उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए लिटमस टेस्ट हो सकते हैं उपचुनाव

लखनऊ : प्रदेश में हो रहे उपचुनाव भाजपा की लोकप्रियता के लिए लिटमस टेस्ट के रूप में पेश किये जायेंगे. इसलिए इस बार उपचुनाव में भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर है. जीत और हार को भाजपा शासनकाल की लोकिप्रयता के तराजू पर तौला जाना तय है.

By संवाद न्यूज | October 24, 2020 6:37 PM
an image

लखनऊ : प्रदेश में हो रहे उपचुनाव भाजपा की लोकप्रियता के लिए लिटमस टेस्ट के रूप में पेश किये जायेंगे. इसलिए इस बार उपचुनाव में भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर है. जीत और हार को भाजपा शासनकाल की लोकिप्रयता के तराजू पर तौला जाना तय है. प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजों को लेकर कयास तेज होते जा रहे हैं. इनके नतीजे सिर्फ जीत-हार ही नहीं बतायेंगे, बल्कि जनाधार का पैमाना भी साबित होनेवाले हैं. हिंदुत्व, कानून व्यवस्था, जातीय समीकरण और किसानों का मूड चुनावी मुद्दे बने हैं.

उपचुनाव से पहले के तीन-चार महीनों में राजनीतिक घटनाक्रम काफी तेजी से बदला है. बिकरू कांड से लेकर बलिया कांड और हाथरस से लेकर औरैया तक की घटनाओं को विपक्ष ने मुद्दा बनाने की कोशिश की है. केंद्र सरकार के नये कृषि कानूनों को लेकर देश भर में सरगर्मी तेज है. विपक्ष इन कानूनों को किसान विरोधी बता रहा है, तो भाजपा की तरफ से इसे किसान हितैषी साबित करने की कोशिश हो रही है. उपचुनाव के नतीजों से किसानों के रुख का भी संकेत मिलेगा.

नतीजों पर कहीं-न-कहीं हिंदुत्व के मुद्दे का असर भी दिखेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की शुरुआत के बाद प्रदेश में पहली बार चुनाव हो रहे हैं. राम मंदिर प्रदेश की राजनीति में बड़ा मुद्दा रहा है. लोग ये मानते भी हैं कि अयोध्या में मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने में भाजपा सरकार की भूमिका है.

विपक्ष ने कानपुर के बिकरू कांड में पुलिस की भूमिका को लेकर तथा प्रयागराज, औरैया, एटा सहित अन्य कुछ स्थानों की घटनाओं के बाद ब्राह्मण उत्पीड़न का मामला उठा कर सरकार को घेरने की कोशिश की है. सपा, कांग्रेस और बसपा ही नहीं, आम आदमी पार्टी तक ने भाजपा सरकार पर ब्राह्मण उत्पीड़न और इस समाज की उपेक्षा के आरोप लगाये हैं. भाजपा की तरफ से इन आरोपों को गलत साबित करने के लिए ना सिर्फ कई ब्राह्मण चेहरे आगे किये, बल्कि तथ्यों और तर्कों के साथ आक्रमण भी किया है.

हाथरस की घटना ने ना सिर्फ प्रदेश की सियासत को गरमाया, बल्कि इसकी तपिश का असर देश की राजनीति पर भी देखने को मिला. विपक्ष ने इस घटना को अनुसूचित जातियों के सम्मान, स्वाभिमान और संवेदनाओं से जोड़कर मुद्दा बनाने की कोशिश कर सरकार को घेरने की कोशिश की. वहीं, सरकार ने विपक्ष की भूमिका को कठघरे में खड़ा करने के साथ दोषियों पर कार्रवाई करके विपक्ष के आरोपों को गलत साबित करने का प्रयास किया.

लेकिन, विपक्ष की तरफ से हाथरस की घटना में विरोधी दलों के नेताओं और मीडिया के साथ प्रशासन के व्यवहार को मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है. रालोद नेता जयंत चौधरी पर पुलिस के लाठीचार्ज के सहारे पश्चिम की सीटों पर जाटों की संवेदनाओं के सहारे सियासी समीकरण साधने की कोशिश हो रही है.

Exit mobile version