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शिवपाल यादव 2019 में हुई गलती को सुधारेंगे, फिरोजाबाद से बनेंगे अक्षय यादव के सारथी, जानें सियासी समीकरण

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सैफई कुनबा एकजुट है. इसलिए उसमें आत्मविश्वास भी नजर आ रहा है. अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव को चुनावी समीकरण साधने की जिम्मेदारी सौंप दी है. इसलिए शिवपाल सैफई कुनबे के प्रभाव वाली सीटों पर पार्टी को मजबूत करने में जुट गए हैं.

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर समाजवादी पार्टी सधे हुए कदमों से अपनी रणनीति पर अभी से काम कर रही है. भाजपा के मिशन 80 का जवाब देने के लिए विपक्ष के India National Developmental Inclusive Alliance (I-N-D-I-A) की सफलता का बड़ा दारोमदार समाजवादी पार्टी के जिम्मे है. इसलिए पार्टी उन सीटों पर सबसे ज्यादा फोकस कर रही है, जहां 2019 में वह कम वोटों के अंतर या फिर अपनी कमियों की वजह से हारी थी. फिरोजाबाद लोकसभा सीट इन्हीं में से एक है.

2019 में शिवपाल यादव ने बिगाड़ा था सपा का खेल

चाचा शिवपाल यादव ने 2019 में फिरोजाबाद से मैदान में उतरकर भतीजे अक्षय यादव के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी ​थी. उन्होंने न सिर्फ सपा के समीकरण बिगाड़ने का काम किया, बल्कि इसी वजह से ये सीट भाजपा के पाले में चली गई. भाजपा के डॉ. चंद्रसेन ने सपा के अक्षय यादव को हराकर यहां से जीत दर्ज की, शिवपाल यादव तीसरे स्थान पर रहे.

इस बार चाचा ने किया भतीजे की जीत का ऐलान

लोकसभा चुनाव 2024 में शिवपाल यादव ने इसी गलती को सुधारने का ऐलान करते हुए फिरोजाबाद से अक्षय यादव की जीत सुनिश्चित करने की बात कही है. उन्होंने कहा, ‘इस बार ये चाचा फिरोजाबाद संसदीय चुनाव में अक्षय की विजय का निमित्त बनेंगे.’

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2019 में इस तरह भाजपा को मिला फायदा

दरअसल फिरोजाबाद सीट पर 2019 का लोकसभा चुनाव शुरुआत से ही बेहद अहम माना जा रहा था. 2014 में इस सीट से जीत दर्ज करने वाले मुलायम कुनबे के अक्षय यादव को अखिलेश यादव ने फिर उम्मीदवार बनाया था. तब​ तक शिवपाल यादव की सियासी राहें अलग हो चुकी थी. उन्होंने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन किया था और पारिवारिक विवाद के कारण इस सीट से उन्होंने ताल ठोक दी.

ऐसे में जातीय और सियासी समीकरण बदल गए. शिवपाल यादव के मैदान में उतरने से समाजवादी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा. शिवपाल यादव भले ही खुद जीत हासिल नहीं कर सके, लेकिन उन्होंने भतीजे अक्षय यादव की जीत में रोड़े अटका दिए. इसका फायदा भाजपा के डॉ. चद्रसेन का मिला और वह फिरोजाबाद से कमल खिलाने में कामयाब रहे.

मुलायम के निधन के बाद सैफई कुनबा हुआ एकजुट

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सैफई कुनबा एकजुट है. इसलिए उसमें आत्मविश्वास भी नजर आ रहा है. अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव को चुनावी समीकरण साधने की जिम्मेदारी सौंप दी है. इसलिए शिवपाल सैफई कुनबे के प्रभाव वाली सीटों पर पार्टी को मजबूत करने में जुट गए हैं.

अखिलेश यादव अहम भूमिका निभाने की तैयारी में

उधर अखिलेश यादव भी India National Developmental Inclusive Alliance (I-N-D-I-A) और PDA (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) के जरिए बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी में हैं. अखिलेश यादव के ये दांव कहां तक सफल होगा, ये चुनाव के नतीजों के बाद स्पष्ट होगा, लेकिन सैफई कुनबा अभी से अपनी जड़ें मजबूत करने में जुट गया है.

