राजधानी लखनऊ में मेट्रो पिछले पांच साल से जहां की तहां अटकी हुई है. मेट्रो का विस्तार न हो पाने से शहर में यातायात की समस्या जटिल होती जा रही है. मेट्रो विस्तार में जहां वित्तीय प्रबंधन रोड़ा बना हुआ है.
वहीं अखिलेश सरकार द्वारा डीपीआर को मंजूरी देने में हुई चूक को भी एक वजह बताया जा रहा है. माना जा रहा है कि अगर कानपुर की तरह लखनऊ मेट्रो रेल परियोजना के भी दोनों कॉरिडोर को एक साथ मंजूरी दे देनी चाहिए थी.
अगर ऐसा हुआ तो पहले कॉरिडोर (रेड लाइन ) का काम समाप्त होने के साथ ही दूसरे कॉरिडोर (ब्लू लाइन) का भी काम शुरू हो गया होता. ऐसा करके मेट्रो सेवा को जहां घाटे से उबारा जा सकता था, वहीं शहर के यातायात की समस्या से भी निजात मिल सकता था.
जानकारी के मुताबिक मेट्रो के विस्तार में सबसे बड़ी अड़चन परियोजना पर आने वाला खर्च और मेट्रो से होने वाली आय में भारी अंतर है. यूपीएमआरसी के लिए विश्व बैंक के लोन की किस्तें चुका पाना भी मुश्किल हो गया है.
मेट्रो पर सैकड़ों करोड़ रुपये का कर्ज चढ़ गया है. लखनऊ में मेट्रो के घाटे में पहुंचने का बड़ा कारण रूट का विस्तार नहीं होना है. यूपीएमआरसी ने दूसरे चरण का डीपीआर तैयार करके पिछले साल 9 सितंबर को ही आवास विभाग को भेज दिया था. इसमें परियोजना की बढ़ी लागत 4264 करोड़ प्रस्तावित की गई थी.
जबकि 2017 में यह 3789 करोड़ थी. छह साल में लागत में 475.286 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हो गई है, इसलिए वित्त विभाग के स्तर पर इससे संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल पाई है. इस वजह से ब्ल्यू लाइन (पूरब-पश्चिम कॉरिडोर) का काम शुरू नहीं हो पा रहा है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर दूसरे चरण का काम भी पूरा हो जाए और चारबाग से बसंतकुंज के बीच मेट्रो दौड़ने लगे तो इस रूट पर बड़ी संख्या में यात्री मिल सकते हैं. इससे मेट्रो पर सैकड़ों करोड़ रुपये का जो कर्ज है उससे उबरा जा सकता है.
जानकीपुरम से मुंशी पुलिया (6.5 किमी.)
आईआईएम से राजाजीपुरम (21.5 किमी.)
चारबाग से पीजीआई (11 किमी.)
इंदिरानगर से इकाना स्टेडियम (8.7 किमी.)
इकाना स्टेडियम से सीसीएस हवाई अड्डा (19.6 किमी.)
सचिवालय से चक गंजरिया सिटी (12 किमी.)
आईआईएम से अमौसी (13 किमी.)