गोरखपुर. शौक किसी को भी किसी उम्र में और किसी भी चीज की हो सकती है. चाहे वह खाने का शौक हो, खेलने का या फिर पढ़ाई करने का. हम ऐसे ही एक शौक रखने वाले व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं. जो अपनी शौक के चलते खास पहचान बना चुके हैं. उनको ये पहचान यू ही नहीं मिल गई. उन्होंने इस शौक को पूरा करने के लिए बचपन से सजोना शुरू कर दिया. हम बात कर रहे हैं गोरखपुर के धर्मशाला निवासी संदीप की. जिन्होंने भारत ही नहीं लगभग विश्व के 80% देश के डाक टिकटों का संग्रह किया हुआ है.
गोरखपुर के धर्मशाला बाजार निवासी संदीप सन 1982 से जब वह कक्षा 5 के छात्र थे तभी से उन्हें डाक टिकट का संग्रह करने का शौक है. उन्हें ये प्रेरणा अपने पड़ोसी और साथ में पढ़ने वाले विद्यार्थी संजय कोरी से मिली थी. प्रभात खबर से बातचीत के दौरान संदीप चौरसिया ने बताया कि इस कार्य के लिए वह अपने नाना के आयुर्वेद कंपनी में आने वाले पत्र से डाक टिकट बड़ी ही सफाई के साथ निकाल लिया करते थे. उन्होंने कुछ लोगों को पत्र मित्र भी बनाया था और उसी दौरान 1990 में लखनऊ में आयोजित क्षेत्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी लखनऊ में उन्हें भाग लेने का मौका मिला था .
इसी दौरान उनकी मुलाकात दिनेश शर्मा से हुई जो नेशनल चैंपियन एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यूरी सदस्य हैं. संदीप चौरसिया उन्हें गुरु का दर्जा देते हैं. संदीप चौरसिया बताते हैं कि बचपन में जो उन्हें पॉकेट मनी मिलती थी उससे वह डाक टिकट खरीदते थे. कई बार संदीप को अपने पिता से इस कार्य के लिए डांट भी खानी पड़ती थी. संदीप चौरसिया वर्तमान में पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर के ललित नारायण मिश्र चिकित्सालय में बतौर वरिष्ठ फार्मासिस्ट के पद पर कार्यरत है.
संदीप चौरसिया रेलवे आधारित टिकट भी इकट्ठा किए हुए हैं. इनके पास संग्रहित कुछ डाक टिकट ऊपर टीपीओ की मोहर लगे हैं. रेल आधारित संग्रह में रेल उपकरण, गार्ड किट, सिग्नल व्यवस्था, इंजन, आंतरिक पुर्जे, रेल मैप भी शामिल है वहीं चिकित्सा विज्ञान आधारित टिकट संग्रह की श्रृंखला चिकित्सा विज्ञान के पिता (एथेंस ग्रीस फिजीशियन) हिप्पोकेट से की है. संदीप ने श्रृंखला में विभिन्न में चिकित्सा पद्धति , शारीरिक संरचना, तंत्र, बीमारियों, बचाव, टीकाकरण, चिकित्सा पद्धति के प्रेणाताओं को शामिल किया गया है.
प्रभात खबर से बात करते हुए संदीप चौरसिया ने बताया कि हमारे मित्र टिकट कलेक्शन का कार्य करते थे . एक बार मैंने उनकी डायरी देखी. तभी से मेरे दिमाग में बैठ गया कि हमें भी टिकट कलेक्शन करना है. हम अपनी पॉकेट मनी से डाकघर में जाकर टिकट खरीद कर लाए और उसे कलेक्शन करना शुरू कर दिया. बचपन में पत्र मित्रता भी चलती थी. जिसके जरिए हमने बाहर के टिकट का कलेक्शन भी शुरू किया. उसके बाद ऑनलाइन सिस्टम शुरू हुआ ऑनलाइन सिस्टम से भी हमने बहुत सारे देशों के टिकट मंगाए हैं. उन्होंने बताया कि हमारी आधी तनख्वाह टिकट खरीदने में ही खत्म हो जाती है और इसकी जानकारी उनके परिवार को नहीं हो पाती है. उन्होंने बताया कि बहुत सारे देशों के टिकट के कलेक्शन उनके पास है.
संदीप ने बताया कि अभी में इंटरनेशनल लेवल पर पहुंच गया हूं .दिल्ली में भारत सरकार द्वारा टिकट प्रदर्शनी का कंपटीशन कराया गया था जिसमें मुझे सिल्वर अवार्ड मिला है और मैंने कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया है. भारत सरकार 2024 में अंतर्राष्ट्रीय डाक टिकट प्रतियोगिता कराने जा रही है उसमें प्रतिभाग करने के लिए मैंने तैयारी शुरू कर दी है .हमारा लक्ष्य है कि इंटरनेशनल लेवल पर जाकर गोल्ड मेडल लेना.
रिपोर्ट – कुमार प्रदीप,गोरखपुर