Lok Sabha election : सपा गठबंधन से सावधान UP कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने को उत्सुक, फैसला आलाकमान पर छोड़ा
यूपी कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि अगर मुस्लिम और पासी वोट कांग्रेस की ओर जाते हैं और पार्टी उच्च जाति के वोटों को बनाए रखने में कामयाब होती है, तो 2024 के चुनावों में अकेले लड़ने पर उसे पुनरुत्थान मिल सकता है.
Lok Sabha election 2024 : आगामी लोकसभा चुनाव में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) को हराने के लिए विपक्षी दलों ने इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इन्क्ल्युसिव एलायंस (INDIA) का गठन किया है. कांग्रेस के नेतृत्व वाले इस गुट में सपा भी शामिल है. बावजूद इसके ‘कांग्रेस’ की उत्तर प्रदेश इकाई (यूपी कांग्रेस) सपा गठबंधन से सावधान है. यूपी कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने को उत्सुक है,हालांकि अंतिम फैसला आलाकमान पर छोड़ती है. यूपी कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि अगर मुस्लिम और पासी वोट कांग्रेस की ओर जाते हैं और पार्टी उच्च जाति के वोटों को बनाए रखने में कामयाब होती है, तो 2024 के चुनावों में अकेले लड़ने पर उसे पुनरुत्थान मिल सकता है.
पुनरुद्धार के लिए कांग्रेस में अकेले चलने की धारणा
आगामी चुनावों के लिए सुझाव इकट्ठा करने के लिए पिछले एक पखवाड़े में कांग्रेस आलाकमान द्वारा बुलाई गई दो बैठकों में उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनावों में अकेले लड़ने की पुरजोर वकालत करने के बाद, राज्य के कांग्रेस नेता अचानक चुप हो गए हैं. इसकी वजह है “पार्टी आलाकमान” का निर्णय मायने रखता है,हालांकि, राज्य कांग्रेस के नेताओं के बीच अभी भी यह मजबूत धारणा है कि राज्य में अपने पुनरुद्धार के लिए पार्टी को अकेले चलना चाहिए. यदि ऐसा नहीं हो सकता तो कम से कम समाजवादी पार्टी (सपा) से दूरी बनाए रखनी चाहिए.
2017 में एसपी के साथ गठबंधन का नहीं मिला लाभ
मीडिया में दिये बयानों को आधार मानें तो कांग्रेस नेता राज्य में 2009 की सफलता को दोहराना चाहते हैं और उन्हें लगता है कि पार्टी को 2017 में एसपी के साथ गठबंधन से ज्यादा फायदा नहीं हुआ. उनका मानना है कि जमीनी स्तर पर राज्य के अल्पसंख्यक सपा का विकल्प तलाश रहे हैं, जिसे पार्टी को अकेले ही भुनाना चाहिए. अपनी पार्टी के बारे में कांग्रेस के भीतर असंतोष को भांपने वाले सपा नेताओं का कहना है कि न केवल कांग्रेस के भीतर ऐसी राय नगण्य है. सपा को “नकार करने वालों” को भी अपने राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्णय को स्वीकार करना होगा. उसका पालन करना होगा.
यूपी कांग्रेस मानती है सपा की वोटरों पर पकड़ कमजोर हुई
कांग्रेस की जिला कार्यकारिणी में शामिल एक नेता का कहना था कि गठबंधन तब काम करते हैं जब पार्टियों की अपने मतदाताओं पर मजबूत पकड़ होती है. वे उन्हें दूसरों को हस्तांतरित करने में सक्षम होते हैं. अब यहां ऐसा मामला नहीं है. हाल के दशकों में, कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देखा था, जिसमें 18.25% वोट शेयर के साथ 80 में से 21 सीटें जीती थीं. बीजेपी ने 17.5% वोटों के साथ केवल 10 सीटें जीती थीं. बीएसपी ने लगभग 27% वोटों के साथ 20 सीटें जीती थीं और एसपी ने लगभग 23% वोट शेयर के साथ 23 सीटें जीती थीं.
