लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) भी यूपी के रण में दिखेगी. समाजवादी पार्टी ने भदोही की सीट टीएमसी के लिए छोड़ी है. शुक्रवार 15 मार्च को समाजवादी पार्टी ने छह सीटों पर प्रत्याशी का ऐलान किया है. सातवीं सीट भदोही को उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के खाते में दे दिया है. सपा के इस ऐलान से यूपी की राजनीति का तापमान गर्म हो गया है. इस सीट से टीएमसी से ललितेशपति त्रिपाठी मैदान में हैं. ललितेश पति यूपी के पूर्व सीएम कमला पति त्रिपाठी के परपौत्र हैं. ब्राह्मण बाहुल्य भदोही सीट टीएमसी को देकर अखिलेश यादव ने बड़ा दांव खेला है. वहीं टीएमसी से अपने निजी रिश्ते भी बनाकर रखे हैं.
भदोही तृणमूल के खाते में क्यों
ललितेश पति त्रिपाठी यूपी के पूर्व सीएम कमलापति त्रिपाठी के परपौत्र हैं. उनके पिता का नाम राजेशपति त्रिपाठी है. मिर्जापुर, भदोही सहित आसपास के जिलों में इस परिवार की ख्याति है और प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में गिनती है. भदोही में ब्राह्मण मतदाता की संख्या अच्छी खासी है. यहां के मुख्यालय ज्ञानपुर से विजय मिश्रा सपा के विधायक हैं. इस समय विभिन्न मामलों में योगी सरकार ने उन्हें जेल में डाल रखा है. बीजेपी से नाराज ब्राह्मण मतदाता को वो ललितेशपति त्रिपाठी के सहारे अपने साथ लाना चाहते हैं. इसके अलावा निषाद और मुस्लिम मतदाता की भी संख्या यहां ठीक ठाक है.
ललितेशपति ने की चुनाव लड़ने की पुष्टि
ललितेशपति त्रिपाठी ने प्रभात खबर के साथ फोन पर हुई बातचीत में भदोही से चुनाव लड़ने की पुष्टि की है. उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता बनर्जी ने उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति दी है. तृणमूल कांग्रेस की नेशनल एग्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य व यूपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नीरज राय ने कहा कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और ममता दीदी के बीच इस सीट को लेकर समझौता हुआ है. गौरतलब है कि मिर्जापुर की मड़िहान सीट से 2012 में विधायक रह चुके हैं. 2019 का लोकसभा चुनाव भी ललितेश ने लड़ा था लेकिन वो बीजेपी के प्रत्याशी रमेश बिंद से हार गए थे. कांग्रेस में उपेक्षा से राजेशपति त्रिपाठी ने पुत्र सहित 2021 में कांग्रेस छोड़कर टीएमसी जॉइन की थी. इसके बाद से वो पार्टी से जुड़े हुए हैं.
अखिलेश यादव ने खेला बड़ा दांव
वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश बाजपेयी कहते हैं कि टीएमसी को अखिलेश यादव ने अपने कोटे से एक सीट दी है. इसके पीछे ममता बनर्जी से उनके निजी रिश्ते तो हैं ही, कुछ राजनीतिक कारण भी हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहचान बीजेपी से सीधी टक्कर लेने वाली नेता के रूप में हैं. यदि वो यहां एक दो जनसभाएं कर देती हैं तो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को फायदा पहुंचा सकती हैं. मिर्जापुर भदोही कालीन निर्माण के प्रसिद्ध है. यहां मुस्लिम कारीगर बड़ी संख्या में हैं. वो ममता बनर्जी के जरिए पूर्वांचल के मुस्लिमों को बड़ा संदेश दे सकते हैं.
भदोही लोकसभा सीट पर एक नजर
भदोही देश दुनिया में कालीन निर्माण के लिए जाना जाता है. भदोही लोकसभा सीट 2009 में आस्तित्व आई थी. 2009 का पहला चुनाव बीएसपी ने जीता था. उनके गोरखनाथ पांडेय यहां से सांसद बने थे. इसके बाद 2014 में बीजेपी से वीरेंद्र सिंह मस्त जीते. 2019 में बीजेपी से रमेश बिंद ने जीत हासिल की. 2024 में यहां से बीजेपी हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रही है. हालांकि 2009 से पहले ये सीट मिर्जापुर-भदोही के नाम से जानी जाती थी. यहां से 1952, 1957, 1962 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. 1967 में जनसंघ ने यहां से जीत हासिल की. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी ने मिर्जापुर भदोही की सीट जीत ली. 1980, 1984 में भी यहां से कांग्रेस का सांसद रहा. लेकिन 1989 में जनता दल ने यहां जीत हासिल की थी.
बैंडिट क्वीन फूलन देवी दो बार रही हैं सांसद
1991 में राम मंदिर आंदोलन का दौर था और बीजेपी ने यहां से अपना सांसद जिता लिया. लेकिन 1996 में सबसे बड़ा उलटफेर समाजवादी पार्टी ने किया. जब मुलायम सिंह यादव ने आत्मसमर्पण कर चुकी डकैत फूलन देवी को यहां से चुनावी मैदान में उतार दिया. फूलन देवी ने मुलायम सिंह यादव के भरोसे पर कायम रहते हुए भदोही सीट उनको जीतकर दे दी. दो साल बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी से फिर से ये सीट सपा से छीनी. लेकिन एक साल बाद फिर से फूलन देवी यहां से सांसद बनी. 2004 में बीएसपी के नरेंद्र कुशवाहा से यहां सांसद बने थे.
ये है जातीय समीकरण
भदोही के जतीय समीकरण पर नजर डालें तो यहां लगभग 3.50 लाख से अधिक ब्राह्मण, बिंद लगभग 3 लाख, मुस्लिम 2.50 लाख, यादव 1.50 लाख, दलित 2.50 लाख हैं. इसके अलावा क्षत्रिय एक लाख, वैश्य लगभग 1.50 लाख है. ओबीसी समाज की मौर्य, पाल, पटेल जातियों की लगभग 2.60 लाख जनसंख्या है.