Pandit Birju Maharaj Death: कुछ मौतें ऐसी होती हैं जिन पर सहज ही विश्वास नहीं होता. सोमवार की सुबह कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज कला जगत को सूना कर परलोक जा बसे. लखनऊ कालका-बिंदादीन घराने के पथप्रदर्शक कहे जाने वाले बिरजू महाराज के बचपन का नाम ‘दुखहरण’ रखा गया था. उन्होंने अपनी प्रतिभा से इस घराने को वैश्विक फलक का एक अदीप्त सूर्य बना दिया है. 4 फरवरी 1938 को लखनऊ में जन्मे पंडित बिरजू महाराज का करीब 83 साल की उम्र में सोमवार की सुबह हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया.
बिरजू महाराज की नृत्य शैली के सभी कायल थे. उन्होंने अपने कौशल से कथक की पारंपरिक महिमा को बहाल किया. वे एक ऐसी शैली के रचयिता बने जिसने कथक को वैश्विक मानचित्र पर ला खड़ा किया. लखनऊ कालका-बिंदादीन घराने के पथप्रदर्शकों में बिरजू महाराज, अच्चन महाराज, शंभू महाराज और लच्छू महाराज जैसे दिग्गज शामिल हैं.
4 फरवरी 1938 को बृजमोहन मिश्रा उर्फ बिरजू महाराज का निधन 16 जनवरी 2022 की सुबह हुआ. उनका बचपन का नाम ‘दुखहरण’ रखा गया था. इनके पिता अच्छन महाराज ही इनके गुरु थे. अच्छन महाराज के नाम पर पूरे भारत में संगीत सम्मेलनों में प्रदर्शन करने का गौरव दर्ज है. सात साल की उम्र में ही बिरजू महाराज उनके साथ कानपुर, इलाहाबाद, गोरखपुर, जौनपुर, देहरादून और यहां तक कि मधुबनी, कोलकाता और मुंबई जैसे दूरदराज के स्थानों पर मंच साझा कर चुके थे.
बिरजू महाराज का पहला प्रमुख एकल प्रदर्शन बंगाल में मनमथ नाथ घोष समारोह में संगीत के दिग्गजों की उपस्थिति में हुआ था. उन्हें बड़ी क्षमता वाले युवा नर्तक के रूप में पहचान मिली. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पंडित बिरजू महाराज को भारत में कथक नृत्य के लखनऊ कालका-बिंदादीन घराने के पथप्रदर्शक के नाम से जाना जाता है. वे कथक नर्तकियों के महाराज परिवार के वंशज थे, जिसमें उनके दो चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज और उनके पिता और गुरु अच्छन महाराज भी शामिल हैं.
28 साल की उम्र में ही उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला. इसके अलावा कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार जैसे कालिदास सम्मान, नृत्य चूड़ामणि, आंध्र रत्न, नृत्य विलास, आधारशिला शिखर सम्मान, सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, शिरोमणि सम्मान एवं राजीव गांधी शांति पुरस्कार आदि से भी उन्हें नवाजा गया था.
अवध के दरबार में नृत्य करने वाले महाराज ने कई ठुमरी, होरी और भजनों की रचना की. लखनवी अदा और तहज़ीब उन्हें विरासत में मिली थी. वे एक ऐसे वंश से ताल्लुक रखते हैं, जिसमें कालका महाराज और बिंदादीन महाराज शामिल थे. इन दोनों को ही आधुनिक कथक के संस्थापक के रूप में जाना जाता है. उनका नृत्य लखनऊ कालका-बिंदादीन घराने की विशेषताओं को परिभाषित करता है. इस शैली में शारीरिक सौंदर्य, लय और अभिनय का अनूठा संगम होता है. उनके नृत्य में बिजली सी गति थी. अफसोस, बिरजू महाराज का सोमवार की सुबह निधन हो गया.