप्टोस्पायरोसिस के अचानक बढ़ते मामलों ने चिकित्सकों की चिंता बढ़ा दी है. वाराणसी में अब तक 10 से अधिक बच्चे इसकी चपेट में आ चुके हैं. शहर के निजी अस्पतालों में उनका इलाज चल रहा है. ऐसे में मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने अलर्ट जारी कर दिया है, लोगों से लेप्टोस्पायरोसिस को लेकर सतर्कता बरतने और तत्काल इलाज की अपील की गई है.
चिकित्सकों के मुताबिक तेज बुखार के कारण बीमार बच्चों में शुरुआत में इलाज के बाद भी उन्हें कोई लाभ नहीं मिला. बीमारी पकड़ में नहीं आने पर चिकित्सकों ने जब सी रिएक्टिव प्रोटीन यानी सीआरपी जांच कराई, तब इसके ज्यादा होने वह उन्हें लेप्टोस्पायरोसिस की संभावना हुई. इसके बाद लेप्टोस्पायरोसिस की जांच कराने पर रिपोर्ट के पॉजिटिव आने पर चिकित्सक बुखार के ऐसे मामले वाले मरीजों को लेकर अलर्ट हो गए हैं.
मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. संदीप चौधरी ने बताया कि लेप्टोस्पायरोसिस की जानकारी मिलते ही बाल रोग विशेषज्ञों को अलर्ट किया गया है. इससे पहले 2013 में मामले सामने आए थे. मंडलीय अस्पताल के बालरोग विशेषज्ञ डॉ. सीपी गुप्ता ने बताया कि ओपीडी में मरीज आ रहे हैं. उनका इलाज किया जा रहा है.
चिकित्सकों के मुताबिक अगर बुखार तीन-चार दिन से ज्यादा है तो इसमें बिलकुल लापरवाही नहीं बरतें. जितनी जल्दी हो सके, सीआरपी की जांच कराएं. सीआरपी के ज्यादा होने का सीधा मतलब है कि मरीज को बैक्टीरियल बुखार है. इसके बाद लेप्टोस्पायरोसिस की जांच करानी चाहिए. अहम बात है ऐसे मामलों में डेंगू और वायरल से लक्षण मिलते हैं. हालांकि इसमें प्लेटलेट्स तेजी से नहीं गिरता है, 30 से 40 हजार तक पहुंचने के बाद रिकवर हो जाता है.
चिकित्सकों के मुताबिक लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी चूहे के मूत्र के जरिये बच्चों में फैल रही है. इसमें डेंगू की तरह ही बुखार आता है. यह शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है. पहले सामान्य बुखार होता है. लक्षण पांच से छह दिन बाद मिलते हैं. सही इलाज नहीं मिलने पर बुखार 10 से 15 दिन रहता है. इससे वायरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस से लेकर हार्ट फेल होने की संभावना बनी रहता है.
लेप्टोस्पायरोसिस से संक्रमित इंसानों में इसके कुछ सामान्य लक्षण देखने को मिलते हैं, जिसमें तेज बुखार, सिर दर्द, ठंड लगना, मांसपेशियों में दर्द, उल्टी होना, जॉन्डिस, लाल आंखें, पेट में दर्द, दस्त खरोंच शामिल है. व्यक्ति के इस संक्रमण के संपर्क में आने और बीमार होने के बीच का समय दो दिन से चार सप्ताह तक हो सकता है. बीमारी आमतौर पर बुखार और अन्य लक्षणों के साथ अचानक शुरू होती है.
चिकित्सकों के मुताबिक कुछ मामलों में लेप्टोस्पायरोसिस दो चरणों में हो सकता है. पहले चरण के बाद यानी बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, उल्टी या दस्त के साथ रोगी कुछ समय के लिए ठीक हो सकता है. लेकिन, फिर बीमार हो जाता है. जबकि दूसरे चरण में यह लक्षण बेहद गंभीर हो जाते हैं. वहीं, कुछ लोगों में किडनी या लिवर फेलियर हो सकता है. यह बीमारी कुछ दिनों से लेकर तीन सप्ताह या उससे अधिक समय तक रह सकती है. अगर सही इलाज नहीं मिले, तो ठीक होने में कई महीने लग सकते हैं.
लेप्टोस्पायरोसिस का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जा सकता है, जिन्हें बीमारी की शुरुआत में ही डॉक्टर से संपर्क कर के लिया जाना चाहिए. वहीं, अधिक गंभीर लक्षणों वाले व्यक्तियों की जांच के बाद ही डॉक्टर इलाज और दवाएं तय करते हैं. हालांकि, किसी भी बीमारी से बचने के लिए परहेज सबसे अच्छा इलाज होता है.
लेप्टोस्पायरोसिस से बचने का सबसे आसान तरीका है, जानवरों के मूत्र से दूषित पानी में तैरने या उतरने से बचें या संभावित रूप से संक्रमित जानवरों के साथ संपर्क में आने से बचें.
लेप्टोस्पायरोसिस संक्रमण दूषित पानी के संपर्क में आने या तैरने की वजह से हो सकता है. इसके अलावा बाढ़ वाले क्षेत्रों में या दूषित खाना या पानी का सेवन से भी यह संक्रमण फैल सकता है. लेप्टोस्पायरोसिस संक्रमण का खतरा ट्रॉपिकल और सब-ट्रॉपिकल क्षेत्रों में ज्यादा होता है क्योंकि ये बैक्टीरिया गर्म और ह्यूमिड वातावरण में तेजी से पनपते हैं. वहीं, बाढ़ का खतरा भी अक्सर बारिश के मौसम में होता है, जब पानी काफी दूषित हो जाता है. इसलिए बारिश के मौसम में लेप्टोस्पायरोसिस का खतरा बढ़ जाता है.