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पीएम मोदी ने जिस श्रीपति का किया जिक्र, उनका यूपी कांग्रेस के उत्थान और पतन से रहा था गहरा नाता

पीएम मोदी ने जिस श्रीपति मिश्र का जिक्र किया वो यूपी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे थे. 90 के दशक में श्रीपति मिश्र कांग्रेस के लिए बड़े नाम थे. इन्हीं श्रीपति मिश्र की बदौलत कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अच्छे दिन देखे और उन्हीं के कारण कांग्रेस का बुरा हाल हुआ.

Purvanchal Expressway: उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में पीएम नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का लोकार्पण किया. इस दौरान पीएम मोदी ने जनता को संबोधित भी किया. पीएम मोदी ने भाषण में कई बातों का जिक्र किया. खास बात यह रही कि पीएम मोदी ने श्रीपति मिश्र का नाम लेकर कांग्रेस पार्टी पर करारा तंज कसा. पीएम मोदी ने जिस श्रीपति मिश्र का जिक्र किया वो यूपी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे थे. 90 के दशक में श्रीपति मिश्र कांग्रेस के लिए बड़े नाम थे. इन्हीं श्रीपति मिश्र की बदौलत कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अच्छे दिन देखे और उन्हीं के कारण कांग्रेस का बुरा हाल हुआ.

मजिस्ट्रेट की नौकरी छोड़ राजनीति चुनी

श्रीपति मिश्र का जन्म सुल्तानपुर और जौनपुर की सीमा पर बसे शेषपुर गांव में हुआ था. उनके पिता रामप्रसाद मिश्र राजवैद्य थे. शुरुआती पढ़ाई के बाद श्रीपति ने बनारस शिफ्ट किया और 1941 में बीएचयू छात्र यूनियन के सचिव बने. लखनऊ से लॉ की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने सुल्तानपुर में प्रैक्टिस शुरू की. राजनीति में उनका मन रमता था. 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर सुल्तानपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और हार गए. पढ़ाई जारी रखी. इसी बीच 1954 में जूडिशियल मजिस्ट्रेट बन गए. राजनीति का मोह उन्हें नौकरी में नहीं रख सका. चार बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

चरण सिंह के करीबी… बाद में बना ली दूरी…

यह 1962 का साल था. वो यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते. सदन में उपाध्यक्ष बनने का मौका मिला. चौधरी चरण सिंह ने अपनी पार्टी बनाई तो श्रीपति ने उनको ज्वाइन करने में देरी नहीं की. 1929 में श्रीपति मिश्र भारतीय क्रांति दल के टिकट पर लोकसभा सांसद चुने गए. चरण सिंह के इशारे पर सांसद पद से भी इस्तीफा दे दिया. श्रीपति मिश्र चौधरी चरण सिंह और नारायण सिंह के मंत्रिमंडल में रहे. शिक्षा मंत्री तक बने. लेकिन, एकबार फिर उनकी कांग्रेस से नजदीकी बढ़ी. इमरजेंसी के कारण चरण सिंह प्रधानमंत्री बने. वहीं, श्रीपति मिश्रा ने उनसे दूरी बना ली थी.


कार्यकाल से पहले सीएम पद से इस्तीफा

उत्तर प्रदेश के 1980 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की. श्रीपति तीसरी बार विधायक बने. इस बार उन्हें विधान सभा अध्यक्ष बनाया गया. उसी समय वीपी सिंह सीएम बने. वीसी सिंह ने बुंदेलखंड से डाकुओं का खात्मा का या इस्तीफे का ऐलान कर दिया था. इसी बीच उनके भाई की हत्या डाकुओं ने कर दी. वीपी सिंह ने इस्तीफा दिया और श्रीपति मिश्र को 1982 में सीएम बनाया गया. माना जाता है कि इसी दौरान श्रीपति मिश्र और राजीव गांधी के बीच बढ़ी तल्खी के कारण उन्हें कार्यकाल पूरा हुए बिना इस्तीफा देना पड़ा. कांग्रेस ने इस्तीफे का कारण उनकी बिगड़ती स्वास्थ्य को ठहराया.

आखिरी समय में कांग्रेस से नहीं मिला सम्मान

श्रीपति मिश्र 1985 से 1989 तक मछलीशहर से सांसद रहे. उसके बाद सक्रिय राजनीति से दूर हो गए. श्रीपति मिश्र का साल 2002 में निधन हुआ. माना जाता है कांग्रेस पार्टी ने आखिरी समय में उन्हें कोई तव्वजो नहीं दी. उस समय कांग्रेस में सीनियर लीडर्स का सम्मान नहीं होने लगा था. ऐसा कहा जाता है श्रीपति मिश्र के कारण कांग्रेस पार्टी को यूपी में बड़ी सफलता मिली. लेकिन, जिंदगी के आखिरी समय में उन्हें कांग्रेस ने अपेक्षित सम्मान नहीं दिया. पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के मौके पर पीएम मोदी ने भी श्रीपति मिश्र का नाम लेकर कहीं ना कहीं कांग्रेस पार्टी को कठघरे में खड़ा कर दिया है.

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