Lucknow: लखनऊ के मशहूर शैक्षणिक संस्थान दारुल उलूम नदवतुल उलमा (नदवा) में अब संस्कृत विद्यालयों की तरह इसकी पढ़ाई कराई जाएगी. यहां के विद्याथी कुरान की आयतों के साथ संस्कृत के श्लोक भी पढ़ते नजर आएंगे. इसके लिए जल्द ही यहां डिप्लोमा कोर्स शुरू करने की तैयारी है.
नदवा प्रबंधन ने इस कोर्स को लेकर फैसले को अपनी मंजूरी दे दी है. इस तरह अलग अलग भाषा सीखने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थी नदवा में एक छत के नीचे इसका लाभ ले सकेंगे. लखनऊ स्थित नदवतुल उलमा संस्थान को आम बोलचाल में नदवा कहा जाता है. इस्लामिक शिक्षा के लिए ये पूरी दुनिया में काफी मशहूर है. यहां से पढ़े विद्यार्थी दुनिया के अलग अलग हिस्सों में मौजूद हैं. नदवा दीनी तालीम के साथ आधुनिक शिक्षा का पक्षधर रहा है. दारुल उलूम नदवतुल उलमा (नदवा) 1893 में कानपुर में बनाया गया था. बाद में इसे 1898 में लखनऊ स्थानांतरित कर दिया गया और इस्लामी पाठ्यक्रम को आधुनिक विज्ञान, गणित, व्यावसायिक प्रशिक्षण और एक अंग्रेजी विभाग के अतिरिक्त के साथ अपडेट किया गया.
इसी सोच के तहत नदवा में छात्रों को कुरान, हदीस, इस्लामिक स्टडीज, फारसी के अलावा भाषा और पत्रकारिता विभाग में अरबी, उर्दू, अंग्रेजी के अलावा हिंदी, अंग्रेजी की शिक्षा दी जाती है. अब इसमें एक और नया विषय शामिल होने जा रहा है.
नदवा के सचिव व प्रबंधक मौलाना जाफर हसनी नदवी के मुताबिक कई ऐसे विद्यार्थी हैं, जिनकी संस्कृत पढ़ने की ख्वाहिश होती है. नदवा में अरबी के विद्वान स्व. मौलाना हिफजुर्रहमान को संस्कृत और फ्रेंच भाषा में महारत हासिल थी. संस्कृत पढ़ने के शौकीन विद्यार्थियों को वे रात आठ बजे संस्कृत पढ़ाते थे. लेकिन, तब यह सिर्फ शौक तक ही सीमित था.
बीते वर्ष उनका इंतकाल होने के बाद से संस्कृत पढ़ाने वाला कोई नहीं है. इसलिए अब डिप्लोमा कोर्स शुरू करने का फैसला किया गया है. इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है. इससे छात्र इस्लाम के अलावा हिंदू धर्म के ग्रंथों को को भी आसानी से समझ सकेंगे. उन्होंने बताया कि शुरुआत में संस्कृत का एक शिक्षक रखा जाएगा. विद्यार्थियों की संख्या में इजाफा होने पर शिक्षकों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी, जिससे डिप्लोमा कोर्स करने वाले विद्यार्थी सुविधाजनक तरीके से पढ़ाई कर सकें.
खास बात है कि नदवा में सौ साल से भी अधिक समय पहले संस्कृत की पढ़ाई कराई जाती थी. इसके लिए बकायदा कक्षाएं संचालित की जाती थीं. कलकत्ता यूनिवर्सिटी से नदवा पर पीएचडी करने वाले डाॅ. उबैद उर रहमान के मुताबिक यहां 1905 में पाठयक्रम में अंग्रेजी अनिवार्य तौर पर शामिल किया गया था. तब यहां संस्कृत की पढ़ाई भी शुरू की गई थी. हालांकि यह अनिवार्य तौर पर विषय का हिस्सा नहीं था. लेकिन संस्कृत के लिए दो शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी.