Mission 80: बीजेपी के लिये पूरब को साधेंगे ओम प्रकाश राजभर, सपा के गढ़ आजमगढ़ से होगा शंखनाद
पूर्वांचल के लगभग एक दर्जन जिलों में राजभर बिरादरी लगभग 2.50 फीसदी है. अपनी बिरादरी पर ओम प्रकाश राजभर की अच्छी पकड़ है.
लखनऊ: बीजेपी के मिशन 80 (Mission 80) का सपना पूरा करने के लिये सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर सहारा बनेंगे. वह राजभर वोटों के सहारे बीजेपी के लिये पूरब को साधने का कार्य करेंगे. 2019 में पूर्वांचल की छह सीटों पर बीजेपी का मुंह की खानी पड़ी थी. अब इन सीटों को राजभर वोटों के सहारे जीतने की योजना बनायी गयी है. इसकी शुरुआत आजमगढ़ से होगी.
पूरब में लगभग 2.5 फीसदी है राजभर आबादी
पूर्वांचल के लगभग एक दर्जन जिलों में राजभर बिरादरी लगभग 2.50 फीसदी है. अपनी बिरादरी पर ओम प्रकाश राजभर की अच्छी पकड़ है. यूपी में 2022 विधानसभा का परिणाम देखें तो पता चलता है कि आजमगढ़ और गाजीपुर जिले की सभी सीटें बीजेपी हार गयी थी. इन दोनों ही जिलों में सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर जिसे चाहते हैं, अपना वोट ट्रांसफर करा देते हैं.
2019 में पूरब की छह सीटें हारी थी बीजेपी
ओम प्रकाश राजभर के उनकी बिरादरी पर इसी जादू को देखते हुए बीजेपी ने 2024 लोकसभा चुनाव से पहले अपने पाले में कर लिया है. 2019 लोकसभा चुनाव के परिणाम देखें तो अंबेडकर नगर, आजमगढ़, गाजीपुर, घोसी, लालगंज, जौनपुर सीट बीजेपी हार गयी थी. इसमें आजमगढ़ समाजवादी पार्टी ने जीती थी और बाकी पांच सीटें बीएसपी के खाते में गयीं थीं. यहां यह भी बताना जरूरी है कि 2019 चुनाव सपा और बसपा ने मिलकर लड़ा था.
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2024 में पूरब फतह करना चाहती है बीजेपी
2024 लोकसभा चुनाव में अंबेडकर नगर, आजमगढ़, गाजीपुर, घोसी, लालगंज, जौनपुर सीट सीटों पर भी बीजेपी अपनी जीत हासिल करना चाहती है. आजमगढ़ लोकसभा सीट पर वर्तमान में बीजेपी से निरहुआ सांसद हैं. यह सीट बीजेपी ने अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में जीती थी. अब इस सीट को अपने पास बरकरार रखने की कवायद में बीजेपी जुट गयी है.
पूर्वी यूपी के एक दर्जन जिलों में राजभर बिरादरी की अच्छी संख्या
सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के दमखम की बात करें तो वह पूरब के अंबेडकर नगर, देवरिया, श्रावस्ती, बहराइच, संतकबीर नगर, बस्ती, गाजीपुर, बलिया, वाराणसी, चंदौली, मऊ, जौनपुर और आजमगढ़ में अच्छा दखल रखते हैं. यही कारण है कि यूपी में मिशन 80 को पूरा करने के लिये बीजेपी किसी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते हैं.
ओम प्रकाश राजभर का राजनीतिक कॅरियर
ओमप्रकाश राजभर ने पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था. लेकिन उन्हें जीत हासिल नहीं हुई. पहली बार विधायक वह बीजेपी से गठबंधन करने के बाद ही बने थे. जब 2017 में यूपी में वह बीजेपी के साथ गठबंधन करके 8 सीटों पर चुनाव लड़े और 4 सीटों पर जीत हासिल की. ओम प्रकाश राजभर को बीजेपी सरकार में दिव्यांगजन विभाग का मंत्री बनाया गया था.
मंत्री रहने के बावजूद बीजेपी से नहीं पटी
2017 में सुभासपा के साथ का बीजेपी को पूर्वांचल में फायदा भी मिला था. लेकिन यूपी सरकार में मंत्री रहने के दौरान ही ओम प्रकाश राजभर का बीजेपी से मन उचट गया. काफी समय तक एकला चलो की राह पकड़ने के बाद 2022 विधान सभा चुनाव में वह समाजवादी पार्टी के करीब आ गये. इस चुनाव में सुभासपा का सपा के साथ गठबंधन हो गया. इसी गठबंधन के चलते उनकी पार्टी 18 सीटों पर चुनाव विधानसभा चुनाव लड़ी.
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सपा गठबंधन में रहते हुए उन्होंने छह सीटों पर जीत हासिल की. वहीं बीजेपी आजमगढ़, गाजीपुर और अंबेडकर नगर में एक भी सीट नहीं जीत पायी. वहीं बलिया, जौनपुर और मऊ में उसकी सीटें घट गयीं. जबकि सपा गठबंधन पूर्वांचल में अपनी सीटें दोगुनी करने में सफल रहा था. हालांकि यह गठबंधन सत्ता पाने में सफल नहीं हो पाया था.
अखिलेश यादव की कार्यशैली पर उठाये सवाल
यूपी विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद जब समाजवादी पार्टी गठबंधन सत्ता से दूर हो गया तो, उसके समर्थक दल भी एक-एक कर दूर होने लगे. ओम प्रकाश राजभर खुलेआम अखिलेश यादव की कार्यशैली पर उंगलियां उठाने लगे. इस कार्य में उनके बेटे अरविंद राजभर भी पीछे नहीं रहते थे. यह तल्खियां इतनी अधिक बढ़ीं कि ओम प्रकाश राजभर का सपा से दूर जाना तय माना जाने लगा था.
पीएम मोदी को आजमगढ़ बुलाने की तैयारी
सपा से सुभासपा की दूरियों का फायदा बीजेपी ने उठाया. 2024 लोकसभा के चुनाव के मद्देनजर पूर्वी यूपी को मजबूत करने के लिये बीजेपी ने ओम प्रकाश राजभर को एनडीए में शामिल कर लिया. अब सुभासपा और ओम प्रकाश राजभर के जरिये बीजेपी पूरब को फतह करने की योजना पर कार्य कर रही है. बताया जा रहा है ओम प्रकाश राजभर इसकी शुरुआत आजमगढ़ से करना चाह रहे हैं.
सपा का गढ़ माने जाने वाले आजमगढ़ में वह बड़ी रैली करने की योजना बना रहे हैं. इसमें पीएम नरेंद्र मोदी को बुलाने की तैयारी है. जिससे सपा के गढ़ से लोकसभा का चुनावी बिगुल फूंका जा सके. साथ ही समाजवादी पार्टी को मानसिक दबाव में भी लाया जा सके.