Phoolan Devi: फूलन देवी की विरासत को कैश कराने के लिये राजनीतिक दलों में होड़, यूपी से लेकर बिहार तक दावेदारी

फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को जालौन के पुरवा गांव के एक गरीब परिवार में हुआ था. उनकी शादी 11 साल की उम्र में ही लगभग तीन गुना उम्र वाले व्यक्ति से किया गया था. बचपन में ही शोषण का शिकार फूलन देवी के अंदर आक्रोश धीरे-धीरे पनपता गया. जो 1979 में एक डकैत के रूप में सामना आया था.

By Amit Yadav | July 25, 2023 7:16 PM

लखनऊ: बैंडिट क्वीन नाम से मशहूर फूलन देवी की विरासत को कैश कराने के लिये राजनीतिक दलों में होड़ लगी है. यूपी से लेकर बिहार तक फूलन देवी को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया जा रहा है. हालांकि समाजवादी पार्टी के संस्थापक स्व. मुलायम सिंह यादव ने फूलन देवी को संसद भेजा था. फूलन देवी भी मुलायम सिंह यादव को अपना पिता मानती थीं.

11 साल की उम्र हुआ था विवाह

फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को जालौन के पुरवा गांव के एक गरीब परिवार में हुआ था. उनकी शादी 11 साल की उम्र में ही लगभग तीन गुना उम्र वाले व्यक्ति से किया गया था. बचपन में ही शोषण का शिकार फूलन देवी के अंदर आक्रोश धीरे-धीरे पनपता गया. जो 1979 में एक डकैत के रूप में सामना आया.

चंबल में भी हुआ था शोषण

चंबल में पहुंचने के बाद भी फूलन का शोषण जारी रहा. लाला राम और श्रीराम नाम के डकैतों ने उनक साथ सामूहिक बलात्कार किया. इसका नतीजा 14 फरवरी 1981 को बेहमई नरसंहार के रूप में सामने आया था. इस नरसंहार में फूलन ने 22 लोगों को एक साथ गोलियों से भून दिया था. इसके बाद फूलन लगातार चर्चा में बनी रही. हालांकि पुलिस भी उसके पीछे लगी हुई थी. लेकिन कभी उसे पकड़ नहीं पायी.

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1983 में किया था सरेंडर

सरकार के प्रयासों से फूलन देवी ने 1983 में 10 हजार लोगों और 300 पुलिस वालों के सामने आत्म समर्पण किया था. 8 साल की सजा काटने के बाद वह जेल से रिहा हुई. इसके बाद 1994 में उन पर 1994 में शेखर कपूर ने फूलन देवी पर बेंडिट क्वीन नाम से फिल्म बनायी थी. इस फिल्म से ही फूलन को और प्रसिद्धि मिली. साथ ही लोगों को पता चला कि गांव की एक छोटी लड़की को क्यों डकैत बनना पड़ा था.

फूलन का राजनीतिक सफर

एक छोटे से गांव से निकलकर डकैत तक सफर पूरा करने वाली फूलन की जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ तब आया, जब उन्हें समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने उन्हें भदोही से सांसद के लिये चुनाव लड़ा दिया. 1996 में फूलन देवी भदोही से सांसद बनी. इसके बाद 1999 में फिर से वह सांसद चुनी गयीं. लेकिन उनका यह सफर 25 जुलाई 2001 को खत्म हो गया. जब दिल्ली में घर के सामने ही शेर सिंह राणा ने उनकी हत्याकर थी.

निषाद राजनीति में फूलन देवी

फूलन देवी का निषाद, मल्लाह, केवट समुदाय में सम्मान से नाम लिया जाता है. इसी के चलते राजनीतिक पार्टियों में उनके नाम को भुनाने की होड़ चल रही है. यूपी समाजवादी पार्टी ने फूलन देवी को अलग ही मुकाम पर पहुंचाया था. इसलिये वहां फूलन देवी की जयंत और पुण्यतिथि का आयोजन होता रहा है.

अब इसी कड़ी में निषाद पार्टी, बिहार की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) का नाम भी जुड़ गया है. निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर फूलन देवी की संपत्तियों को माफिया से मुक्त कराकर उनकी माँ के नाम कराने की मांग की गयी है. साथ ही फूलन देवी की हत्या की सीबीआई जांच कराने, फूलन के नाम पर महिलाओं के सेल्फ डिफ़ेंस सेंटर खोलने की मांग की गई है.

वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने शुरू की रथ यात्रा

फूलन देवी की पुण्यतिथि के मौके पर वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने बिहार से रथ यात्रा शुरू की है. इस यात्रा में वह बिहार के अलावा यूपी और मध्य प्रदेश भी जाएंगे. इसमें वह निषाद समाज को जागरूक करेंगे.

फूलन देवी की मूर्ति लगाने पर राजनीति गर्म

पूर्व सांसद फूलन देवी की मूर्ति लगाने को लेकर भी विवाद हुआ है. सपा और केवट समाज ने फूलन देवी की मूर्ति लगाने का ऐलान किया था. जिसका काफी विरोध हुआ था और मूर्ति नहीं लग पायी थी. इसके अलावा वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने भी फूलन देवी की मूर्ति भदोही में लगाने की घोषणा की थी. लेकिन उन्हें पुलिस और प्रशासन ने रोक दिया था.

यूपी में पांच फीसदी है निषाद समाज की संख्या

उत्तर प्रदेश में निषाद समुदाय की संख्या लगभग 5 फीसदी है. इनमें लगभग 150 से ज्यादा उपजातियां हैं. पूर्व और मध्य उप्र के वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर व उसके आसपास के 18 जिलों में इनकी अच्छी खासी संख्या है. यही कारण है कि सभी राजनीतिक पार्टियां निषाद समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में रहती हैं.

यूपी में पहली बार 2017 में जब बीजेपी की सरकार बनी तो योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया था. सीएम बनने पर गोरखपुर की सीट से योगी आदित्यनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बार गोरखपुर में हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने निषाद पार्टी और डॉ. अयूब की पार्टी के साथ मिलकर प्रत्याशी उतारा था.

इस उपचुनाव में नई-नई बनी बीजेपी सरकार को मुंह की खानी पड़ी थी और सपा गठबंधन से संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद सांसद बने थे. लेकिन यह गठबंधन बाद में टूट गया था. अब संजय निषाद व उनके बेटे बीजेपी गठबंधन के साथ हैं. साथ ही निषाद समाज से सांसद रही फूलन देवी को लेकर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिख रहे हैं.

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