22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Explainer : मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में दोषी पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी सपत्नी होंगे रिहा, ऐसे मिली माफी ..

कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या में उम्रकैद की सजा काट रहे उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी रिहा करने का आदेश जारी कर दिया गया है . गुरुवार को उनकी सजा को माफ करने का आदेश जारी कर दिया.

लखनऊ: कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या में उम्रकैद की सजा काट रहे उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी रिहा कर दिया गया है . उत्तर प्रदेश सरकार ने गुरुवार को यह आदेश जारी किया .उनकी पत्नी मधुमणि भी जेल से बाहर निकल जाएंगी क्योंकि सरकार ने उनकी सजा भी माफ कर दी है . अधिकारियों के अनुसार, दोनों ने 20 साल से अधिक जेल की सेवा की है . उनकी रिहाई का आदेश उनके ‘अच्छे व्यवहार’ के साथ-साथ जेल के अंदर ‘शांति बनाए रखने’को देखते हुए दिया गया था .

Undefined
Explainer : मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में दोषी पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी सपत्नी होंगे रिहा, ऐसे मिली माफी.. 2

पूर्व राज्य मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि को 2003 में कवियत्री मधुमिता शुक्ला की साजिश रचने और हत्या करने का दोषी ठहराया गया था . उन्हें 2007 में देहरादून कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी . केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अनुसार जांच में पता चला कि अमरमणि त्रिपाठी और मधुमिता शुक्ला दोनों के अवैध संबंध थे. इस दौरान कवयित्री ने उनके साथ एक बच्चे की को जन्म देने का विचार किया था. पूर्व मंत्री त्रिपाठी ने बच्चे का गर्भपात कराने का दबाव बनाया .

कौन हैं अमरमणि त्रिपाठी?

अमरमणि त्रिपाठी का नाम अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए कुख्यात क्षेत्र पूर्वांचल क्षेत्र के अपराध की दुनिया में पहले से ही खास था.वह राजनीतिक सीढ़ी पर चढ़ने में कामयाब रहे और उत्तर प्रदेश में एक गैंगस्टर से राजनेता बने. वह 2002-03 में मायावती के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री थे . बाद में वह समाजवादी पार्टी में चले गए अमरमणि त्रिपाठी चार बार के विधायक थे और उन्होंने 2007 में सपा के टिकट पर जेल से विधानसभा चुनाव लड़ा था . त्रिपाठी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से की थी. बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए . वे 1997 में कल्याण सिंह सरकार में, 1999 में राम प्रकाश गुप्ता सरकार में, 2000 में राजनाथ सिंह सरकार में मंत्री भी रहे .

अमरमणि को इन धाराओं में दोषी पाया गया

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने भारत के संविधान के अनुच्छेद-161 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए जिला कारागार, गोरखपुर से निरुद्ध सिद्धदोष बन्दी अमरमणि त्रिपाठी (बन्दी संख्या-31/12) पुत्र श्री नरायण त्रिपाठी, निवासी-195 हुमागपुर दक्षिणी, माना कोतवाली, जनपद-गोरखपुर, -पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को कांड संख्या 411/2005 में भारतीय दंड की धारा 302, 120बी, 342, 306 के अन्तर्गत विशेष न्यायाधीश सत्र न्यायाधीश, देहरादून ने 24 अक्टूबर 2007 को आजीवन कारावास से दण्डित किया था. अमरमणि त्रिपाठी ने विशेष न्यायाधीश सत्र न्यायाधीश, देहरादून के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय उत्तराखंड में अपील की. हाई कोर्ट उत्तराखंड ने 16 जुलाई 2012 को विशेष न्यायाधीश सत्र न्यायाधीश, देहरादून द्वारा दिए गए आजीवन कारावास के फैसले को बरकरार रखा. हाईकोर्ट के बाद पूर्व मंत्री ने उच्चतम न्यायालय की शरण ली. देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी 04 जनवरी 2013 तथा 31 जुलाई द्वारा दिए गए फैसले में कोई राहत नहीं दी और सजा को यथावत रखा.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसला ने दिलाई रिहाई

सुप्रीम कोर्ट ने रिट पिटीशन -135/2022 राधेश्याम भगवान दास साह उर्फ लाला वकील बनाम गुजरात राज्य व अन्य की सुनवाई करते हुए 13 मई 2022 को एक आदेश पारित किया था. इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने सजायाफ्ता व्यक्ति की रिहाई के संबंध में एक सिद्धांत प्रतिपादित किया था. इसी के आधार पर अमरमणि त्रिपाठी ने उच्चतम न्यायालय में रिट पिटीशन 445/2022 दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट ने अमरमणि त्रिपाठी बनाम उप्र राज्य में 10 फरवरी 2023 को आदेश पारित किया. अवमानना वाद (-1079/2023 अमरमणि त्रिपाठी बनाम संजय प्रसाद व अन्य ) में उच्चतम न्यायालय ने 18 अगस्त 2023 को एक आदेश पारित दिया. रिहाई के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के प्रकाश में राज्यपाल ने पूर्व मंत्री की रिहाई का आदेश जारी किया है.