2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 28 सीट जीती
2012 के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस 28 सीटों के साथ 11.65% वोट हासिल करने में सफल रही, जबकि उसके गठबंधन सहयोगी आरएलडी ने 9 सीटें जीतीं. जहां एसपी ने 224 सीटों और 29% वोटों के साथ सरकार बनाई, वहीं बीएसपी को 80 सीटें और लगभग 26% वोट मिले, जबकि बीजेपी 47 सीटों और 15% वोटों के साथ पीछे रह गई. हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनावों में, कांग्रेस राज्य में केवल 7.53% वोट शेयर के साथ दो सीटों, यानी अमेठी और रायबरेली पर सिमट गई थी.बसपा को एक भी सीट नहीं मिली और सपा को सिर्फ 5 सीटें मिलीं, वहीं भाजपा ने लगभग 43% वोटों के साथ 71 सीटें हासिल कीं.
2017 के विधानसभा चुनावों में सपा के साथ गठबंधन में सीट घटीं
2017 के विधानसभा चुनावों में, जब कांग्रेस ने एसपी के साथ गठबंधन में राज्य की 403 सीटों में से 114 सीटों पर चुनाव लड़ा, तो उसकी संख्या घटकर 7 (6.25% वोट शेयर के साथ) रह गई. सपा ने 47 (लगभग 22% वोट शेयर के साथ) सीट जीतीं. बीजेपी ने भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई. 2019 के लोकसभा चुनावों में, कांग्रेस ने गांधी परिवार के गढ़ अमेठी को भी खो दिया क्योंकि वह 6.3% वोट शेयर के साथ सिर्फ रायबरेली को बरकरार रखने में सफल रही, जबकि भाजपा का वोट शेयर लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ गया. एसपी लगभग 18% वोटों के साथ अपनी 5 सीटें बचाने में सफल रही। हालांकि, कांग्रेस के लिए सबसे बुरी स्थिति 2022 के विधानसभा चुनावों में आई, जब दांव पर लगी 403 सीटों में से 399 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद, उसकी संख्या घटकर सिर्फ दो सीटों (और 2.33% वोट शेयर) पर आ गई.
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कई नेताओं ने खुले तौर पर अकेले चुनाव लड़ने का समर्थन किया
लखनऊ में पार्टी की कई बैठकों में भाग लेने वाले एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि कई नेताओं ने खुले तौर पर अकेले चुनाव लड़ने का समर्थन किया था. वह कहते हैं “ गठबंधन की वकालत करने वाले कह रहे हैं कि 2022 में अकेले चुनाव लड़ने पर पार्टी वैसे भी 2% पर सिमट गई थी, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तुलना करना गलत है. क्योंकि दोनों चुनाव में मतदाता की मानसिकता अलग अलग होती है. इसके अलावा, 2022 ने सपा के लिए भी चीजें बदल दीं. हमने कुछ सीटों पर भाजपा के यादव उम्मीदवारों को सपा के मजबूत यादव उम्मीदवारों को हराते हुए भी देखा. जहां तक लोकसभा का सवाल है, हमारा मानना है कि अगर हमने मजबूत उम्मीदवार उतारे तो कांग्रेस के पास बेहतर मौका है. कांग्रेस के पास एक वर्ग ऐसा है जो बसपा के साथ गठबंधन के पक्ष में है. कुछ लोगों का मानना है कि मायावती के साथ गठबंधन करना एक कठिन काम है. एक कांग्रेस नेता कहते हैं “ निश्चित रूप से उसकी अन्य प्राथमिकताएं और भय हैं, इसलिए समय बर्बाद करने के बजाय हमने अकेले जाने का समर्थन किया. यह सिर्फ हमारी राय थी. पार्टी आलाकमान अंतिम निर्णय लेगा.
यूपी कांग्रेस तो राष्ट्रीय पार्टी की एक शाखा मात्र : राजेंद्र चौधरी
कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने के सवाल पर वरिष्ठ सपा नेता राजेंद्र चौधरी से इंडियन एक्सप्रेस के साथ अपने विचार साझा किए थे. इसमें उन्होंने कहा था कि ऐसे विचारों का कोई मतलब नहीं है. यूपी कांग्रेस तो राष्ट्रीय पार्टी की एक शाखा मात्र है. राष्ट्रीय परिदृश्य को देखते हुए उनके नेता उनसे जो कहेंगे, वे उसका पालन करेंगे. अखिलेश यादव सहित हम सभी एक बड़े उद्देश्य के लिए एकजुट हो रहे हैं और कांग्रेस नेता वही करेंगे जो उनके वरिष्ठ नेता तय करेंगे.