Mahashivratri 2023: मनोकामना पूरी करते हैं मनकामेश्वर, लक्ष्मणजी ने किया था पूजन, ऐसे मिलेगी विशेष कृपा…
Mahashivratri 2023: लखनऊ के मनकामेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि को लेकर विशेष इंतजाम किए गए हैं. इस मंदिर को भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए मनकामेश्वर के रूप में जाना जाता है. सीता जी को वनवास छोड़कर वापस आते समय में लक्ष्मण जी ने यहां पूजन किया था.
Maha Shivratri 2023: देवों के देव महादेव की पूजा आराधना के सबसे बड़े दिन महाशिवरात्रि को लेकर शिवालयों में जोर शोर से तैयारियां चल रही हैं. राजधानी लखनऊ के प्रमुख शिवालयों में भोलेनाथ की पूजा अर्चना के लिए आने वाले भक्तों के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं. इनमें डालीगंज स्थित मनकामेश्वर मंदिर प्रमुख रूप से है.
देर रात से उमड़ने लगेगी श्रद्धालुओं की भीड़महाशिवरात्रि पर मनकामेश्वर मंदिर पूरा दिन खुला रहेगा. शुक्रवार देर रात से ही यहां श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो जाएगा. लोग कतारबद्ध होकर दुग्धाभिषेक और जलाभिषेक करेंगे. भोर की आरती के बाद एक बार फिर ये सिलसिला शुरू हो जाएगा. भारी भीड़ देखते हुए इसके लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं. मान्यता है कि मन की मनोकामना पूरी करने वाले मनकामेश्वर महादेव इस दिन भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं. महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक के साथ बेलपत्र चढ़ाते समय मन में मनकामेश्वर से मनोकामना कहें, वह जरूर पूरी होगी.
पौराणिक मान्यता के मुताबिक आदि गंगा मां गोमती नदी के तट पर विराजमान श्री मनकामेश्वर महादेव बाबा त्रेताकालीन समय से यहां मौजूद हैं. यहां मनकामेश्वर बाबा रामायण काल के हैं. जब माता सीता को लक्ष्मण जी वनवास छोड़कर वापस अयोध्या जा रहे थे, तब उन्होंने यहीं पर रात्रि विश्राम कर भोर में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी. यहां पर पूजन के बाद उनका मन शांत हुआ. यही वजह है कि आज भी मनकामेश्वर द्वार में प्रवेश के बाद ही मन को शांति मिल जाती है.
Also Read: Mahashivratri 2023: काशी विश्वनाथ की आज होगी हल्दी रस्म, पहली बार पंचबदन शिव की प्रतिमा संग निकलेगी शिव बारात शिवालय के शिखर पर थे 23 प्रकार के स्वर्ण कलशऐतिहासिक दृष्टि से कहा जाता है कि मां गोमती के तट पर स्थित मनकामेश्वर मठ मंदिर अति प्राचीन शिवालयों में से एक है. इसका निर्माण राजा हर नव धनु ने अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करने के बाद करवाया था, जिसका शिखर 23 अलग-अलग प्रकार के स्वर्ण कलश से सुसज्जित था.
मुगलों ने लूट लिए थे मंदिर के स्वर्ण कलश12वीं शताब्दी में मुगल आक्रमणकारियों ने यहां का सारा स्वर्ण लूटकर इस मंदिर को नष्ट कर दिया था. आज से 500 से अधिक वर्ष पूर्व नागा साधुओं और अन्य हिंदुओं ने हजारों की संख्या में यहां एकत्र होकर मुगलों का विरोध किया और उनके कब्जे से इस मंदिर को मुक्त करवाया. इसके बाद मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया. तब से आज तक यहां नियमित रूप से पूजा-पाठ होती आ रही है. 1933 के करीब इस मंदिर को मनकामेश्वर महादेव मंदिर का नाम दिया गया.
मनोकामना पूर्ण होने पर कराते हैं रुद्राभिषेकमान्यताओं के अनुसार यहां जो भी श्रद्धालु आरती में शामिल होकर भगवान से कामना कामना करता है, वो पूरी हो जाती है. इसीलिए मंदिर में सुबह व शाम की आरती का विशेष महत्व माना जाता है, जिसमें काफी संख्या में भक्त हिस्सा लेते हैं. मंदिर के नाम से ही इस बात का एहसास हो जाता है कि यहां मन से की गई प्रार्थना पूरी होती है. लोग यहां आकर मनचाहा विवाह और संतान प्राप्ति की मनोकामना करते हैं और उसे पूरा होने पर रुद्राभिषेक भी करवाते हैं. सावन के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रहती है. इसी तरह महाशिवरात्रि पर यहां भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए लंबी लंबी कतारें में लोग खड़े रहते हैं.