जातीय समीकरण साधने में जुटी सपा

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक फिरोजाबाद में मुस्लिम मतदाता काफी हद तक चुनाव को प्रभावित करते हैं. 2014 के आंकड़ों के मुताबिक फिरोजाबाद में 16 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमें से 9 लाख से अधिक पुरुष और 7 लाख से अधिक महिला मतदाता हैं. इस सीट पर मुस्लिम के बाद जाट और यादव मतदाताओं का अच्छा प्रभाव माना जाता है. समाजवादी पार्टी इसी ​समीकरण को अपने पक्ष में करने में जुटी है.

विधानसभा सीटों पर सपा का पलड़ा भारी

फिरोजाबाद लोकसभा क्षेत्र के टुंडला, जसराना, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद और सिरसागंज कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में टूंडला सीट पर भाजपा के प्रेमपाल सिंह धनगर, जसराना से सपा के सचिन यादव, फिरोजाबाद से भाजपा के मनीष असीजा, शिकोहाबाद से सपा के मुकेश वर्मा और सिरसागंज से सपा के सर्वेश सिंह ने जीत हासिल की थी. अगर विधानसभावार सियासी स्थिति पर नजर डालें तो सपा का पलड़ा भाजपा के मुकाबले भारी है.

फिरोजाबाद संसदीय क्षेत्र का इतिहास

फिरोजाबाद संसदीय क्षेत्र के इतिहास पर नजर डालें तो 1957 में निर्दलीय बृजराज सिंह ने कांग्रेस के रघुवर सिंह को शिकस्त दी. 1962 के चुनाव में कांग्रेस के शंभू नाथ चतुर्वेदी ने गोरख रिपब्लिक पार्टी के दाताराम गोरख को हराया. 1967 के चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के एससी लाल ने कांग्रेस के सी अंबेश को हराया. 1971 में कांग्रेस के छत्रपति अंबेश ने भारतीय क्रांति दल के शिव चरन लाल को शिकस्त दी.

1977 में भारतीय लोक दल के रामजी लाल सुमन ने कांग्रेस के राजा राम पीपल को हराया. 1980 में निर्दलीय राजेश कुमार सिंह ने कांग्रेस के आजाद कुमार कर्दम, 1984 में कांग्रेस के गंगाराम ने लोकदल के राजेश कुमार सिंह को शिकस्त दी. 1989 में जनता दल के रामजीलाल सुमन ने कांग्रेस के गंगाराम को, 1991 में भाजपा के प्रभु दाल कठेरिया ने जनता दल के शिवनारायण गौतम को हराया.

इसके बाद 1996 में भाजपा के प्रभु दाल कठेरिया ने सपा के रामजीलाल सुमन को हराया. 1998 में भी इन दोनों के बीच हुए मुकाले में प्रभु दयाल ने जीत दर्ज की. इसके बाद 1999 के चुनाव में सपा के रामजीलाल सुमन भाजपा के प्रभु दयाल कठेरिया को हराकर जीत हासिल करने में सफल रहे.

वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में रामजीलाल सुमन ने एक बार फिर जीत हासिल की. उन्होंने भाजपा के किशोरीलाल माहौल को शिकस्त दी. वहीं 2009 में अखिलेश यादव ने भाजपा के एसपी सिंह बघेल को शिकस्त दी. हालांकि कुछ समय बाद उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया.

इसके बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस की ओर से राज बब्बर ने जीत हासिल की. वर्ष 2014 में सपा के वरिष्ठ नेता प्रो. रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ने यहां से जीत हासिल की. अक्षय यादव ने भाजपा प्रत्याशी एसपी सिंह बघेल को हराया. इसके बाद 2019 में एक बार फिर फिरोजाबाद में कमल खिला और सैफई कुनबे की आपसी तकरार का फायदा उठाकर भाजपा यहां कमल खिलाने में सफल हुई.

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