लखनऊ. वाराणसी स्थित संकट मोचन मंदिर के महंत व आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर विश्वंभरनाथ मिश्र को संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित किया गया है. राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की अध्यक्षता में मंगलवर को राजभवन के गांधी सभागार में ‘‘ उप्र संगीत नाटक अकादमी सम्मान समारोह-2023 में इस सम्मान से अलंकृत किया गया. राज्यपाल ने 18 कलाकारों को संगीत-नाट्य और नृत्य कलाओं के लिए सम्मानित किया.
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी जिन 18 कलाकारों को पुरस्कार प्रदान किए गए उनमें डॉ पूर्णिमा पाण्डेय को कथक नृत्य, उस्ताद युगांतर सिंदूर उपशास्त्रीय एवं सुगम गायन, कुंवरजी अग्रवाल रंगमंच समीक्षा, उर्मिला श्रीवास्तव को लोक गायन तथा डॉ चन्द्रप्रकाश द्विवेदी को नाट्य निर्देशन के लिए सम्मानित किया गया. विपुल कृष्णा नागर को नाट्य निर्देशन महन्त प्रो विश्म्भरनाथ मिश्र को संगीत कला उन्नयन, महाराज डॉ अनंत नारायण सिंह को संगीत कला उन्नयन, डॉ बृजेश्वर सिंह को नाटक कला उन्नयन, डॉ शरदमणि त्रिपाठी को शास्त्रीय गायन तथा डॉ ब्रह्मपाल नागर को रागिनी लोकगायन के लिए ये पुरस्कार प्रदान किया गया. पं रामेश्वर प्रसाद मिश्र शास्त्रीय गायन, विशाल कृष्णा कथक नृत्य, भूरा यादव (राकेश) को राई लोकनृत्य, अनिल मिश्रा ‘गुरू जी‘ को नाट्य निर्देशन, अष्टभुजा मिश्र को नौटंकी अभिनय एवं निर्देशन, पं विनोद लेले को तबला वादन एवं फतेह अली खां को शहनाई वादन के लिए सम्मानित किया गया.
समारोह का एक मुख्य आकर्षण ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत‘ के अंतर्गत उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग के मध्य एमओयू का हस्ताक्षरित होना रहा.राज्यपाल आनंदीबेन पटेल,संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री उत्तर प्रदेश जयवीर सिंह, संस्कृति, पर्यटन एवं धर्मस्व मंत्री मध्य प्रदेश ऊषा ठाकुर की मौजूदगी में प्रमुख सचिव संस्कृति विभाग उप्र मुकेश मेश्राम तथा प्रमुख सचिव संस्कृति एवं पर्यटन विभाग मप्र शेखर शुक्ला ने दोनों राज्यों की सांस्कृतिक साझेदारी के लिए परस्पर एमओयू हस्ताक्षरित किए.समारोह में दोनों राज्यों के कलाकारों,मनोहारी लोकनृत्यों की प्रस्तुति ने भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति के रंग प्रस्तुत किए.
राज्यपाल राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि उप्र संगीत नाटक अकादमी द्वारा संगीत और नृत्य कलाओं की विविध परम्पराओं का संवर्द्धन सराहनीय है. उत्तर प्रदेश एक विशाल सांस्कृतिक क्षेत्र है, जिसकी विविध समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराओं के प्रशिक्षण एवं सवर्द्धन के लिए निरंतर कार्य करना आवश्यक है. दोनो प्रदेशों की एक मिली-जुली संस्कृति है. अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ राज्य के भीतर और समीपवर्ती राज्यों में बच्चों के साथ पर्यटन करना चाहिए, जिससे बच्चे देश की सांस्कृतिक विविधता और कलात्मकता को आत्मसात कर सकें. राज्यों में विश्वविद्यालयों द्वारा भी परस्पर खेलकूद, नाट्य सांस्कृतिक गतिविधियों, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन कराकर विद्यार्थियों का समागम कराने की चर्चा भी की.