रिहाई का यह आधार बना

बन्दी की आयु 66 वर्ष होने तथा 22 नंवबर 22 तक 17 वर्ष 109 माह 04 दिन की अपरिहार सजा तथा 20 वर्ष 01 माह 19 दिन की सपरिहार भोगी गयी सजा व अच्छे जेल आचरण के दृष्टिगत बाकी सजा को माफ करने का आदेश दिया है. डीएम के यहां जमानती और मुचलका भरने के बाद मिलेगी रिहाई अमरमणि और उनकी पत्नी की सजा भले ही माफ कर दी गई है लेकिन वह जेल से तभी आएंगे जब जिला मजिस्ट्रेट, गोरखपुर के यहां दो जमानती तथा उतनी ही धनराशि का एक जाती मुचलका प्रस्तुत कर देंगे. इसके बद ही बन्दी को कारागार से मुक्त किया जाएगा.

डीएम के यहां जमानत और मुचलका भरने के बाद मिलेगी रिहाई

अमरमणि और उनकी पत्नी की सजा भले ही माफ कर दी गई है लेकिन वह जेल से तभी आएंगे जब जिला मजिस्ट्रेट, गोरखपुर के यहां दो जमानती तथा उतनी ही धनराशि का एक जाती मुचलका प्रस्तुत कर देंगे. इसके बद ही बन्दी को कारागार से मुक्त किया जाएगा.

Also Read: यूपी में अब महिलाएं चलाएंगी रोडवेज की पिंक बस , पूरी तरह महिलाओं के जिम्मे होगी ये सेवा, जानें क्या है प्लान.. क्या है क्षमा दान की शक्ति 

राष्ट्रपति – राज्यपाल को सजा को माफ करने से लेकर बदलने तक की शक्ति है. संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत, राष्ट्रपति को किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा को क्षमा करने, राहत देने, राहत देने या छूट देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति होगी, जहाँ दंड मौत की सज़ा के रूप में है.राष्ट्रपति सरकार से स्वतंत्र होकर क्षमा की अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते. कई मामलों में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि राष्ट्रपति को दया याचिकाओं पर निर्णय लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्रवाई करनी होगी . इनमें 1980 में मारू राम बनाम भारत संघ और 1994 में धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में आया फैसला शामिल है.

राष्ट्रपति को पुनर्विचार की शक्ति

राष्ट्रपति सजा माफ करने आदि के लिए मंत्रिमंडल से सलाह लेने के लिये बाध्य हैं लेकिन अनुच्छेद 74 (1) राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि वह मंत्रिपरिषद की सलाह को एक बार पुनर्विचार के लिये वापस कर दें. यदि मंत्रिपरिषद पूर्व में दी गई सलाह को बिना किसी परिवर्तन के दोबारा भेजती है तो राष्ट्रपति के पास उसे स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

राज्यपाल की क्षमादान शक्ति:

अनुच्छेद 161 राज्य के राज्यपाल के पास किसी ऐसे मामले से संबंधित किसी भी कानून के खिलाफ किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सज़ा को माफ करने, राहत देने, राहत या छूट देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति होगी.

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों के बीच अंतर

अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से अधिक व्यापक है. यानि दो बड़े अंतर हैं. कोर्ट मार्शल के तहत राष्ट्रपति सजा प्राप्त व्यक्ति की सजा माफ़ कर सकता है परंतु अनुच्छेद 161 राज्यपाल को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं करता है कि वह माफ कर दे. दूसरा बड़ा अंतर मौत की सजा को लेकर है. राष्ट्रपति मौत की सजा के मामलों में भी क्षमादान दे सकता है . राज्यपाल की क्षमादान शक्ति मौत की सजा के मामलों में मौन हो जाती है. यानि राज्यपाल को आजीवन कारावास की सजा को माफ कर सकता है लेकिन यदि किसी को मौत की सजा मिली है तो उसे क्षमादान नहीं दे सकता है.

आपके लिए यह जान लेना भी है जरूरी
  1. क्षमा: इसमें दंडादेश और दोषसिद्धि दोनों से मुक्ति देना शामिल है

  2. सजा का लघुकरण: इसमें दंड के स्वरुप को बदलकर कम करना शामिल है, उदाहरण के लिये मृत्युदंड को आजीवन कारावास और कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदलना.

  3. परिहार: इसमें दंड की प्रकृति में परिवर्तन किया जाना शामिल है, उदाहरण के लिये दो वर्ष के कारावास को एक वर्ष के कारावास में परिवर्तित करना.

  4. विराम: इसके अंतर्गत किसी दोषी को प्राप्त मूल सज़ा के प्रावधान को किन्हीं विशेष परिस्थितियों में बदलना शामिल है. उदाहरण के लिये महिला की गर्भावस्था की अवधि के कारण सज़ा को परिवर्तित करना.

  5. प्रविलंबन: इसके अंतर्गत क्षमा या लघुकरण की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान दंड के प्रारंभ की अवधि को आगे बढ़ाना या किसी दंड पर अस्थायी रोक लगाना शामिल है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें