मुलायम सिंह की पहली पुण्यतिथि:अखाड़े से सियासी दिग्गज बनने का तय किया सफर, शिवपाल बोले- ठहरी-ठहरी सी जिंदगी है
मुलायम सिंह यादव की पहली पुण्यतिथि पर शिवपाल यादव ने अपने बड़े भाई को कुछ अलग अंदाज में याद करते हुए श्रद्धांजलि दी, उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट किया, ठहरी ठहरी सी जिंदगी है, सबकी आंखों में नमी है...एक धोखा है ये सब रंग और सवेरा, बिन सूरज ये उजाला है तो अंधेरा क्या है?
Mulayam Singh Yadav First Death Anniversary: समाजवादी नेता, पूर्व रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की पहली पुण्यतिथि पर लोग उन्हें याद कर रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और अन्य नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पूर्व रक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस मौके पर सैफई में हैं. उन्होंने अपने पिता के समाधि स्थल पर जाकर श्रद्धासुमन अर्पित किए. पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव की प्रथम पुण्यतिथि पर मुख्य कार्यक्रम वहीं आयोजित किया गया है. बताया जा रहा है कि श्रद्धांजलि सभा में भविष्य के लिए राजनीतिक संकल्प भी सपा लेगी. वहीं शिवपाल यादव ने अपने बड़े भाई को कुछ अलग अंदाज में याद करते हुए श्रद्धांजलि दी, उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट किया, ठहरी ठहरी सी जिंदगी है, सबकी आंखों में नमी है…एक धोखा है ये सब रंग और सवेरा, बिन सूरज ये उजाला है तो अंधेरा क्या है? उन्होंने कहा कि हम सभी के ऊर्जा के स्रोत और अभिभावक आदरणीय नेता जी हमारी स्मृतियों व विचारों में सदैव जीवित रहेंगे.
मुलायम सिंह यादव के सियासी सफर पर नजर डालें तो देश की राजनीति में उनका बहुत बड़ा कद था. समाजवादी पार्टी से विभिन्न दलों का भले ही सियासी विरोध रहा हो, लेकिन मुलायम सिंह यादव के संबंध दलों की सीमा से परे थे. वह खुलकर टिप्पणी करते थे. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित पूरे देश के नेताओं ने शोक जताया था. दक्षिण के राज्यों से तक नेता उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे. पहलवानी के शौकीन मुलायम सिंह यादव सियासी दांवपेंच में भी बेहद माहिर थे और उन्होंने इसकी बदौलत बड़ा मुकाम हासिल किया. मुलायम सिंह यादव 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जसवंतनगर विधानसभा सीट से महज 28 साल की उम्र में विधायक बने थे. वहीं जब 1977 में उत्तर प्रदेश में रामनरेश यादव के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी, तो मुलायम सिंह को सहकारिता मंत्री बनाया गया. तब उनकी उम्र महज 38 साल थी.
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अजीत सिंह से लेकर कांशीराम से सियासी रिश्ता
चौधरी चरण सिंह मुलायम सिंह को अपना राजनीतिक वारिस और अपने बेटे अजीत सिंह को अपना कानूनी वारिस कहा करते थे, लेकिन जब अपने पिता के गंभीर रूप से बीमार होने के बाद अजीत सिंह अमरीका से वापस भारत लौटे, तो उनके समर्थकों ने उन पर जोर डाला कि वो पार्टी के अध्यक्ष बन जाएं.
इसके बाद मुलायम सिंह और अजीत सिंह में प्रतिद्वंद्विता बढ़ी, लेकिन उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौका मुलायम सिंह को मिला. 4 अक्तूबर, 1992 को उन्होंने समाजवादी पार्टी की स्थापना की. उन्होंने कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया. 1993 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 260 में से 109 और बहुजन समाज पार्टी को 163 में से 67 सीटें मिलीं थीं. भारतीय जनता पार्टी को 177 सीटों से संतोष करना पड़ा था और मुलायम सिंह ने कांग्रेस और बसपा के समर्थन से राज्य में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. हालांकि ये गठबंधन बहुत दिनों तक नहीं चला.
सपा-बसपा गठबंधन मुलायम से लेकर अखिलेश के समय नहीं रहा सफल
बाद में बहुजन समाज पार्टी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. वहीं दो जून को जब मायवती लखनऊ आईं, तो मुलायम के समर्थकों ने राज्य गेस्ट हाउस में मायवती पर हमला किया और उन्हें अपमानित करने की कोशिश की. इसके बाद इन दोनों के बीच जो खाई पैदा हुई, उसे दो दशकों से भी अधिक समय तक पाटा नहीं जा सका. बाद में अखिलेश यादव के अध्यक्ष बनने पर सपा और बसपा फिर लोकसभा चुनाव में एक साथ आए, लेकिन ये प्रयोग भी असफल रहा.
पीएम की रेस से अपनों के विरोध के कारण हुए बाहर
29 अगस्त 2003 को मुलायम सिंह यादव ने तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इस बीच उनकी अमर सिंह से गहरी दोस्ती हो गई.जिसकी वजह से बेनी प्रसाद वर्मा सहित उनके कई साथी नाराज भी हुए. वहीं मुलायम सिंह यादव 1996 में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री बने. प्रधानमंत्री के पद से देवेगौड़ा के इस्तीफा देने के बाद वो भारत के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए. कहा जाता है कि उनके प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव और शरद पवार ने उनकी राह में रोड़े अटकाए और इसमें चंद्रबाबू नायडू ने भी उनका साथ दिया, जिसकी वजह से मुलायम को प्रधानमंत्री का पद नहीं मिल सका. इसका जिक्र बाद में कई बार सियासी माहौल में होता रहा.
मुलायम सिंह यादव का सियासी सफर
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1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के जसवंतनगर से विधायक बने.
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1996 तक मुलायम सिंह यादव जसवंतनगर से विधायक रहे.
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पहली बार वे 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
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1993 में वे दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.
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1996 में पहली बार मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा.
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1996 से 1998 तक वे यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री रहे.
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उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने संभल और कन्नौज से भी लोकसभा का चुनाव जीता.
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2003 में एक बार फिर मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
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मुलायम सिंह यादव 2007 तक यूपी के सीएम बने रहे.
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इस बीच 2004 में उन्होंने लोकसभा चुनाव भी जीता, लेकिन बाद में त्यागपत्र दे दिया.
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2009 में उन्होंने मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी.
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2014 में मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ और मैनपुरी दोनों जगह से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी. बाद में उन्होंने मैनपुरी सीट छोड़ दी.
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2019 में उन्होंने एक बार फिर मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की.
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अप्रैल 2023 में केंद्र सरकार ने मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों अखिलेश यादव ने यह सम्मान लिया.